पटना हाई कोर्ट ने ठेकेदार को डिबार करने की चेतावनी को अवैध ठहराया

पटना हाई कोर्ट ने ठेकेदार को डिबार करने की चेतावनी को अवैध ठहराया

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में ग्रामीण कार्य विभाग, बिहार द्वारा एक निर्माण कंपनी को भविष्य के टेंडरों से बाहर (debar) करने की चेतावनी देने वाली नोटिस को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि विभाग के इंजीनियर इन चीफ़ के पास इस तरह की कार्यवाही करने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं था और नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो इस कार्रवाई को सही ठहराए।

इस मामले में याचिकाकर्ता एक निजी निर्माण कंपनी है, जिसने ग्रामीण कार्य विभाग के साथ “न्यू मेन्टेनेन्स पॉलिसी 2018” के तहत एक सड़क निर्माण का समझौता किया था। कार्य समय पर पूरा नहीं हुआ, जिस कारण विभाग ने 11 जुलाई 2023 को एक कारण बताओ नोटिस जारी कर कंपनी से पूछा कि क्यों उसे डिफॉल्टर घोषित कर भविष्य के सरकारी टेंडरों से बाहर न कर दिया जाए।

कंपनी ने इस नोटिस को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी। उसका कहना था कि न तो इंजीनियर इन चीफ़ को ऐसा आदेश देने का अधिकार है और न ही बिहार पंजीकरण नियमावली 2007 में “debarment” (भविष्य के टेंडरों से बाहर करने) का कोई प्रावधान है। इस नियमावली में केवल “ब्लैकलिस्ट” और “सस्पेंशन” (निलंबन) का प्रावधान है, जो कानूनी रूप से अलग अर्थ रखते हैं।

कोर्ट ने कहा कि आम तौर पर केवल कारण बताओ नोटिस को चुनौती देना सही नहीं होता, लेकिन जब वह नोटिस ऐसी संस्था से आए जो कानूनी रूप से अधिकृत नहीं है या नोटिस खुद ही नियमों के खिलाफ हो, तो उस पर कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है। यहाँ सरकार अपनी दलीलों में ऐसा कोई नियम नहीं बता पाई, जिसके तहत डिबारमेंट किया जा सके।

इसलिए कोर्ट ने कहा कि इंजीनियर इन चीफ़ द्वारा जारी किया गया नोटिस वैधानिक प्रावधानों के बिना जारी किया गया था और इसलिए इसे रद्द किया जाता है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि विभाग को उचित कानून के तहत कार्रवाई करनी है, तो वे तीन महीने के भीतर वैधानिक तरीके से नई कार्यवाही शुरू कर सकते हैं।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला बिहार में सरकारी ठेकों पर काम करने वाली कंपनियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह स्पष्ट करता है कि कोई भी विभागीय अधिकारी नियमों के बाहर जाकर किसी कंपनी को दंडित नहीं कर सकता।

यह न्यायिक निर्देश विभागों को यह याद दिलाता है कि अनुशासनात्मक कार्यवाही करते समय उन्हें केवल वैधानिक प्रावधानों के अनुसार ही कार्य करना होगा। यह ठेकेदारों को मनमानी कार्यवाही से सुरक्षा देता है और प्रशासनिक पारदर्शिता को बढ़ावा देता है।

सरकारी विभागों को भी यह संदेश जाता है कि डिबारमेंट जैसी गंभीर कार्रवाई केवल उचित नियमों और प्रक्रिया के तहत ही हो सकती है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या कारण बताओ नोटिस को रिट याचिका में चुनौती दी जा सकती है?
    ✔ हाँ, यदि वह अधिकारविहीन अधिकारी द्वारा या नियमों के विरुद्ध जारी हो।
  • क्या इंजीनियर इन चीफ़ के पास ठेकेदार को डिबार करने का अधिकार था?
    ❌ नहीं, नियमावली 2007 में ऐसा कोई अधिकार नहीं है।
  • क्या 2007 की नियमावली में डिबारमेंट का प्रावधान है?
    ❌ नहीं, केवल ब्लैकलिस्टिंग और सस्पेंशन का प्रावधान है।
  • निर्णय:
    ✔ दिनांक 11.07.2023 का कारण बताओ नोटिस रद्द।
    ✔ यदि आवश्यक हो, तो विभाग को तीन महीने के भीतर वैधानिक तरीके से कार्यवाही शुरू करने की स्वतंत्रता।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
Union of India v. Kunisetty Satyanarayana, (2006) 12 SCC 28
Ministry of Defence v. Prabhash Chandra Mirdha, (2012) 11 SCC 565

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
उपरोक्त दोनों निर्णय

मामले का शीर्षक
Vijay Raj Mewar Construction Company Private Limited बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
CWJC No. 14521 of 2023

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति रमेश चंद्र मालवीय

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री प्रभात रंजन, श्री चंदन कुमार, श्री अंश प्रसाद, श्री सुकरण गोप
प्रतिवादी की ओर से: श्री अंजनी कुमार (AAG 4), श्री दीपक सहाय जमवार (A.C. to AAG -4)

निर्णय का लिंक
https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/4090632a-3888-43ba-93e9-3ff334166111.pdf&search=Blacklisting

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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