निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में कहा कि सरकारी ठेके से जुड़े विवाद, विशेष रूप से जब अनुबंध में मध्यस्थता (arbitration) का प्रावधान हो, तो सीधे कोर्ट में याचिका दायर करने की बजाय ठेके में दिए गए वैकल्पिक उपायों का पहले पालन करना चाहिए।
यह मामला एक निजी कंपनी से जुड़ा था, जिसने बिजली विभाग के तहत एक परियोजना का ठेका लिया था। कंपनी का आरोप था कि दक्षिण बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (SBPDCL) ने 20 जुलाई 2020 को एक पत्र (संख्या 1473) जारी कर बिना उचित कारण ठेका समाप्त कर दिया और साथ ही कंपनी को दो साल के लिए भविष्य की निविदाओं से डिबार (अयोग्य) कर दिया।
कंपनी का कहना था कि डिबारमेंट (debarment) जैसा दंड गंभीर होता है और इसके लिए अलग से उचित प्रक्रिया और सुनवाई होनी चाहिए। इसे सिर्फ एक पत्र में जोड़ कर लागू नहीं किया जा सकता। उन्होंने अदालत से यह भी अनुरोध किया कि बैंक गारंटी जब्त न की जाए और उन्हें काम पूरा करने दिया जाए।
जवाब में, सरकारी वकीलों ने बताया कि 20 अगस्त 2020 को एक नया पत्र (संख्या 1628) जारी किया गया था, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि पहले वाले पत्र में डिबारमेंट का जिक्र गलती से कर दिया गया था और अब इसे हटा दिया गया है। यानी कंपनी अब डिबार नहीं है।
साथ ही, सरकारी पक्ष ने यह भी बताया कि ठेके की शर्तों (GCC) में स्पष्ट रूप से लिखा है कि यदि कोई विवाद हो तो पहले मध्यस्थता के माध्यम से समाधान किया जाना चाहिए (धारा 10.31 और 10.32)। इसलिए सीधे हाईकोर्ट में याचिका दायर करना सही नहीं है।
सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, न्यायालय ने कहा कि चूंकि ठेके में पहले से मध्यस्थता की व्यवस्था है, इसलिए याचिकाकर्ता को वही रास्ता अपनाना चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि डिबारमेंट अब प्रभावी नहीं है क्योंकि उसे बाद में रद्द कर दिया गया था। इस आधार पर याचिका खारिज कर दी गई।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला सरकारी विभागों और ठेकेदारों दोनों के लिए एक स्पष्ट संकेत है कि अनुबंध के विवादों में पहले से तय प्रक्रिया और समाधान के रास्ते का पालन अनिवार्य है। जब ठेके में मध्यस्थता का विकल्प हो, तो कोर्ट सीधे हस्तक्षेप नहीं करेगा।
साथ ही, यह भी स्पष्ट हुआ कि डिबारमेंट जैसा निर्णय तभी वैध होगा जब उसे अलग से, उचित प्रक्रिया और स्पष्ट आदेश के माध्यम से लागू किया गया हो। यदि बाद में विभाग उसे वापस ले ले, तो उसे प्रभावी नहीं माना जाएगा।
इस फैसले से सरकारी अनुबंधों में पारदर्शिता और ठेकेदारों को न्यायसंगत प्रक्रिया का भरोसा मिलता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या ठेका समाप्त करने और डिबारमेंट का आदेश कोर्ट में चुनौती देने योग्य था?
- कोर्ट का मत: नहीं, पहले से अनुबंध में मध्यस्थता का विकल्प होने के कारण कोर्ट में याचिका उचित नहीं।
- क्या डिबारमेंट अब भी प्रभावी है?
- कोर्ट का मत: नहीं, विभाग द्वारा जारी स्पष्टीकरण पत्र में डिबारमेंट को रद्द कर दिया गया है।
- क्या कोर्ट को प्रक्रिया की कथित मनमानी के कारण हस्तक्षेप करना चाहिए था?
- कोर्ट का मत: नहीं, चूंकि ठेके में विवाद समाधान की व्यवस्था मौजूद है, इसलिए उसी का पालन जरूरी है।
मामले का शीर्षक
Dongfang Electronics Private Limited बनाम भारत सरकार एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 7353 of 2020
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति विकास जैन
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री जे. एस. अरोड़ा, वरिष्ठ अधिवक्ता (याचिकाकर्ता की ओर से)
- श्री उमेश प्रसाद सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता (उत्तरदाता सं. 3 से 10 की ओर से)
- श्री कुणाल तिवारी, अधिवक्ता (उत्तरदाता सं. 3 से 10 की ओर से)
- डॉ. के. एन. सिंह, ASG (उत्तरदाता सं. 1 और 2 की ओर से)
- डॉ. अंशुमान, CGC (उत्तरदाता सं. 1 और 2 की ओर से)
निर्णय का लिंक
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