निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में सरकार द्वारा एक ठेकेदार को बिना पूर्व सूचना के अनिश्चितकाल के लिए डिबार करने के आदेश को अवैध ठहराया। यह मामला तब सामने आया जब ठेकेदार ने 2023 में सरकारी निविदा में भाग लेने की कोशिश की, और पहली बार उसे ज्ञात हुआ कि 03 जुलाई 2017 को उसे डिबार कर दिया गया था।
ठेकेदार का कहना था कि उसे न तो इस आदेश की कोई सूचना दी गई थी और न ही अपनी बात रखने का मौका। जब कोई सरकारी विभाग किसी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ ऐसा कठोर निर्णय लेता है, तो संविधान के अनुसार उसे पहले नोटिस देना और सुनवाई का मौका देना अनिवार्य होता है।
अदालत ने माना कि इस मामले में यह मूल कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं की गई। ठेकेदार को डिबार करने से पहले न कोई कारण बताओ नोटिस (शो-कॉज नोटिस) दिया गया और न ही कोई सुनवाई हुई। इतना ही नहीं, डिबार करने की अवधि “अनिश्चितकाल” रखी गई, जो कानूनन सही नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा M/s Chauhan Builders Raibareli v. State of U.P. मामले में पहले ही स्पष्ट किया गया है कि किसी भी ठेकेदार को अनिश्चितकालीन रूप से ब्लैकलिस्ट करना न्यायसंगत नहीं है।
चूंकि ठेकेदार पहले ही छह वर्षों से इस आदेश के कारण निविदाओं से वंचित रहा है, कोर्ट ने यह भी कहा कि मामले को दोबारा विचार के लिए विभाग को भेजना उचित नहीं होगा। अतः कोर्ट ने 03.07.2017 का आदेश रद्द कर दिया और याचिका स्वीकार कर ली।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला सरकारी विभागों और ठेकेदारों दोनों के लिए एक चेतावनी और मार्गदर्शन है। इससे स्पष्ट होता है कि किसी को भी डिबार या ब्लैकलिस्ट करने से पहले पूरी कानूनी प्रक्रिया अपनाना जरूरी है।
बिहार सहित देश भर के ठेकेदारों के लिए यह राहत भरा संकेत है कि मनमाने तरीके से उठाए गए कदमों के खिलाफ अदालत में न्याय मिल सकता है। वहीं, सरकारी विभागों को अब हर आदेश के साथ पारदर्शिता और कानून का पालन सुनिश्चित करना होगा।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट करने से पहले नोटिस दिया गया था?
➤ नहीं। अदालत ने पाया कि शो-कॉज नोटिस नहीं दिया गया, जो गंभीर प्रक्रिया दोष है। - क्या अनिश्चितकालीन डिबार करना वैध है?
➤ नहीं। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, ऐसी डिबारिंग अवैध और अनुचित है। - क्या आदेश की जानकारी न दिए जाने से वह आदेश अमान्य हो जाता है?
➤ हां। आदेश को विधिक रूप से सूचित नहीं किया गया था, इसलिए वह टिकाऊ नहीं है। - अदालत द्वारा दी गई राहत क्या है?
➤ 03.07.2017 का डिबारिंग आदेश रद्द किया गया और याचिका स्वीकार की गई।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- M/s Chauhan Builders Raibareli v. State of U.P., SLP (C) No. 32840 of 2018
मामले का शीर्षक
Madhav Prasad Singh v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 12454 of 2023
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति पी. बी. बजंत्री
माननीय न्यायमूर्ति रमेश चंद मालवीय
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री विनायक हर्षवर्धन — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री ज्ञान प्रकाश ओझा (G.A.7) एवं श्री अजीत कुमार (A.C. to G.A.7) — प्रतिवादियों की ओर से
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