पटना हाई कोर्ट का फैसला: बिना “Reason to Believe” के की गई कस्टम्स जब्ती को रद्द किया गया (2024)

पटना हाई कोर्ट का फैसला: बिना “Reason to Believe” के की गई कस्टम्स जब्ती को रद्द किया गया (2024)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया कि कस्टम विभाग किसी भी माल को तभी जब्त कर सकता है जब अधिकारी के पास “Reason to Believe” यानी उचित और ठोस कारण हो — और यह कारण लिखित रूप में दर्ज किया गया हो। केवल शक या अनुमान के आधार पर जब्ती वैध नहीं मानी जाएगी।

यह मामला अरेका नट (सुपारी) के एक बड़े खेप से जुड़ा था जो असम से कर्नाटक जा रही थी। ट्रक बिहार में एक चेकपोस्ट के पास रोका गया, और कस्टम अधिकारियों ने 2 अप्रैल 2024 को लगभग 24,000 किलो सूखे अरेका नट (352 बोरियाँ) और ट्रक को जब्त कर लिया। जब्ती मेमो में अधिकारियों ने कस्टम्स एक्ट, 1962 की कई धाराओं (धारा 7, 11, 46, 47) और विदेशी व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1992 की धारा 3(2) का हवाला दिया, लेकिन किसी भी ठोस कारण या सबूत का उल्लेख नहीं किया।

व्यवसायी (याचिकाकर्ता) के पास सभी वैध दस्तावेज थे — जैसे बिल, ई-वे बिल, जीएसटी पंजीकरण और ट्रांसपोर्ट रसीद। बाद में उसने अदालत से माल की अंतरिम रिहाई मांगी, जो बैंक गारंटी और बांड भरकर मिल भी गई। लेकिन उसने पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर कर यह कहा कि जब्ती ही अवैध थी क्योंकि अधिकारी ने कोई “Reason to Believe” दर्ज नहीं किया था।

याचिकाकर्ता की दलील थी कि सेक्शन 110 के तहत जब्ती तभी हो सकती है जब अधिकारी को ठोस कारणों के आधार पर यह विश्वास हो कि माल जब्त करने योग्य है — और यह कारण रिकॉर्ड में स्पष्ट रूप से लिखा गया हो। सिर्फ कानून की धाराओं का नाम लिख देना “Reason to Believe” नहीं माना जा सकता।

दूसरी ओर, कस्टम विभाग का कहना था कि जब्ती मेमो में कानून की धाराएँ लिखी हुई हैं, और यही पर्याप्त है। उन्होंने यह भी कहा कि माल पहले से ही रिहा किया जा चुका है, इसलिए कोई हानि नहीं हुई। विभाग ने अपने पक्ष में कुछ अन्य अदालतों के निर्णयों का भी हवाला दिया।

अदालत ने इन तर्कों को ध्यान से सुना और फिर इस बात की जाँच की कि “Reason to Believe” शब्द का कानूनी अर्थ क्या है। अदालत ने कहा कि कानून के अनुसार किसी अधिकारी को कोई भी दंडात्मक या जाँच संबंधी कार्रवाई करने से पहले अपने मन में बने कारणों को लिखित रूप में दर्ज करना होता है। ये कारण बाद में न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) के लिए आधार बनते हैं।

अदालत ने जब्ती मेमो के उस हिस्से की जाँच की जहाँ “Reason for Seizure” लिखा होता है। वहाँ केवल कुछ धाराओं का जिक्र था, लेकिन कोई ठोस वजह नहीं लिखी गई थी। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ धाराओं की सूची लिख देना “Reason to Believe” नहीं है।

इसके अलावा, अधिकारियों ने यह कहा था कि “स्थानीय व्यापारियों” ने देखकर बताया कि यह सुपारी विदेशी माल लगती है। अदालत ने इस दावे को भी अविश्वसनीय बताया। कृषि मंत्रालय और ICAR (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) की राय के अनुसार, सिर्फ देखकर यह तय करना संभव नहीं है कि सुपारी विदेशी है या भारतीय।

मामले में एक परीक्षण रिपोर्ट भी थी जो अरेका नट रिसर्च एंड डेवलपमेंट फाउंडेशन, मंगलुरु ने दी थी। उसमें कहा गया था कि नमूना भारतीय सुपारी जैसा है और अच्छी गुणवत्ता का है। इससे यह और स्पष्ट हुआ कि अधिकारी का संदेह गलत था।

अदालत ने यह भी देखा कि याचिकाकर्ता के दस्तावेज जैसे चालान, जीएसटी नंबर और ई-वे बिल सभी वैध थे। कस्टम विभाग के जवाबी हलफनामे में भी यह स्वीकार किया गया था कि दस्तावेज सही हैं।

इसलिए, पटना हाई कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि

  1. जब्ती मेमो दिनांक 2 अप्रैल 2024 को रद्द किया जाता है, क्योंकि उसमें कोई वैध “Reason to Believe” नहीं था।
  2. जो बैंक गारंटी और बांड याचिकाकर्ता ने माल की रिहाई के लिए दिया था, उसे तीन माह के भीतर मुक्त किया जाए।

इस प्रकार, अदालत ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला न केवल व्यापारियों के लिए बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण सीख है।

  1. कानूनी सुरक्षा का सशक्त उदाहरण: यह निर्णय दिखाता है कि सरकारी अधिकारी किसी भी व्यक्ति या व्यवसाय के साथ मनमानी नहीं कर सकते। हर कार्रवाई के लिए लिखित कारण होना अनिवार्य है।
  2. व्यापार की स्वतंत्रता की रक्षा: अंतरराज्यीय व्यापार में लगे व्यवसायियों को अब यह भरोसा रहेगा कि अगर उनके पास वैध दस्तावेज हैं, तो बिना ठोस कारण उनका माल जब्त नहीं किया जा सकता।
  3. सरकार के लिए चेतावनी: यह फैसला बताता है कि विभागीय अधिकारी यदि “Reason to Believe” का पालन नहीं करेंगे, तो उनकी कार्रवाई अदालत में टिक नहीं पाएगी। इससे प्रशासनिक पारदर्शिता बढ़ेगी।
  4. कानूनी जवाबदेही: अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी भी निर्णय को “बोलता हुआ आदेश” (speaking order) होना चाहिए, ताकि यह दिखे कि अधिकारी ने दिमाग लगाकर फैसला लिया है, न कि केवल औपचारिकता निभाई है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या जब्ती में “Reason to Believe” दर्ज किया गया था?
    नहीं। अदालत ने कहा कि सिर्फ धाराओं का नाम लिखना पर्याप्त नहीं है। कारणों को ठोस रूप से रिकॉर्ड में लाना आवश्यक है।
  • क्या स्थानीय व्यापारियों की राय पर विदेशी माल घोषित किया जा सकता है?
    नहीं। कोर्ट ने कहा कि यह वैज्ञानिक तरीका नहीं है। कृषि विशेषज्ञ संस्थान ने भी कहा कि सिर्फ देखकर यह नहीं बताया जा सकता कि सुपारी भारतीय है या विदेशी।
  • क्या कस्टम्स एक्ट की उल्लिखित धाराएँ (7, 11, 46, 47) लागू थीं?
    नहीं। यह माल असम से कर्नाटक जा रहा था, और सभी टैक्स व परिवहन दस्तावेज सही थे। अतः इन धाराओं का प्रयोग गलत था।
  • अंतिम आदेश:
    जब्ती को रद्द किया गया और याचिकाकर्ता की बैंक गारंटी तीन माह में मुक्त करने का आदेश दिया गया।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Angou Golmei v. Smti. Vizovolie Chakhsang (1994) 1 PLJR 800
  • M/s Om Sai Trading Company v. Union of India (LPA No. 1153/2019)
  • Jaimatajee Enterprises v. Commissioner of Customs (Preventive) (Writ Tax No. 573/2020)
  • M/s Maa Kamakhya Traders v. Commissioner of Customs (Preventive) (Writ Tax No. 1287/2023)
  • Commissioner of Customs Dept. v. Dwarka Prasad Agarwal (2009) 2 PLJR 858

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Phoolchand Bajrang Lal v. ITO [1993] 203 ITR 456 (SC)
  • ITO v. Lakhmani Mewal Das (1976 SCR (3) 956)
  • Aslam Mohammad Merchant v. Competent Authority (2008) 14 SCC 186
  • Kranti Associates v. Masood Ahmed Khan (2010) 9 SCC 496
  • S.N. Mukherjee v. Union of India (1990) 4 SCC 594

मामले का शीर्षक

याचिकाकर्ता बनाम भारत संघ एवं अन्य (पटना उच्च न्यायालय)

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 10582 of 2024

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति आलोक कुमार पांडेय

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

याचिकाकर्ता की ओर से: श्री प्रभात रंजन, अधिवक्ता; श्री अंश प्रसाद, अधिवक्ता
प्रतिवादी (कस्टम विभाग) की ओर से: डॉ. के. एन. सिंह, ए.एस.जी.; श्री अंशुमन सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता (कस्टम्स); श्री देवंश शंकर सिंह, अधिवक्ता; श्री शिवदित्य धारी सिन्हा, सहायक अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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