बिहार हाई कोर्ट का फैसला: सरकारी देरी की वजह से कॉन्ट्रैक्टर की ब्लैकलिस्टिंग रद्द

बिहार हाई कोर्ट का फैसला: सरकारी देरी की वजह से कॉन्ट्रैक्टर की ब्लैकलिस्टिंग रद्द

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उस निर्माण कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसे बिहार राज्य जलविद्युत निगम (Hydroelectric Power Corporation) ने तीन वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया था और उसकी सुरक्षा जमा राशि (security deposit) जब्त कर ली थी। कोर्ट ने कहा कि निगम की खुद की देरी और लापरवाही के कारण यह कार्य पूरा नहीं हो सका था, इसलिए कॉन्ट्रैक्टर को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

मामला तब शुरू हुआ जब मार्च 2019 में निगम ने कई अधूरे जलविद्युत प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए टेंडर निकाला। याचिकाकर्ता कंपनी को अमेठी मिनी हाइडल प्रोजेक्ट (1×500 kW) का काम ₹5.33 करोड़ में दिया गया और 14 अक्टूबर 2019 को समझौता हुआ। काम एक साल में पूरा होना था।

लेकिन साइट पर बाढ़ आ गई और पानी हटने के बाद साइट की स्थिति पूरी तरह बदल गई। याचिकाकर्ता ने मांग की कि साइट को पानी से मुक्त कर दिया जाए और काम की दरों में 5% की वृद्धि की जाए। इसके लिए कंपनी ने अक्टूबर 2020 से जनवरी 2021 तक कई बार पत्र भी लिखा, लेकिन निगम की ओर से कोई ठोस जवाब नहीं मिला।

2023 में कंपनी ने पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर की (CWJC No. 371/2023), जिस पर कोर्ट ने निर्देश दिया कि निगम याचिकाकर्ता की अर्जी पर कानून के मुताबिक निर्णय ले। इसके जवाब में निगम ने 1 मार्च 2024 को एक आदेश पारित किया जिसमें कॉन्ट्रैक्टर को ब्लैकलिस्ट किया गया और उसकी सुरक्षा जमा राशि जब्त कर ली गई।

कोर्ट ने इस आदेश की समीक्षा करते हुए कहा कि साइट की स्थिति ठीक से नहीं सौंपी गई थी और जरूरी दस्तावेज भी समय पर नहीं दिए गए। ऐसे में सिर्फ कंपनी को दोष नहीं दिया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि ब्लैकलिस्ट करना एक गंभीर कार्रवाई है और इसमें उचित प्रक्रिया (due process) का पालन करना जरूरी है, जिसमें नोटिस देना और जवाब का मौका देना शामिल है। निगम ने ऐसा नहीं किया।

इसलिए कोर्ट ने ब्लैकलिस्ट करने और बैंक गारंटी जब्त करने का आदेश रद्द कर दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला ठेकेदारों के अधिकारों को संरक्षण देने वाला है, खासकर उन मामलों में जब सरकारी विभाग अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करते। यह निर्णय बिहार में सार्वजनिक निर्माण कार्यों से जुड़े ठेकेदारों के लिए राहत भरा है। कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि सरकारी एजेंसियां अपनी लापरवाही का ठीकरा निजी कंपनियों पर नहीं फोड़ सकतीं। साथ ही, ब्लैकलिस्टिंग जैसी सख्त कार्रवाई बिना प्रक्रिया अपनाए नहीं की जा सकती।

इससे यह भी संदेश जाता है कि सभी अनुबंधों में दोनों पक्षों की जिम्मेदारी होती है और किसी एक को मनमाने तरीके से दंडित नहीं किया जा सकता।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या ब्लैकलिस्टिंग और सुरक्षा राशि की जब्ती उचित थी?
    ➤ नहीं, कोर्ट ने इसे अनुचित और अवैध माना।
  • क्या ठेकेदार पूरी तरह से देरी के लिए जिम्मेदार था?
    ➤ नहीं, साइट सौंपने और दस्तावेज देने में सरकारी पक्ष की देरी मुख्य कारण थी।
  • क्या ब्लैकलिस्ट करने से पहले उचित नोटिस दिया गया था?
    ➤ नहीं, कोई शो-कॉज नोटिस या सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।
  • क्या अनुबंध की धाराओं (1.2.21 और 1.1.12(iii)) का सही उपयोग किया गया?
    ➤ नहीं, कोर्ट ने कहा कि इन धाराओं की शर्तें पूरी नहीं की गई थीं।

मामले का शीर्षक
D.B.S. Constructions Pvt. Ltd. बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 10478 of 2024

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री अशुतोष कुमार (कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश)
माननीय श्री पार्थ सारथी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री प्रभात रंजन, अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री मृितुंजय कुमार, अधिवक्ता — निगम की ओर से

निर्णय का लिंक
https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/3ac57933-7c5b-4209-80c1-7a710db96918.pdf&search=Blacklisting

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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