ठेकेदार को बिना सुनवाई के डिबार करना गलत: पटना हाई कोर्ट का फैसला

ठेकेदार को बिना सुनवाई के डिबार करना गलत: पटना हाई कोर्ट का फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

इस मामले में एक पंजीकृत ठेकेदार को बिहार भवन निर्माण विभाग, दरभंगा के कार्यपालक अभियंता द्वारा स्थायी रूप से डिबार (निष्कासित) कर दिया गया था। ठेकेदार की पंजीकरण वैधता 2 अक्टूबर 2018 तक थी, लेकिन विभाग ने 17 दिसंबर 2018 को एक पत्र (Annexure P-9) के जरिए उन्हें स्थायी रूप से डिबार कर दिया, जिससे वह आगे सरकारी टेंडर लेने से वंचित हो गए।

यह विवाद दरभंगा के चंद्रधारी संग्रहालय की मरम्मत और सौंदर्यीकरण के अनुबंध से जुड़ा है, जो वर्तमान में बिहार सार्वजनिक निर्माण अनुबंध विवाद मध्यस्थता न्यायाधिकरण में विचाराधीन है।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट के समक्ष तीन प्रमुख दलीलें दीं:

  1. कार्यपालक अभियंता को ठेकेदार को डिबार करने का कोई अधिकार नहीं है।
  2. डिबार करने से पहले कोई नोटिस या सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।
  3. स्थायी रूप से डिबार करना कानून की दृष्टि से असंगत और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के विपरीत है।

पटना हाई कोर्ट ने बिहार कांट्रैक्टर पंजीकरण नियमावली, 2007 की धारा 11(c) का हवाला देते हुए कहा कि ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट या सस्पेंड करने का अधिकार केवल मुख्य अभियंता या उनसे उच्च अधिकारी को है। कार्यपालक अभियंता इस श्रेणी में नहीं आते, इसलिए उनका आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर था।

कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति को ब्लैकलिस्ट करने से पहले उसे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के तहत सुनवाई का पूरा अवसर मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले M/s Kulja Industries v. BSNL (AIR 2014 SC 9) का हवाला देते हुए कोर्ट ने दोहराया कि ब्लैकलिस्ट करना कोई साधारण प्रक्रिया नहीं है, बल्कि इसका गंभीर असर व्यक्ति की आजीविका पर पड़ता है।

अंततः, पटना हाई कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता को न तो सुनवाई दी गई, न ही आदेश जारी करने वाले अधिकारी सक्षम थे। इसलिए, डिबार करने का आदेश रद्द कर दिया गया और याचिका स्वीकार कर ली गई।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला सरकारी विभागों को यह याद दिलाता है कि किसी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करते समय कानूनी प्रक्रिया और अधिकार क्षेत्र का पूरा पालन होना चाहिए। इसके प्रभाव:

  • सरकारी अधिकारियों की मनमानी पर रोक लगेगी।
  • ठेकेदारों को न्याय मिलने की उम्मीद बढ़ेगी।
  • न्यायिक समीक्षा का अधिकार मजबूत होता है।
  • विभागीय कार्रवाई में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व आएगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या कार्यपालक अभियंता को डिबार करने का अधिकार था?
    ❌ नहीं। यह अधिकार मुख्य अभियंता या उससे ऊपर के अधिकारी को है।
  • क्या डिबार करने से पहले नोटिस दिया गया था?
    ❌ नहीं। इससे प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ।
  • क्या स्थायी डिबार करना उचित था?
    ❌ नहीं। यह अनुपातहीन और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विपरीत था।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • M/s Kulja Industries Limited v. Chief Gen. Manager, W.T. Proj., BSNL and Others, AIR 2014 SC 9

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Erusian Equipment & Chemicals Ltd. v. State of West Bengal, (1975) 1 SCC 70
  • Southern Painters v. Fertilizers & Chemicals Travancore Ltd., AIR 1994 SC 1277
  • Patel Engineering Ltd. v. Union of India, AIR 2012 SC 2342
  • B.S.N. Joshi & Sons Ltd. v. Nair Coal Services Ltd., AIR 2007 SC 437
  • Joseph Vilangandan v. The Executive Engineer, PWD, AIR 1978 SC 930

मामले का शीर्षक

Universal Interior Decorator बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

CWJC No. 3683 of 2019

उद्धरण (Citation)

2020 (1) PLJR 62

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री मनीष सहाय और श्री अनिल कुमार सिन्हा
  • राज्य सरकार की ओर से: श्री उदय प्रसाद (एसी टू जीपी-22)

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/vieworder/MTUjMzY4MyMyMDE5IzUjTg==-1Bf21iGF3wU=

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Aditya Kumar

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