पटना हाई कोर्ट का फैसला: कस्टम अधिकारियों द्वारा जब्ती में कानूनी प्रक्रिया की अनदेखी, मटर और सुपारी की जब्ती रद्द

पटना हाई कोर्ट का फैसला: कस्टम अधिकारियों द्वारा जब्ती में कानूनी प्रक्रिया की अनदेखी, मटर और सुपारी की जब्ती रद्द

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने 24 फरवरी 2025 को दो अलग-अलग मामलों में सुनवाई करते हुए कस्टम विभाग द्वारा की गई जब्ती को अवैध ठहराया। दोनों मामलों में व्यापारियों की मटर और सुपारी की खेप को कस्टम अधिकारियों ने यह कहते हुए जब्त किया था कि ये विदेशी मूल की हो सकती हैं और कस्टम एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है।

लेकिन अदालत ने पाया कि जब्ती के समय जो “सीज़र मेमो” बनाया गया था, उसमें कानून के अनुसार यह स्पष्ट रूप से दर्ज नहीं था कि अधिकारियों को ऐसा “मानने का कारण” क्या था कि ये माल ज़ब्त किए जाने योग्य हैं। कानून की भाषा में इसे “reason to believe” कहा जाता है, जो कि अनिवार्य है।

पहला मामला: सफेद मटर की जब्ती (CWJC No. 7085/2022)

सिलीगुड़ी के एक व्यापारी ने असम से 30,000 किलो सफेद मटर खरीदी थी, जिसमें से 21,000 किलो मटर कोलकाता के एक व्यापारी को बेची गई। जब यह खेप ट्रक से कोलकाता जा रही थी, तो किशनगंज में कस्टम अधिकारियों ने इसे रोक लिया और ट्रक समेत माल को जब्त कर लिया।

व्यापारी ने दस्तावेज (इनवॉइस, ई-वे बिल आदि) दिखाए, फिर भी बिना पूरी जांच के जब्ती कर दी गई। जब तक माल को अस्थायी रूप से रिहा करने की प्रक्रिया पूरी होती, मटर खराब हो गई और खाने लायक नहीं रही।

दूसरा मामला: असमिया सूखी सुपारी की जब्ती (CWJC No. 7069/2022)

राजस्थान के एक व्यापारी ने असम में किसानों से 24,500 किलो सूखी सुपारी खरीदी थी। बिना इनवॉइस खरीदी गई यह सुपारी रजिस्टर की गई इनवॉइस के साथ राजस्थान भेजी जा रही थी। लेकिन गालगालिया चेकपोस्ट पर ट्रक को रोक लिया गया और कस्टम विभाग ने बिना उचित आधार बताए माल को जब्त कर लिया।

बाद में भारी बैंक गारंटी और बॉन्ड भरवाकर ही माल को छोड़ा गया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला छोटे व्यापारियों और ट्रांसपोर्टरों के अधिकारों की सुरक्षा में मील का पत्थर है। कोर्ट ने साफ किया कि किसी भी अधिकारी को जब्ती करने से पहले यह स्पष्ट कारण बताना जरूरी है कि उन्हें क्यों लगता है कि माल कानून के तहत जब्ती योग्य है।

यह फैसला यह संदेश देता है कि दस्तावेज पूरे होने के बावजूद अगर सिर्फ शक के आधार पर कोई कार्यवाही होती है, तो वह अवैध मानी जाएगी। इसके अलावा, यह सरकारी अधिकारियों को आगाह करता है कि बिना ठोस कानूनी प्रक्रिया के जब्ती करना अब मान्य नहीं होगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या कस्टम एक्ट की धारा 110(1) के तहत जब्ती के लिए ‘reason to believe’ का रिकॉर्ड होना जरूरी है?
    • ✔️ हाँ। कोर्ट ने कहा कि बिना कारण बताए की गई जब्ती कानूनी नहीं है।
  • क्या जब्ती रद्द होने से आगे की कन्फिस्केशन कार्यवाही भी रद्द हो जाती है?
    • नहीं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, जब्ती रद्द होने के बावजूद विभाग जांच और कार्यवाही जारी रख सकता है।
  • क्या व्यापारी को बॉन्ड और बैंक गारंटी से मुक्ति मिलनी चाहिए?
    • 🔁 निर्णय नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा कि यह मुद्दा संबंधित अधिकारी के समक्ष उठाया जा सकता है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Assam Supari Traders v. Union of India, 2024 SCC OnLine Pat 6401
  • Krishna Kali Traders v. Union of India, 2024 SCC OnLine Pat 880
  • M/s Ashoke Das and Another v. Union of India, CWJC No. 4918/2021, दिनांक 19.02.2025

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Union of India v. Om Sai Trading Company, 2022 SCC OnLine SC 1419

मामले का शीर्षक

जयेश अग्रवाल बनाम भारत संघ एवं हनुमानमल सुराना बनाम भारत संघ (संपर्कित याचिकाएं)

केस नंबर

CWJC Nos. 7085 and 7069 of 2022

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
माननीय श्री न्यायमूर्ति रमेश चंद मालवीय

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री साकेत गुप्ता, श्री अनिमेष गुप्ता, श्री शिवम गुप्ता
  • प्रतिवादी की ओर से: माननीय डॉ. के.एन. सिंह (वरिष्ठ अधिवक्ता, एएसजी), श्री शिवादित्य धनी सिन्हा

निर्णय का लिंक

4e5dcdd6-a9b5-41e5-8389-34ef553b2422.pdf

“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News