पटना हाईकोर्ट 2020: दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी की नियमित नियुक्ति की मांग ख़ारिज, चतुर्थ श्रेणी पद खत्म

पटना हाईकोर्ट 2020: दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी की नियमित नियुक्ति की मांग ख़ारिज, चतुर्थ श्रेणी पद खत्म

निर्णय की सरल व्याख्या

दिसंबर 2020 में पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। इसमें एक दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी की अपील खारिज कर दी गई, जिसने भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय (BNMU), मधेपुरा में चतुर्थ श्रेणी पद पर अपनी सेवा के नियमितीकरण (regularization) की मांग की थी। अदालत ने साफ कर दिया कि जिन कर्मचारियों की नियुक्ति बिना किसी विधिक चयन प्रक्रिया के हुई है, उन्हें नियमित नहीं किया जा सकता, खासकर जब वह पद ही समाप्त कर दिए गए हों।

पृष्ठभूमि

प्रमोद कुमार झा नामक व्यक्ति दिसंबर 1989 से पूर्णिया महिला कॉलेज में चतुर्थ श्रेणी पद पर दैनिक वेतनभोगी के रूप में काम कर रहे थे।

  • शुरुआत में उन्हें वेतन भी नहीं मिलता था।
  • बाद में, विश्वविद्यालय के आदेश पर नवंबर 1991 से उन्हें कॉलेज फंड से दैनिक वेतन मिलने लगा।
  • उन्होंने करीब दो दशकों तक सेवा की और लगातार नियमितीकरण की मांग उठाते रहे।

उनका कहना था कि—

  1. अन्य दैनिक वेतनभोगियों को विश्वविद्यालय ने नियमित किया है।
  2. वह भी स्वीकृत और रिक्त पद पर काम कर रहे थे, इसलिए उन्हें भी समान अवसर मिलना चाहिए।
  3. कॉलेज प्रशासन ने कई बार उनके पक्ष में सिफारिशें भी की थीं।

लेकिन 2011 में विश्वविद्यालय ने सभी दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की सेवाएँ समाप्त कर दीं। उस समय उनकी नियमित नियुक्ति की याचिका हाईकोर्ट में लंबित थी।

सिंगल बेंच का फैसला (2014)

हाईकोर्ट की एकलपीठ ने उनकी याचिका खारिज कर दी और कहा कि—

  • राज्य सरकार ने नई नियुक्तियों पर रोक (ban) लगा रखी थी।
  • 2014 में कुलाधिपति द्वारा बनाए गए नियम के तहत चतुर्थ श्रेणी के सभी पदों को आउटसोर्सिंग से भरने का प्रावधान कर दिया गया।
  • चूँकि उनकी नियुक्ति बिना किसी विज्ञापन और चयन प्रक्रिया के हुई थी, उन्हें नियमित करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।

डिवीजन बेंच में अपील

उन्होंने इस आदेश के खिलाफ लेटर्स पेटेंट अपील (LPA No. 553/2015) दायर की और कहा—

  • सुप्रीम कोर्ट के उमा देवी (2006) और एम.एल. केशरी (2010) के फैसलों के अनुसार, लंबे समय तक सेवा देने वाले दैनिक वेतनभोगियों को नियमित किया जाना चाहिए।
  • उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा क्योंकि अन्य लोगों को नियमित किया गया।

विश्वविद्यालय और राज्य सरकार की दलीलें:

  • उनकी नियुक्ति पूरी तरह अवैध (illegal) थी, क्योंकि न तो कोई विज्ञापन निकला और न चयन प्रक्रिया हुई।
  • यह “बैक-डोर एंट्री” थी, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है।
  • अब जब चतुर्थ श्रेणी पद ही खत्म कर दिए गए और आउटसोर्सिंग लागू हो गई, तो नियमितीकरण का सवाल ही नहीं उठता।

हाईकोर्ट की राय

मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति एस. कुमार की खंडपीठ ने कहा—

  • उनकी प्रारंभिक नियुक्ति ही असंवैधानिक और अवैध थी।
  • सुप्रीम कोर्ट का उमा देवी फैसला (2006) साफ कहता है कि ऐसे कर्मचारी नियमित नहीं किए जा सकते।
  • जब पद ही खत्म कर दिए गए और आउटसोर्सिंग लागू है, तो नियमित नियुक्ति का कोई अधिकार शेष नहीं बचता।
  • हाँ, यदि भविष्य में सीधी भर्ती निकली तो उन्हें उम्र सीमा (age relaxation) में छूट दी जा सकती है, लेकिन उनके पिछले अनुभव का लाभ नहीं दिया जा सकता।

अंतिम निर्णय

अदालत ने कहा कि एकलपीठ के आदेश में कोई गलती नहीं है और अपील को खारिज कर दिया गया

निर्णय का महत्व और प्रभाव

  • दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए: केवल लंबे समय तक काम करने से नियमितीकरण का अधिकार नहीं बनता, यदि नियुक्ति नियमों का पालन करके न हुई हो।
  • विश्वविद्यालय और सरकारी संस्थानों के लिए: अब वे आउटसोर्सिंग के जरिए काम करा सकते हैं, और उन पर स्थायी नियुक्ति का दबाव नहीं होगा।
  • कानूनी दृष्टिकोण से: यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के उमा देवी (2006) निर्णय की पुष्टि करता है, जो सरकारी नौकरियों में नियमितीकरण का मूलभूत सिद्धांत है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या बिना चयन प्रक्रिया नियुक्त दैनिक वेतनभोगी नियमित हो सकते हैं?
    • नहीं। ऐसी नियुक्तियाँ अवैध मानी जाएंगी।
  • क्या लंबे समय तक सेवा करने से नियमितीकरण का अधिकार बनता है?
    • नहीं। संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 की प्रक्रिया का पालन जरूरी है।
  • क्या पद खत्म होने के बाद नियमितीकरण हो सकता है?
    • नहीं। पद खत्म और आउटसोर्सिंग लागू होने पर यह दावा अमान्य है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • State of Karnataka v. Uma Devi, (2006) 4 SCC 1
  • State of Karnataka v. M.L. Keshari, (2010) 9 SCC 247

मामले का शीर्षक

Pramod Kumar Jha v. Bhupendra Narayan Mandal University & Ors.

केस नंबर

Letters Patent Appeal No. 553 of 2015 (CWJC No. 11805 of 2007 से उत्पन्न)

उद्धरण (Citation)

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • अपीलकर्ता की ओर से: श्री सुबोध कुमार झा
  • प्रतिवादियों की ओर से: श्री राजेश सिंह

निर्णय का लिंक

MyM1NTMjMjAxNSMxI04=-iiYxHBGAHcg=

यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।

Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News