पटना हाई कोर्ट का फैसला: दहेज हत्या मामले में सजा घटाई, दोष सिद्ध (2021)

पटना हाई कोर्ट का फैसला: दहेज हत्या मामले में सजा घटाई, दोष सिद्ध (2021)


निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण दहेज हत्या (Dowry Death) के मामले में फैसला सुनाया। यह मामला वैशाली जिले का था, जहां एक युवक को अपनी पत्नी की मौत के मामले में दहेज हत्या (धारा 304B IPC) और सबूत मिटाने (धारा 201 IPC) का दोषी ठहराया गया था।

निचली अदालत (सत्र न्यायालय) ने 2017 में युवक को 10 साल की कठोर कैद (Rigorous Imprisonment) की सजा सुनाई थी। साथ ही धारा 201 के तहत 2 साल की सजा भी दी थी, जिसे साथ-साथ चलना था।

घटना का विवरण

  • शादी: नवंबर 2012 में हुई।
  • मांग: शादी के कुछ महीनों बाद पति और उसके परिवारवालों ने कलर टीवी और सोने की चेन की मांग शुरू कर दी।
  • उत्पीड़न: मृतका ने फोन पर अपने मायके वालों को बताया कि दहेज की मांग पूरी न होने पर उसे प्रताड़ित किया जा रहा है।
  • मृत्यु: 1 जून 2013 को, यानी शादी के करीब 6 महीने बाद, उसका शव गांव के स्कूल के पास एक प्लास्टिक बैग में मिला।
  • मेडिकल रिपोर्ट: गले पर निशान पाए गए और पोस्टमार्टम से पुष्टि हुई कि उसकी मौत गला दबाकर (strangulation) की गई थी।

निचली अदालत का निर्णय

सभी साक्ष्यों और गवाही के आधार पर पति को दोषी मानते हुए 10 साल की सजा सुनाई गई।

अपील में उठाए गए तर्क

बचाव पक्ष (पति का पक्ष)

  • दहेज मांग की बात झूठी है और घटना के बाद गढ़ी गई कहानी है।
  • कोई स्वतंत्र गवाह (Independent witness) नहीं है, केवल परिजन ही गवाही दे रहे हैं।
  • दोनों परिवार गरीब थे, इसलिए टीवी और सोने की चेन जैसी महंगी चीज़ की मांग करना अविश्वसनीय है।
  • गुरदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य (2011) मामले का हवाला दिया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सबूत की कमी के कारण दोषमुक्त कर दिया था।

अभियोजन पक्ष (राज्य का पक्ष)

  • कानून में यह जरूरी नहीं है कि स्वतंत्र गवाह ही हों, परिवार के लोग भी विश्वसनीय गवाह माने जाते हैं।
  • मौत शादी के 7 साल के भीतर और असामान्य परिस्थिति (गला दबाकर हत्या) में हुई।
  • मृतका के माता-पिता और भाई-बहनों की गवाही स्पष्ट और सुसंगत है।
  • दहेज की मांग और उत्पीड़न की बात लगातार सामने आई।
  • साक्ष्य अधिनियम की धारा 113B लागू होती है, जिसमें दहेज की मांग और उत्पीड़न साबित होने पर कानूनी अनुमान (presumption) है कि यह दहेज हत्या है।

हाई कोर्ट का विश्लेषण

अदालत ने दहेज हत्या (धारा 304B IPC) के लिए चार शर्तों को लागू किया:

  1. मृत्यु सामान्य परिस्थिति में न हुई हो।
  2. शादी के 7 साल के भीतर हो।
  3. मौत से ठीक पहले उत्पीड़न हुआ हो।
  4. उत्पीड़न दहेज की मांग से जुड़ा हो।

अदालत की निष्कर्ष:

  • मृतका की मौत गला दबाने से हुई, जो सामान्य नहीं है।
  • शादी के 6 महीने के भीतर यह घटना हुई।
  • गवाहों की गवाही से साफ है कि टीवी और सोने की चेन की मांग के लिए प्रताड़ित किया गया।
  • गरीब परिवार होना दहेज मांग को नकारने का कारण नहीं बन सकता।
  • पति का यह तर्क कि पत्नी कपड़े बेचने गई और लौटकर नहीं आई, बिल्कुल असत्य है।

इसलिए दोषसिद्धि (conviction) बरकरार रखी गई।

सजा में बदलाव

हाई कोर्ट ने देखा कि—

  • आरोपी 30 सितंबर 2013 से जेल में है
  • अब तक उसने 7 साल से ज्यादा कैद काट ली है।
  • उसकी उम्र कम है और कोई अतिरिक्त गंभीर परिस्थिति नहीं है।

न्यायालय ने कहा कि न्याय के हित में पर्याप्त सजा भुगत ली गई है। इसलिए सजा को घटाकर “जितनी अवधि जेल में रह चुका है” कर दिया गया और आरोपी की रिहाई का आदेश दिया गया।

निर्णय का महत्व और प्रभाव

समाज के लिए

  • यह फैसला बताता है कि अदालतें दहेज हत्या को गंभीरता से लेती हैं।
  • दहेज की मांग शादी के बाद भी की जाए तो वह भी अपराध मानी जाएगी।

कानूनी दृष्टिकोण से

  • परिवार के लोगों की गवाही पर्याप्त है, स्वतंत्र गवाह का अभाव दोषसिद्धि को प्रभावित नहीं करता।
  • दहेज मामलों में धारा 113B साक्ष्य अधिनियम बेहद महत्वपूर्ण है, जिससे आरोपी पर सबूत का बोझ आ जाता है।
  • सजा तय करते समय अदालत आरोपी की जेल में बिताई अवधि और परिस्थितियों को ध्यान में रखती है।

युवाओं और परिवारों के लिए

  • यह फैसला चेतावनी है कि दहेज मांग चाहे छोटी हो या बड़ी, इसके गंभीर कानूनी परिणाम हो सकते हैं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बिंदुवार)

  • क्या दहेज हत्या साबित हुई?
    ✔ हाँ। मौत असामान्य थी, शादी के 7 साल के भीतर हुई और दहेज मांग से जुड़ी प्रताड़ना साबित हुई।
  • क्या स्वतंत्र गवाह जरूरी था?
    ✔ नहीं। परिवार की गवाही पर्याप्त है।
  • क्या गरीबी के कारण दहेज मांग असंभव है?
    ✔ नहीं। दहेज की मांग किसी भी आर्थिक स्थिति में हो सकती है।
  • क्या सजा घटाई जा सकती थी?
    ✔ हाँ। आरोपी पहले ही 7 साल से ज्यादा जेल में था, इसलिए सजा “अवधि-पूर्व” (already undergone) कर दी गई।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Gurdeep Singh v. State of Punjab, (2011) 12 SCC 408 (लेकिन अलग परिस्थितियों के कारण लागू नहीं हुआ)।

मामले का शीर्षक

Jitendra Tiwary v. The State of Bihar

केस नंबर

Criminal Appeal (SJ) No. 3415 of 2017
(Arising out of Lalganj P.S. Case No. 87 of 2013, District Vaishali)

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 104

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति बीरेन्द्र कुमार (दिनांक 22-02-2021)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • अपीलकर्ता की ओर से: श्रीमती बेला सिंह, अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से: श्री ज़ेयाउल होदा, एपीपी

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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