पटना उच्च न्यायालय ने ठेकेदार कंपनी की असीमित अवधि की डिबारमेंट चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

पटना उच्च न्यायालय ने ठेकेदार कंपनी की असीमित अवधि की डिबारमेंट चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

निर्णय की सरल व्याख्या

इस मामले में एक निर्माण कंपनी (याचिकाकर्ता) ने बिहार के भवन निर्माण विभाग, मधेपुरा के कार्यपालक अभियंता द्वारा 26 फरवरी 2022 को जारी आदेश को चुनौती दी। इस आदेश में कंपनी को अनिश्चित काल के लिए डिबार (काम करने से रोका) कर दिया गया था। कंपनी का कहना था कि यह आदेश अधिकार क्षेत्र के बिना जारी हुआ और पहले दिए गए नोटिस के जवाब को सही तरीके से नहीं देखा गया।

पृष्ठभूमि में, 16 जून 2020 को याचिकाकर्ता ने कार्यपालक अभियंता के साथ एक अनुबंध किया था। काम में आईटीआई, मधेपुरा परिसर में प्रशासनिक और कार्यशाला भवन, स्टाफ हॉस्टल, कैंटीन, प्राचार्य और उप-प्राचार्य आवास, बाउंड्री वॉल, पहुंच मार्ग, फर्नीचर, अग्नि सुरक्षा और विद्युत कार्य आदि शामिल थे।

अनुबंध के अनुसार, काम 23 अक्टूबर 2021 तक पूरा होना था। लेकिन कंपनी ने बताया कि—

  • साइट पर स्थानीय लोगों का अतिक्रमण था और 10 मई 2020 को ही साइट का कब्जा मिला, वह भी कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान।
  • उसके बाद भारी बारिश से आई बाढ़ ने और देरी कर दी।
    कंपनी का कहना था कि यह “फोर्स मेज्योर” यानी नियंत्रण से बाहर की स्थिति थी, जिसकी जानकारी विभाग को दी गई थी।

काम में देरी पर कार्यपालक अभियंता ने नोटिस जारी किया और कारण पूछे। कंपनी ने 25 जनवरी 2022 को देरी के कारण बताए। इसके बावजूद 26 फरवरी 2022 को कार्यपालक अभियंता ने आदेश पारित कर कंपनी को डिबार कर दिया और शेष काम तुरंत पूरा करने का निर्देश दिया।

अदालत में कंपनी ने कहा:

  1. कार्यपालक अभियंता को डिबारमेंट का अधिकार नहीं है; बिहार कांट्रैक्टर पंजीकरण नियम, 2007 के नियम 11(c) के तहत केवल मुख्य अभियंता ऐसा कर सकते हैं।
  2. आदेश बिना उनके जवाब पर विचार किए पारित हुआ।

राज्य पक्ष ने कहा:

  • अनुबंध कार्यपालक अभियंता और कंपनी के बीच हुआ था, इसलिए उन्हें इस काम से डिबार करने का अधिकार है।
  • ब्लैकलिस्ट करने का अधिकार केवल मुख्य अभियंता को है, लेकिन यहां मामला डिबारमेंट का है।
  • कंपनी ने अनुबंध की प्रति और 22 नवंबर 2021 का पत्र अदालत में पेश नहीं किया और नोटिस न मिलने का दावा सबूत के बिना किया।

पटना हाई कोर्ट का निर्णय:

  • जब अनुबंध कार्यपालक अभियंता के साथ हुआ है, तो उन्हें डिबार करने का अधिकार है।
  • ब्लैकलिस्ट करने के लिए मुख्य अभियंता की मंजूरी जरूरी है, लेकिन यहां ब्लैकलिस्टिंग नहीं हुई थी।
  • याचिकाकर्ता ने जरूरी दस्तावेज नहीं दिए और पूरी जानकारी के बिना अदालत आए, इसलिए “क्लीन हैंड्स” सिद्धांत का उल्लंघन हुआ।
  • इस आधार पर याचिका खारिज कर दी गई। बाद में कंपनी ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जो दी गई, ताकि वे कानून के तहत अन्य उपाय कर सकें।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला सरकारी ठेकों में काम करने वाले ठेकेदारों और सरकारी विभागों दोनों के लिए अहम है:

  1. अधिकार क्षेत्र की स्पष्टता – किस अधिकारी को ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि अनुबंध किस स्तर पर हुआ और कार्रवाई किस प्रकार की है।
  2. पूरी जानकारी देना जरूरी – अदालत में आने से पहले सभी जरूरी दस्तावेज और तथ्य पेश करना जरूरी है। यदि अदालत को लगे कि कोई जानकारी छुपाई गई है, तो राहत मिलने की संभावना कम हो जाती है।

सरकारी विभागों के लिए यह संदेश है कि वे अनुबंध में तय समयसीमा के पालन के लिए कड़ी कार्रवाई कर सकते हैं, बशर्ते प्रक्रिया और अधिकार का पालन हो।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या कार्यपालक अभियंता को ठेकेदार को डिबार करने का अधिकार था?
    ✔ हां, क्योंकि अनुबंध उन्हीं के साथ हुआ था।
  • क्या नोटिस न मिलने से प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ?
    ✘ सबूत नहीं मिलने पर यह दावा खारिज हुआ।
  • क्या अधूरी जानकारी के साथ दायर याचिका स्वीकार हो सकती है?
    ✘ नहीं, क्योंकि याचिकाकर्ता ने जरूरी दस्तावेज पेश नहीं किए।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Universal Interior Decorator बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, सीडब्ल्यूजेसी संख्या 3683/2019, निर्णय दिनांक 19.11.2019

मामले का शीर्षक
Indra Narain Singh Contractors Pvt. Ltd. बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 7847 of 2022

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बाजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री आदित्य प्रकाश सहाय, अधिवक्ता
प्रतिवादियों की ओर से: श्री मनोज कुमार अंबष्ठा (SC26), अधिवक्ता; श्री सुभोध कुमार, AC to SC26

निर्णय का लिंक
https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/e7ef3230-7aaf-4e12-ae6f-13f35a1d672d.pdf&search=Debarment

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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