निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने 2 नवम्बर 2021 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए नालंदा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, पटना (NMCH) द्वारा एक दवा आपूर्तिकर्ता को स्थायी रूप से ब्लैकलिस्ट करने के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह कार्रवाई न्यायिक प्रक्रिया और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता एक फार्मा फर्म है जो अस्पतालों को दवा आपूर्ति का कार्य करती है। इसे NMCH से दवाएं सप्लाई करने के आदेश मिले थे, लेकिन कच्चे माल की कमी के कारण यह कुछ दवाएं समय पर नहीं दे सकी। अस्पताल प्रशासन ने कई पत्र भेजे जिन्हें वे ‘कारण बताओ नोटिस’ बता रहे थे, परंतु याचिकाकर्ता का कहना था कि वे सिर्फ रिमाइंडर (अनुरोध पत्र) थे — उनमें कहीं यह नहीं कहा गया कि ब्लैकलिस्ट किया जाएगा।
फिर 4 जून 2021 को NMCH के अधीक्षक ने याचिकाकर्ता को स्थायी रूप से ब्लैकलिस्ट कर दिया — यानी भविष्य में कभी भी टेंडर में हिस्सा नहीं लेने देने का आदेश पारित कर दिया।
याचिकाकर्ता ने इस आदेश को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी और कहा कि:
- उन्हें न तो कोई सही कारण बताओ नोटिस मिला और न ही सुनवाई का अवसर।
- स्थायी ब्लैकलिस्टिंग कानूनन वैध नहीं है।
इस मामले में याचिकाकर्ता ने Kulja Industries Ltd. v. BSNL (2014) 14 SCC 731 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था:
- ब्लैकलिस्ट करना एक गंभीर दंडात्मक कार्रवाई है और इसके पहले प्राकृतिक न्याय का पालन जरूरी है।
- ब्लैकलिस्टिंग का समय सीमित होना चाहिए — स्थायी रूप से ब्लैकलिस्ट करना उचित नहीं है।
- नोटिस दिए बिना ब्लैकलिस्ट करना अवैध है।
पटना हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों से सहमति जताई और कहा:
- यदि अस्पताल प्रशासन द्वारा भेजे गए पत्र ‘नोटिस’ भी माने जाएं, तब भी उनमें कहीं यह नहीं बताया गया था कि ब्लैकलिस्ट किया जाएगा।
- सुनवाई का अवसर न देना न्याय के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।
- स्थायी ब्लैकलिस्टिंग अवैध और अनुपातहीन (disproportionate) है।
कोर्ट ने ब्लैकलिस्टिंग का आदेश रद्द कर दिया। हालांकि, प्रशासन को यह छूट दी कि यदि वे चाहें तो उचित प्रक्रिया अपनाकर नया नोटिस देकर कार्रवाई कर सकते हैं।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला सरकारी अस्पतालों, विभागों और संस्थानों में अनुबंधित आपूर्तिकर्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा करता है। यह स्पष्ट करता है कि:
- सरकारी फैसलों में निष्पक्षता और न्याय की प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है।
- ब्लैकलिस्टिंग जैसी गंभीर सजा देने से पहले उचित नोटिस और सुनवाई देना अनिवार्य है।
- स्थायी रूप से किसी व्यवसाय को प्रतिबंधित करना कानून के खिलाफ है।
यह निर्णय छोटे व्यवसायियों और आपूर्तिकर्ताओं को यह विश्वास दिलाता है कि सरकार द्वारा मनमाने दंड को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या किसी आपूर्तिकर्ता को स्थायी रूप से ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है?
❌ नहीं। कोर्ट ने कहा कि यह कानून के विरुद्ध है और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे गलत माना है। - क्या ब्लैकलिस्ट करने से पहले कारण बताओ नोटिस देना जरूरी है?
✔ हां। याचिकाकर्ता को ब्लैकलिस्ट करने के पहले ऐसा कोई नोटिस नहीं दिया गया था। - क्या NMCH का आदेश कानूनी रूप से वैध था?
❌ नहीं। न सुनवाई हुई, न समय सीमा तय की गई — दोनों बातों से आदेश अवैध हो गया। - कोर्ट ने क्या राहत दी?
✔ कोर्ट ने ब्लैकलिस्टिंग रद्द की और प्रशासन को नया नोटिस देकर उचित प्रक्रिया अपनाने की छूट दी।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Kulja Industries Ltd. v. Western Telecom Project, BSNL, (2014) 14 SCC 731
- Erusian Equipment & Chemicals Ltd. v. State of West Bengal, SCC p.75, para 20
- Southern Painters v. Fertilizers & Chemicals Travancore Ltd.
- Patel Engg. Ltd. v. Union of India
- UMC Technologies Pvt. Ltd. v. FCI, (2021) 2 SCC 551
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Kulja Industries Ltd. v. BSNL, (2014) 14 SCC 731
- Erusian Equipment & Chemicals Ltd. v. State of West Bengal
- UMC Technologies Pvt. Ltd. v. FCI, (2021) 2 SCC 551
मामले का शीर्षक
Abha Chaudhary v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
CWJC No. 13294 of 2021
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से:
श्री श्रीनंदन सिंह (वरिष्ठ अधिवक्ता)
सुश्री प्राकृति शर्मा, अधिवक्ता - राज्य सरकार की ओर से:
श्री मुज्तबाउल हक़ (GP-12)
श्री वसंत विकास, सहायक अधिवक्ता (AC to GP-12)
निर्णय का लिंक
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