निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने ग्रामीण कार्य विभाग का वह आदेश रद्द कर दिया जिसमें एक ठेकेदार को 10 साल के लिए ब्लैकलिस्ट किया गया था। यह मामला प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के तहत तेंगरा रोड से मणिक बीघा तक सड़क निर्माण कार्य से जुड़ा था। याचिकाकर्ता को यह काम 15.01.2018 को दिया गया था और समय सीमा 29.12.2018 तय थी।
काम शुरू हुआ लेकिन बीच में असामाजिक तत्वों, जिनमें नक्सल समूह भी शामिल बताए गए, ने रंगदारी की मांग की और निर्माण में बाधा डाली। याचिकाकर्ता ने इस बारे में अधिकारियों को सूचना दी और समय बढ़ाने का अनुरोध किया। इसके बावजूद 30.11.2019 को कार्यपालक अभियंता ने अनुबंध रद्द कर दिया, सुरक्षा जमा और earnest money ज़ब्त कर ली, और ₹85,521 की वसूली की चेतावनी दी।
याचिकाकर्ता ने इस फैसले को Empowered Standing Committee के सामने चुनौती दी और मामला मध्यस्थता (arbitration) में चला गया। जब मामला लंबित था, विभाग ने 05.06.2020 को उसी काम के लिए पुनः निविदा निकाली। दिलचस्प बात यह रही कि याचिकाकर्ता ने यह निविदा फिर जीती, काम समय पर पूरा किया और भुगतान भी प्राप्त किया।
बाद में विभाग ने बिना स्पष्ट शो कॉज़ नोटिस दिए 04.01.2022 को 10 साल के लिए ब्लैकलिस्ट करने का आदेश जारी कर दिया। याचिकाकर्ता का कहना था—
- देरी उसके नियंत्रण से बाहर थी और कानून-व्यवस्था की स्थिति के कारण हुई।
- ब्लैकलिस्ट करने से पहले उचित सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।
- उसी विभाग ने बाद में उसे वही काम दिया जिसे उसने समय पर पूरा किया।
- 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग अत्यधिक और अनुचित है।
राज्य का कहना था कि नोटिस दिया गया था और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया गया।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों (एरूशियन इक्विपमेंट 1975, रघुनाथ ठाकुर 1989, गोरखा सिक्योरिटी सर्विसेज 2014, UMC टेक्नोलॉजीज 2021, कुलजा इंडस्ट्रीज 2014) का हवाला देते हुए कहा—
- ब्लैकलिस्टिंग में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का सख्ती से पालन जरूरी है।
- उचित नोटिस और निष्पक्ष सुनवाई अनिवार्य है।
- सजा अपराध के अनुरूप होनी चाहिए।
अदालत ने पाया—
- भले ही नोटिस देने का दावा किया गया, लेकिन आदेश में याचिकाकर्ता के जवाब पर कोई विचार नहीं किया गया, जिससे नोटिस महज़ औपचारिकता बन गया।
- 10 साल का प्रतिबंध लगाने का कोई ठोस कारण नहीं बताया गया।
- अनुपातिकता (proportionality) का पालन नहीं किया गया, जबकि याचिकाकर्ता को बाद में वही काम देकर उसने उसे सफलतापूर्वक पूरा किया।
- देरी के कारण, जो कि असामाजिक तत्वों के कारण थे, पूरी तरह नजरअंदाज कर दिए गए।
इसलिए अदालत ने 04.01.2022 का आदेश अत्यधिक, असंगत और प्रक्रिया में खामियों से युक्त मानते हुए रद्द कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला सरकारी विभागों के लिए स्पष्ट संदेश है—
- ब्लैकलिस्टिंग जैसे गंभीर निर्णय में कारणयुक्त आदेश और उचित प्रक्रिया अनिवार्य है।
- प्रभावित पक्ष के बचाव पर गंभीरता से विचार करना ज़रूरी है, महज़ औपचारिकता नहीं।
- यदि ठेकेदार को बाद में वही काम देकर वह सफलतापूर्वक पूरा करता है, तो लंबे समय की ब्लैकलिस्टिंग का आधार कमजोर हो जाता है।
ठेकेदारों के लिए यह राहत है कि अगर विभाग मनमाना, बिना कारण या अत्यधिक कठोर निर्णय लेता है, तो अदालत हस्तक्षेप कर सकती है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- मुद्दा 1: क्या ब्लैकलिस्टिंग से पहले वैध और निष्पक्ष शो कॉज़ प्रक्रिया अपनाई गई?
निर्णय: नहीं। आदेश में बचाव पर विचार न करना प्रक्रिया को औपचारिक बना देता है। - मुद्दा 2: क्या सजा अनुपातिक थी?
निर्णय: नहीं। 10 साल का प्रतिबंध अत्यधिक कठोर और बाद में वही काम दिए जाने के विपरीत था। - मुद्दा 3: क्या देरी के कारणों पर विचार हुआ?
निर्णय: नहीं। याचिकाकर्ता के नियंत्रण से बाहर कारणों को नजरअंदाज किया गया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Erusian Equipment and Chemicals Ltd. v. State of West Bengal, AIR 1975 SC 266.
- Raghunath Thakur v. State of Bihar, (1989) 1 SCC 229.
- Gorkha Security Services v. Govt. (NCT of Delhi), (2014) 9 SCC 105.
- UMC Technologies (P) Ltd. v. Food Corporation of India, (2021) 2 SCC 551.
- Kulja Industries Ltd. v. Western Telecom Project BSNL, (2014) 14 SCC 731.
मामले का शीर्षक
Arvind Kumar Singh v. State of Bihar & Others
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 1193 of 2022
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री रविन्द्र कुमार सिन्हा, अधिवक्ता
प्रतिवादी की ओर से: श्रीमती अर्चना मीनाक्षी, GP-6
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