पटना उच्च न्यायालय 2021 : अधूरी नोटिस और कठोर दंड के कारण कांट्रैक्टर की ब्लैकलिस्टिंग रद्द

पटना उच्च न्यायालय 2021 : अधूरी नोटिस और कठोर दंड के कारण कांट्रैक्टर की ब्लैकलिस्टिंग रद्द

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला एक निर्माण कंपनी (याचिकाकर्ता) से जुड़ा है जिसे बिहार सरकार के पथ निर्माण विभाग ने 10 साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया था और कथित अतिरिक्त भुगतान वापस करने का आदेश भी दिया था। कंपनी ने इस आदेश (दिनांक 27 जनवरी 2020) को पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी।

याचिकाकर्ता एक क्लास-I कांट्रैक्टर है जिसने 2017–18 में सड़क चौड़ीकरण और मजबूती का ठेका लिया था। जांच के लिए भेजी गई “फ्लाइंग स्क्वॉड” ने अनियमितताएं बताई। विभाग ने अगस्त 2019 में कंपनी को नोटिस भेजा, लेकिन कंपनी का कहना था कि:

  1. फ्लाइंग स्क्वॉड की रिपोर्ट कभी उपलब्ध नहीं कराई गई, जबकि वही आरोप का आधार थी।
  2. नोटिस में यह नहीं बताया गया कि कंपनी को ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है।
  3. कंपनी द्वारा दिया गया जवाब ध्यान में नहीं लिया गया।
  4. 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग अनुचित और कठोर है।
  5. वसूली का आदेश बिना रकम स्पष्ट किए दिया गया, जो अवैध है।

राज्य सरकार ने कहा कि:

  • कांट्रैक्टर ने बिना काम किए भुगतान लिया और अतिरिक्त गाड़ियों का खर्च भी बिना वाउचर के दिखाया।
  • विशेष तकनीकी समिति ने भी अनियमितताएं पाई।
  • ब्लैकलिस्टिंग बिहार कांट्रैक्टर पंजीकरण नियम, 2007 के तहत की गई।
  • कंपनी चाहे तो अपील कर सकती है, सीधे हाई कोर्ट आना उचित नहीं है।

अदालत के निष्कर्ष:

  • नोटिस में अगर संभावित दंड (जैसे ब्लैकलिस्टिंग) का जिक्र ही नहीं है, तो यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। इस पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला Gorkha Security Services v. Govt. of NCT of Delhi (2014) लागू होता है।
  • बिना दस्तावेज (जैसे फ्लाइंग स्क्वॉड रिपोर्ट) उपलब्ध कराए बचाव का मौका देना सिर्फ दिखावा है।
  • आदेश में यह नहीं बताया गया कि 10 साल की अवधि क्यों तय की गई। इतनी लंबी ब्लैकलिस्टिंग को अदालत ने अनुपातहीन और अनुचित माना।
  • अदालत ने Vetindia Pharmaceutical Ltd. v. State of U.P. (2020) और Kulja Industries Ltd. v. BSNL (2014) जैसे फैसलों का हवाला दिया और कहा कि ब्लैकलिस्टिंग का गंभीर असर होता है और यह सोच-समझकर, उचित कारण के साथ ही दी जानी चाहिए।

इसलिए अदालत ने ब्लैकलिस्टिंग का आदेश रद्द कर दिया और विभाग को निर्देश दिया कि:

  • नया संपूर्ण नोटिस जारी करें, जिसमें संभावित कार्रवाई स्पष्ट लिखी हो।
  • कंपनी को सारे दस्तावेज दें।
  • कंपनी को जवाब देने का उचित समय दें।
  • उसके बाद ही कारण सहित अंतिम निर्णय लें।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

  • प्राकृतिक न्याय की रक्षा : कोई भी विभाग दंड देने से पहले साफ-साफ नोटिस दे और सभी दस्तावेज साझा करे।
  • ब्लैकलिस्टिंग पर सीमा : अदालत ने साफ किया कि लंबे समय (जैसे 10 साल) की ब्लैकलिस्टिंग अक्सर अनुपातहीन और कठोर होती है।
  • कांट्रैक्टरों की सुरक्षा : व्यवसाय खत्म कर देने वाले दंड से पहले निष्पक्ष सुनवाई जरूरी है।
  • प्रशासनिक अनुशासन : विभागों को चेतावनी है कि बिना पारदर्शी प्रक्रिया अपनाए किसी भी कठोर कार्रवाई का आदेश टिकेगा नहीं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या नोटिस में संभावित दंड का जिक्र न होने पर कार्यवाही वैध है?
    नहीं। यह अधूरी नोटिस है और अवैध है।
  • क्या जरूरी दस्तावेज न देने से कार्यवाही प्रभावित होती है?
    हां। इससे बचाव का अधिकार छिन जाता है।
  • क्या 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग उचित है?
    नहीं। यह अनुपातहीन और अनुचित है।
  • अंतिम राहत: आदेश रद्द, विभाग को नया नोटिस और उचित प्रक्रिया का पालन करने का निर्देश।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Gorkha Security Services v. Govt. of NCT of Delhi, (2014) 9 SCC 105
  • Erusian Equipment & Chemicals Ltd. v. State of West Bengal, (1975) 1 SCC 70
  • Raghunath Thakur v. State of Bihar, (1989) 1 SCC 229
  • Patel Engineering Ltd. v. Union of India, (2012) 11 SCC 257

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Gorkha Security Services v. Govt. of NCT of Delhi, (2014) 9 SCC 105
  • Vetindia Pharmaceutical Ltd. v. State of U.P., 2020 SCC OnLine SC 912
  • Kulja Industries Ltd. v. BSNL, (2014) 14 SCC 731
  • Daffodils Pharmaceuticals Ltd. v. State of U.P., (2019) 17 Scale 758

मामले का शीर्षक

Rishi Builders India Pvt. Ltd. v. State of Bihar & Ors.

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 3601 of 2020

उद्धरण (Citation)

2021(1) PLJR 632

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति अशुतोष कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से : श्री आशीष गिरी, अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से : श्री नरेंद्र कुमार सिंह, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMzYwMSMyMDIwIzEjTg==-MPyojfOpII4=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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