कस्टम्स एक्ट में “Reason to Believe” का अर्थ स्पष्ट — सुपारी ज़ब्ती मामले में पटना हाईकोर्ट का फैसला

कस्टम्स एक्ट में “Reason to Believe” का अर्थ स्पष्ट – सुपारी ज़ब्ती मामले में पटना हाईकोर्ट का फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में यह स्पष्ट किया कि कस्टम्स अधिनियम, 1962 की धारा 110 के तहत “reason to believe” (विश्वास करने का कारण) और “liable to confiscation” (ज़ब्ती योग्य) का वास्तविक मतलब क्या है।

यह मामला तब उठा जब कस्टम्स अधिकारियों ने 20,650 किलो सूखी सुपारी (अरिका नट्स) को यह संदेह करते हुए ज़ब्त कर लिया कि ये विदेशी मूल की हैं और भारत में तस्करी करके लाई गई हैं। सुपारी की अनुमानित कीमत लगभग ₹59 लाख थी। यह ज़ब्ती बिहार के भीतर की गई, किसी भी कस्टम्स चेकपोस्ट या वेयरहाउस से नहीं।

याचिकाकर्ता, जो असम में पंजीकृत व्यापारी और ट्रांसपोर्टर थे, ने तर्क दिया कि माल पूरी तरह से भारत के भीतर — असम से कर्नाटक — ले जाया जा रहा था। उन्होंने जीएसटी चालान और दस्तावेज भी प्रस्तुत किए। इसके बावजूद कस्टम्स अधिकारियों ने कहा कि सुपारी का आकार और रंग यह दर्शाता है कि यह भारतीय मूल की नहीं है और इसलिए ज़ब्ती योग्य है।

सिंगल जज बेंच ने याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन अपील में डिवीजन बेंच ने कहा कि केवल संदेह के आधार पर ज़ब्ती नहीं की जा सकती। अदालत ने कहा कि “reason to believe” का मतलब है — ठोस, वस्तुनिष्ठ और उचित आधार पर बनाया गया विश्वास। केवल शक, अफवाह, या दृश्य निरीक्षण पर्याप्त नहीं है।

कोर्ट ने पाया कि न तो कोई सबूत था कि सुपारी नेपाल या किसी अन्य विदेशी क्षेत्र से आई है, न ही यह किसी कस्टम्स क्षेत्र से पकड़ी गई। दोनों पक्षकार भारत में पंजीकृत व्यापारी थे। इसलिए, ज़ब्ती आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर और गैरकानूनी था।

अदालत ने ज़ब्ती आदेश को रद्द कर दिया और सुपारी व वाहन की तुरंत रिहाई का आदेश दिया। साथ ही कहा कि किसी आदेश को बाद में नए कारणों से सही नहीं ठहराया जा सकता — आदेश उसी कारण पर खड़ा होगा जो पारित करते समय दर्ज किए गए थे।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला व्यापारियों और सरकार दोनों के लिए महत्वपूर्ण है:

  • व्यापारियों के लिए: वैध कागजात और जीएसटी चालान होने पर मनमाने ढंग से माल ज़ब्त नहीं किया जा सकता।
  • कस्टम्स अधिकारियों के लिए: उनकी शक्तियाँ सीमित हैं और उन्हें केवल ठोस साक्ष्य के आधार पर ही ज़ब्ती करनी होगी।
  • न्यायपालिका के लिए: यह फैसला न्यायिक सुसंगतता (judicial consistency) पर ज़ोर देता है, यानी पहले के फैसलों से भटकना उचित नहीं।
  • आर्थिक प्रभाव: यह व्यापारिक जगत को भरोसा देता है कि वैध व्यापार को मनमाने आरोपों और कार्रवाई से नहीं रोका जाएगा।

यह फैसला स्पष्ट करता है कि कानून लागू करने वाली संस्थाएं मनमाने तरीके से कार्य नहीं कर सकतीं और उन्हें हमेशा ठोस सबूत पर आधारित निर्णय लेना होगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • “Reason to believe” का वास्तविक अर्थ क्या है?
    • कोर्ट का निर्णय: यह केवल संदेह नहीं, बल्कि ठोस और उचित आधार पर बना विश्वास होना चाहिए।
  • क्या सिर्फ संदेह या सुपारी के आकार-रंग से विदेशी मूल मानना सही है?
    • कोर्ट का निर्णय: नहीं।
    • कारण: कोई ठोस सबूत नहीं था कि सुपारी भारत से बाहर से आई थी।
  • क्या ज़ब्ती आदेश को बाद में नए कारणों से सही ठहराया जा सकता है?
    • कोर्ट का निर्णय: नहीं।
    • कारण: आदेश उसी कारण पर टिकेगा जो पास करते समय दर्ज किए गए थे।
  • क्या कस्टम्स अधिकारियों के पास अधिकार क्षेत्र था?
    • कोर्ट का निर्णय: नहीं।
    • कारण: माल भारत के भीतर से ही लाया जा रहा था और कोई कस्टम्स क्षेत्र से जब्ती नहीं हुई थी।
  • अंतिम परिणाम: ज़ब्ती आदेश रद्द, सुपारी और वाहन की तुरंत रिहाई।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • M/s Ayesha Exports v. Union of India, CWJC No. 7589 of 2018
  • Yamuna Trading Company v. Union of India, CWJC No. 317 of 2012
  • Salsar Transport Company v. Union of India, CWJC No. 3784 of 2013
  • Union of India v. Salsar Transport Company, MJC No. 2185 of 2013, LPA No.1186 of 2013

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Tata Chemicals Ltd. v. Commissioner of Customs, (2015) 11 SCC 628
  • Assistant Collector of Customs v. Charan Das Malhotra, (1971) 1 SCC 697
  • Kewal Krishan v. State of Punjab, AIR 1967 SC 737
  • Aslam Mohammad Merchant v. Competent Authority, (2008) 14 SCC 186
  • Mohinder Singh Gill v. Chief Election Commissioner, AIR 1978 SC 851
  • Calcutta Discount Co. Ltd. v. ITO, AIR 1961 SC 372
  • Sheo Nath Singh v. CIT, (1972) 3 SCC 234
  • Indian Nut Products v. Union of India, (1994) 4 SCC 269
  • Bawa Gopal Das Bedi & Sons v. Union of India, AIR 1982 Pat 152

मामले का शीर्षक

M/s Ramesh Kumar Baid and Sons (HUF) एवं अन्य बनाम Union of India एवं अन्य

केस नंबर

Letters Patent Appeal No. 1302 of 2019 in CWJC No. 6563 of 2019

उद्धरण (Citation)

2020 (3) PLJR 98

न्यायमूर्ति गण का नाम

  • माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
  • माननीय श्री न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपाध्याय

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • अपीलकर्ताओं की ओर से: श्री वाई. वी. गिरि (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री अमित कुमार मिश्रा, श्री अमित पांडे
  • प्रत्युत्तर पक्ष की ओर से: श्री एस. डी. संजय (अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल), श्री अंशुमान सिंह

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyMxMzAyIzIwMTkjMSNO-PdlEWF–am1–lc2s=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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