पतना हाई कोर्ट ने 2004 के फायरिंग मामले में दिया बरी करने का आदेश, साक्ष्य में विरोधाभास बना वजह

पतना हाई कोर्ट ने 2004 के फायरिंग मामले में दिया बरी करने का आदेश, साक्ष्य में विरोधाभास बना वजह

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक पुराने आपराधिक मामले में छह अभियुक्तों को बरी कर दिया। यह मामला वर्ष 2004 में भोजपुर जिले के बालबन्ध गांव में हुई एक कथित फायरिंग की घटना से जुड़ा था, जिसमें एक व्यक्ति के घायल होने की बात कही गई थी। निचली अदालत ने सभी अभियुक्तों को दोषी मानते हुए कठोर कारावास की सजा दी थी, लेकिन हाई कोर्ट ने इसे सबूतों के अभाव और गवाही में विरोधाभास के आधार पर रद्द कर दिया।

घटना के अनुसार, पीड़ित अपने साले के साथ दुकान पर सामान खरीदने गया था। वहां गांव का एक व्यक्ति बहस करने लगा और फिर मारपीट शुरू हो गई। आरोप था कि एक अभियुक्त ने देसी पिस्टल से गोली चलाई जो पीड़ित के बाएं जांघ में लगी। इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 341 और 307/34 तथा शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ।

2013 में ट्रायल कोर्ट ने सभी अभियुक्तों को दोषी पाया और 10 साल की सश्रम कारावास, एक माह की सजा धारा 341 के लिए और एक अभियुक्त को शस्त्र अधिनियम के तहत 3 साल की अतिरिक्त सजा सुनाई।

लेकिन 2024 में पटना हाई कोर्ट ने अपील पर सुनवाई करते हुए पाया कि अभियोजन की ओर से पेश किए गए गवाहों में से सभी पीड़ित के रिश्तेदार थे। साथ ही, दो अहम गवाह — साले चंदन कुमार और दुकानदार संजय भट्ट — को अदालत में पेश ही नहीं किया गया। इससे घटनाक्रम की सच्चाई को लेकर संदेह उत्पन्न हुआ।

मेडिकल रिपोर्ट में भी केवल गोली लगने की चोट का जिक्र था, जबकि अभियोजन ने बताया था कि पत्थरों और डंडों से भी हमला किया गया था। इस तरह मेडिकल साक्ष्य और गवाही में मेल नहीं बैठा।

इसके अलावा, एफआईआर की कॉपी रिकॉर्ड पर नहीं थी और उसे कोर्ट में साबित भी नहीं किया गया, जो कि एक गंभीर त्रुटि मानी गई।

इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए माननीय न्यायमूर्ति रमेश चंद मालवीय ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध करने में असफल रहा और निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला इस बात का उदाहरण है कि केवल रिश्तेदारों की गवाही या अधूरी जांच के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यदि जांच में लापरवाही हो और अहम गवाहों को पेश नहीं किया जाए तो अभियोजन पक्ष का केस कमजोर हो जाता है। आम जनता के लिए यह फैसला यह संदेश देता है कि न्यायालय निष्पक्ष रूप से साक्ष्य के आधार पर ही निर्णय देता है। पुलिस और अभियोजन विभाग को यह सीख मिलती है कि हर जरूरी गवाह और साक्ष्य को अदालत में प्रस्तुत करना आवश्यक है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे सिद्ध कर पाया?
    ➤ नहीं, गवाहों के बयान में विरोधाभास और सबूतों की कमी रही।
  • क्या मेडिकल रिपोर्ट अभियोजन की कहानी का समर्थन करती है?
    ➤ नहीं, रिपोर्ट में केवल गोली लगने की चोट का जिक्र था।
  • क्या प्राथमिकी और चश्मदीद गवाह अदालत में पेश हुए?
    ➤ नहीं, न तो एफआईआर साबित हुई और न ही मुख्य गवाहों की गवाही हुई।

मामले का शीर्षक
राज कुमार भट्ट @ राज कुमार व अन्य बनाम बिहार राज्य
साथ ही: वकील भट्ट बनाम बिहार राज्य

केस नंबर
Criminal Appeal (SJ) No. 279 of 2013
with Criminal Appeal (SJ) No. 381 of 2013

उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 112

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति रमेश चंद मालवीय

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
• श्री उदय कुमार, अधिवक्ता – अपीलकर्ताओं की ओर से
• श्री मुकेश्वर दयाल, अपर लोक अभियोजक – राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक
MjQjMjc5IzIwMTMjMSNO—am1–oRZRcpeRrQ=

“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News