निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक निर्माण कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसे भविष्य के सरकारी ठेकों से बाहर करने (debar) की धमकी देते हुए कारण बताओ नोटिस (show-cause notice) जारी किया गया था। यह मामला ग्रामीण कार्य विभाग, बिहार सरकार के तहत एक सड़क निर्माण परियोजना से संबंधित है।
निर्माण कंपनी को 11 जुलाई 2023 को एक नोटिस दिया गया, जिसमें कहा गया था कि उसने सड़क निर्माण का कार्य पूरा नहीं किया है और इसलिए उसे डिफॉल्टर घोषित कर भविष्य में किसी भी सरकारी निविदा (tender) में भाग लेने से वंचित किया जा सकता है।
कंपनी ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा:
- Engineer-in-Chief के पास डिबारमेंट का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
- यह नोटिस एग्रीमेंट की शर्तों और सरकारी नियमों के खिलाफ है।
- बिहार ठेकेदार पंजीकरण नियम, 2007 (Contractor Registration Rules) केवल ब्लैकलिस्टिंग और सस्पेंशन की अनुमति देते हैं, डिबारमेंट की नहीं।
याचिका में यह नहीं कहा गया कि कारण बताओ नोटिस नहीं दिया जा सकता, बल्कि यह कहा गया कि ऐसा नोटिस बिना कानूनी अधिकार के नहीं दिया जा सकता।
अदालत ने दो सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख करते हुए यह स्पष्ट किया:
- Union of India बनाम Kunisetty Satyanarayana, (2006) 12 SCC 28
- Ministry of Defence बनाम Prabhash Chandra Mirdha, (2012) 11 SCC 565
इन फैसलों के अनुसार, यदि कोई कारण बताओ नोटिस:
- किसी अधिकारहीन अधिकारी द्वारा जारी किया गया हो, या
- कानूनी नियमों के विरुद्ध हो,
तो उसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
इस मामले में अदालत ने माना कि:
- Engineer-in-Chief के पास डिबारमेंट जारी करने का अधिकार नहीं था।
- 2007 के नियमों में डिबारमेंट का कोई उल्लेख नहीं है।
इसी आधार पर अदालत ने 11.07.2023 का कारण बताओ नोटिस रद्द कर दिया और सरकार को यह छूट दी कि वह यदि चाहे तो कानून के अनुरूप फिर से प्रक्रिया शुरू कर सकती है, बशर्ते उचित नियमों के तहत हो।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला सरकारी ठेकों में पारदर्शिता और कानूनी प्रक्रिया के पालन को सुनिश्चित करता है:
- ठेकेदारों के लिए: यह स्पष्ट करता है कि कोई भी अधिकारी अपनी मर्जी से डिबारमेंट जैसे कड़े कदम नहीं उठा सकता। यदि ऐसा होता है, तो कानूनी सुरक्षा उपलब्ध है।
- सरकारी अधिकारियों के लिए: यह आदेश एक चेतावनी है कि किसी भी अनुशासनात्मक कार्रवाई से पहले यह देखना जरूरी है कि क्या संबंधित नियमों में उस कार्रवाई की अनुमति है।
- न्याय प्रणाली के लिए: यह निर्णय प्रशासनिक प्रक्रिया में न्यायिक निगरानी की भूमिका को दोहराता है — यहां तक कि प्रारंभिक नोटिस भी कानून के अनुसार ही होना चाहिए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या Engineer-in-Chief को डिबारमेंट नोटिस देने का अधिकार था?
- न्यायालय का निर्णय: नहीं। उन्होंने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्य किया।
- क्या 2007 के नियम डिबारमेंट की अनुमति देते हैं?
- न्यायालय का निर्णय: नहीं। नियम केवल ब्लैकलिस्टिंग और सस्पेंशन की बात करते हैं।
- क्या शो-कॉज नोटिस के इस स्तर पर याचिका योग्य थी?
- न्यायालय का निर्णय: हां। क्योंकि नोटिस बिना वैध अधिकार के जारी हुआ था।
- सरकार को क्या निर्देश दिए गए?
- न्यायालय का निर्देश: यदि सरकार चाहती है, तो वह तीन महीने के भीतर कानून के तहत फिर से प्रक्रिया शुरू कर सकती है।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Union of India बनाम Kunisetty Satyanarayana, (2006) 12 SCC 28
- Ministry of Defence बनाम Prabhash Chandra Mirdha, (2012) 11 SCC 565
मामले का शीर्षक
Vijay Raj Mewar Construction Company Pvt. Ltd. बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 14521 of 2023
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति श्री पी. बी. बजंथरी
माननीय न्यायमूर्ति श्री रमेश चंद्र मालवीय
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री प्रभात रंजन, श्री चंदन कुमार, श्री अंश प्रसाद, श्री सुकरण गोप — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री अंजनी कुमार (AAG 4), श्री दीपक सहाय जमवार (AC to AAG 4) — प्रतिवादी की ओर से
निर्णय का लिंक
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