निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला एक निर्माण कंपनी (याचिकाकर्ता) और बिहार सड़क निर्माण विभाग (प्रतिवादी) के बीच विवाद से जुड़ा है।
2016-17 में राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-101) की मरम्मत का ठेका लगभग ₹5.41 करोड़ की लागत से याचिकाकर्ता कंपनी को दिया गया। काम जनवरी 2017 में शुरू हुआ और जून 2017 में तय समय सीमा में पूरा भी हो गया।
काम के दौरान कंपनी को बिटुमेन (सड़क निर्माण में प्रयुक्त मुख्य सामग्री) बरौनी रिफाइनरी से नहीं मिल सका। कमी की वजह से कंपनी ने मथुरा रिफाइनरी से बिटुमेन लिया, और विभाग ने भी इसकी अनुमति दी।
काम पूरा होने के बाद सड़क का कुछ हिस्सा बाढ़ में डूब गया और खराब हो गया। कंपनी ने तुरंत मरम्मत की और सहायक अभियंता ने निरीक्षण कर काम को प्रमाणित भी कर दिया।
लेकिन बाद में विभाग ने गड्ढ़ों की शिकायत की और कहा कि कंपनी ने कुछ फर्जी चालान जमा किए हैं। इस आधार पर दिसंबर 2018 में विभाग ने कंपनी को 10 साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया।
कंपनी का कहना था:
- उसने मथुरा रिफाइनरी से बिटुमेन खरीदा और बैंक स्टेटमेंट भी सबूत के तौर पर दिया।
- पटना IOCL (इंडियन ऑयल) दफ्तर का चालानों पर टिप्पणी करना उचित नहीं था, क्योंकि चालान मथुरा रिफाइनरी से जारी हुए थे।
- कोई आपत्ति काम के दौरान नहीं उठाई गई; भुगतान रोकने और दबाव बनाने के लिए बाद में आरोप लगाए गए।
- 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग बिल्कुल अनुचित और अत्यधिक सज़ा है।
विभाग का कहना था:
- याचिका 20 महीने की देरी से दाखिल हुई।
- वैकल्पिक उपाय (अपील) उपलब्ध था, लेकिन याचिकाकर्ता ने सीधा हाईकोर्ट का रुख किया।
- कई चालान संदेहास्पद लगे, इसलिए कार्रवाई उचित थी।
- मामले में IPC की धारा 420, 467, 468 और 471 के तहत एफआईआर भी दर्ज हो चुकी है।
न्यायालय का विचार
माननीय न्यायमूर्ति अशुतोष कुमार ने कई सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला दिया, जैसे Erusian Equipment (1975), Kulja Industries (2014) और UMC Technologies (2020)। इन मामलों में यह सिद्धांत स्पष्ट किया गया है कि:
- ब्लैकलिस्टिंग किसी भी ठेकेदार की प्रतिष्ठा और व्यवसाय पर गंभीर असर डालती है।
- यह केवल उचित प्रक्रिया, सुनवाई और ठोस कारणों के बाद ही की जा सकती है।
- सज़ा हमेशा अनुपातिक (proportionate) होनी चाहिए। सामान्यत: 3 से 5 साल तक ब्लैकलिस्टिंग अधिकतम अवधि मानी जाती है।
न्यायालय ने पाया:
- 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग अनुचित, कठोर और प्रतिशोधात्मक प्रतीत होती है।
- बैंक स्टेटमेंट को नजरअंदाज करना और केवल IOCL पटना की राय पर भरोसा करना उचित नहीं है।
- प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया।
हालांकि, चूँकि एफआईआर दर्ज हो चुकी थी, अदालत ने सीधे ब्लैकलिस्टिंग आदेश को रद्द नहीं किया। इसके बजाय आदेश दिया कि कंपनी 15 दिनों के भीतर अपील दाखिल करे, और अपीलीय प्राधिकारी (विभागीय सचिव) व्यक्तिगत सुनवाई कर 2 महीने में फैसला सुनाएँ।
इस प्रकार, याचिका निपटा दी गई और अपील का रास्ता खोला गया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव
- ठेकेदारों के लिए: यह फैसला संदेश देता है कि ब्लैकलिस्टिंग जैसी कठोर कार्रवाई बिना उचित कारण और सुनवाई के नहीं हो सकती। अदालतें यह देखती हैं कि क्या सज़ा न्यायसंगत और अनुपातिक है।
- सरकार/विभाग के लिए: यह याद दिलाता है कि मनमाने ढंग से ठेकेदारों को दंडित करना उचित नहीं है। ब्लैकलिस्टिंग की अवधि और कारण तय करने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाए जाने चाहिए।
- आम जनता के लिए: यह बताता है कि सड़क निर्माण जैसे सार्वजनिक कार्यों में विवाद हो सकते हैं, लेकिन विभाग की कार्रवाई निष्पक्ष और कानूनी होनी चाहिए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग वैध थी?
→ अदालत ने कहा यह असंगत और अनुचित है। - क्या IOCL पटना की रिपोर्ट पर भरोसा किया जा सकता था?
→ अदालत ने माना कि उसका आधार कमजोर था क्योंकि चालान मथुरा रिफाइनरी से जारी हुए थे। - क्या प्राकृतिक न्याय का पालन हुआ?
→ नहीं, कंपनी को निष्पक्ष अवसर नहीं दिया गया। - अंतिम उपाय क्या था?
→ याचिकाकर्ता को अपील दाखिल करने का निर्देश दिया गया, और अपीलीय प्राधिकारी को 2 महीने में सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया गया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Erusian Equipment & Chemicals Ltd. v. State of West Bengal, (1975) 1 SCC 70
- Patel Engineering Ltd. v. Union of India, (2012) 11 SCC 257
- Kulja Industries Ltd. v. BSNL, (2014) 14 SCC 731
- Southern Painters v. Fertilizers and Chemicals Travancore Ltd., 1994 Supp (2) SCC 699
- B.S.N. Joshi & Sons v. Nair Coal Services Ltd., (2006) 11 SCC 548
- Daffodils Pharmaceuticals Ltd. v. State of U.P., 2019 (12) JT 283
- UMC Technologies Pvt. Ltd. v. Food Corporation of India, Civil Appeal No. 3687 of 2020
- Raghunath Thakur v. State of Bihar, (1989) 1 SCC 229
- Gorkha Securities Services v. NCT of Delhi, (2014) 9 SCC 105
- Vetindia Pharmaceuticals Ltd. v. State of U.P., Civil Appeal No. 3647 of 2020
मामले का शीर्षक
Espan Infrastructure (I) Ltd. बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 7712 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(1)PLJR 421
माननीय न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति अशुतोष कुमार
वकीलों के नाम और पेशी
- श्री आलोक कुमार अग्रवाल — याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री रवि भारद्वाज — प्रतिवादियों की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNzcxMiMyMDIwIzEjTg==-W1N7UI54aHk=
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