निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक मामले में ठेकेदार (याचिकाकर्ता) और बिहार सरकार के ग्रामीण कार्य विभाग (प्रतिवादी) के बीच हुए विवाद पर फैसला सुनाया।
मामला इस प्रकार था —
याचिकाकर्ता ने ग्रामीण कार्य विभाग के साथ सड़क और रखरखाव कार्य के लिए एक अनुबंध (Agreement No. 97/SBD/2009-10) किया था। लेकिन 31.08.2018 को कार्यपालक अभियंता ने अचानक उसका अनुबंध समाप्त कर दिया, सिक्योरिटी डिपॉजिट जब्त कर लिया और कोई कारण बताने का मौका भी नहीं दिया।
इसके अलावा, 20.09.2019 को एक और आदेश जारी कर उसे भविष्य में टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने से रोक दिया गया। इस आदेश में डिबारमेंट की अवधि भी नहीं बताई गई।
याचिकाकर्ता का कहना था कि:
- अनुबंध समाप्त करने और सिक्योरिटी डिपॉजिट जब्त करने से पहले कोई नोटिस या सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।
- 2014–2015 और 2015–2016 के रखरखाव कार्य का भुगतान अभी तक नहीं किया गया।
- डिबारमेंट आदेश बिना समय-सीमा बताए जारी किया गया, जो कानूनी रूप से अधूरा है।
हाई कोर्ट ने माना कि सामान्यतः अनुबंध से जुड़े विवाद अनुबंध में दी गई प्रक्रिया (जैसे मध्यस्थता) से हल किए जाने चाहिए, लेकिन इस मामले में आदेश सीधे याचिकाकर्ता के नागरिक अधिकारों को प्रभावित कर रहे थे और यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन था।
अदालत ने यह भी देखा कि:
- याचिकाकर्ता को सुनवाई का मौका नहीं मिला।
- पहले भी 59 ठेकेदारों के खिलाफ इसी तरह का सामूहिक आदेश दिया गया था, जिसमें व्यक्तिगत मामलों की जांच नहीं हुई थी।
- डिबारमेंट आदेश में समयावधि नहीं दी गई, जिससे वह आदेश अधूरा और असंवैधानिक हो गया।
इसलिए कोर्ट ने 24.08.2018 और 20.09.2019 के दोनों आदेश रद्द कर दिए और याचिकाकर्ता को 16.01.2023 को सुबह 11 बजे कार्यपालक अभियंता के कार्यालय में उपस्थित होने का निर्देश दिया, ताकि वह अपना पक्ष और सबूत प्रस्तुत कर सके। कार्यपालक अभियंता को सभी तथ्यों को देखकर नया आदेश पारित करने को कहा गया।
यदि नया आदेश भी विवादित हो, तो याचिकाकर्ता को फिर से अदालत आने की स्वतंत्रता दी गई।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला सरकारी विभागों, ठेकेदारों और आपूर्तिकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि:
- बिना सुनवाई का मौका दिए अनुबंध समाप्त करना, सिक्योरिटी डिपॉजिट जब्त करना या डिबार करना कानून के खिलाफ है।
- किसी भी प्रशासनिक आदेश, जिससे व्यक्ति के नागरिक अधिकार प्रभावित हों, में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन अनिवार्य है।
- सामूहिक और एक जैसा आदेश, बिना व्यक्तिगत जांच के, अदालत में टिक नहीं सकता।
सरकारी विभागों के लिए यह एक चेतावनी है कि वे कार्रवाई करते समय उचित प्रक्रिया का पालन करें, वरना आदेश रद्द हो सकता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- मुद्दा: क्या बिना सुनवाई के अनुबंध समाप्ति और डिबारमेंट प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है?
निर्णय: हां, ऐसे आदेश अवैध हैं। - मुद्दा: क्या समय-सीमा बताए बिना डिबारमेंट मान्य है?
निर्णय: नहीं, ऐसा आदेश अधूरा और असंवैधानिक है।
कारण:
- नागरिक अधिकारों को प्रभावित करने वाले मामलों में सुनवाई का अवसर जरूरी है।
- कोई भी दंडात्मक कार्रवाई व्यक्तिगत तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए, न कि सामूहिक आदेश पर।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 17615 of 2019
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री उमाशंकर तिवारी, अधिवक्ता
प्रतिवादियों की ओर से: श्री आलोक रंजन, AC to AAG-5
निर्णय का लिंक
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।