निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में यह स्पष्ट किया है कि किसी भी व्यक्ति या संस्था को बिना उचित सुनवाई के दंडित नहीं किया जा सकता, विशेष रूप से तब जब उस पर सरकारी टेंडरों में भाग लेने से रोक लगा दी जाए। यह मामला एक ठेकेदार से जुड़ा है, जिसे बिहार सरकार के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग द्वारा बिना किसी पूर्व सूचना या सुनवाई के भविष्य के टेंडरों से प्रतिबंधित कर दिया गया था।
ठेकेदार ने कोर्ट में यह दलील दी कि विभाग ने उसे “कालेसूची” में डालने से पहले कोई कारण बताओ नोटिस (शो-कॉज) नहीं भेजा और ना ही अपनी बात रखने का अवसर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार कांट्रैक्टर्स रजिस्ट्रेशन नियमावली, 2007 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो विभाग को सीधे किसी ठेकेदार को डिबार करने की अनुमति देता हो।
हाईकोर्ट ने इस दलील को गंभीरता से लेते हुए संविधान और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की दृष्टि से मामले की जांच की। कोर्ट ने कहा कि सरकारी टेंडरों में भाग लेने से रोक लगाना, एक व्यक्ति के व्यवसायिक भविष्य पर सीधा प्रभाव डालता है और यह एक “सिविल परिणाम” (civil consequence) वाली कार्रवाई है। ऐसे मामलों में सुनवाई का अवसर देना आवश्यक होता है।
इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने निर्णयों का हवाला दिया गया। जैसे कि रघुनाथ ठाकुर बनाम बिहार राज्य (1989) 1 SCC 229 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चाहे नियमों में सुनवाई का स्पष्ट उल्लेख न हो, फिर भी यह एक मूल कानूनी सिद्धांत है कि किसी पर प्रतिकूल आदेश लागू करने से पहले उसे सुनने का अवसर मिलना चाहिए। इसी तरह इरूशियन इक्विपमेंट बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1975) 1 SCC 70 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार को भी व्यापारिक निर्णयों में पारदर्शिता और समानता बरतनी चाहिए।
पटना हाईकोर्ट ने इन सिद्धांतों के आधार पर पाया कि याचिकाकर्ता के साथ अन्याय हुआ है। इसलिए कोर्ट ने 31.12.2024 को जारी डिबार आदेश को रद्द कर दिया और विभाग को निर्देश दिया कि यदि वे भविष्य में कोई कार्रवाई करना चाहें तो पहले याचिकाकर्ता को सुनवाई का पूरा अवसर दें।
इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता द्वारा दायर एक अंतरिम आवेदन (I.A. No.1 of 2025) में भी इसी प्रकार की एक और कार्रवाई को चुनौती दी गई थी, जिसे कोर्ट ने समान आधार पर खारिज कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला उन सभी ठेकेदारों और आपूर्तिकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण है जो सरकारी विभागों के साथ कार्य करते हैं। यह स्पष्ट संदेश देता है कि बिना सुनवाई के किसी को डिबार या कालेसूची में डालना न केवल गलत है बल्कि कानून के खिलाफ भी है।
सरकारी विभागों के लिए यह फैसला एक चेतावनी की तरह है कि किसी भी कार्रवाई में प्रक्रिया और न्याय के सिद्धांतों का पालन करना अनिवार्य है। यह सरकारी ठेकों की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और भरोसेमंद बनाता है।
इससे आम जनता का भी सरकारी तंत्र पर विश्वास बढ़ता है और यह सुनिश्चित होता है कि सरकारी अनुबंध निष्पक्ष और वैधानिक तरीके से दिए जा रहे हैं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या बिना सुनवाई के किसी ठेकेदार को डिबार किया जा सकता है?
- निर्णय: नहीं। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
- कारण: सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के अनुसार, सिविल परिणाम वाली किसी भी कार्रवाई से पहले संबंधित व्यक्ति को सुनना आवश्यक है।
- क्या बिहार कांट्रैक्टर्स रजिस्ट्रेशन नियमावली, 2007 में डिबार करने का कोई प्रावधान है?
- निर्णय: नहीं।
- कारण: विभाग द्वारा की गई कार्रवाई नियमावली में निहित किसी वैधानिक अधिकार पर आधारित नहीं थी।
- ऐसी अवैध कार्रवाई का क्या उपाय है?
- निर्णय: आदेश को रद्द किया जाना चाहिए।
- कारण: कोर्ट ने डिबार आदेश को निरस्त कर दिया और कहा कि यदि भविष्य में कार्रवाई करनी हो, तो उचित कानूनी प्रक्रिया अपनाई जाए।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- रघुनाथ ठाकुर बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, (1989) 1 SCC 229
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Central Organisation for Railway Electrification बनाम ECI SPIC SMO MCML (JV), 2024 SCC OnLine SC 3219
- इरूशियन इक्विपमेंट एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, (1975) 1 SCC 70
मामले का शीर्षक
M/S Bolbum Construction बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No.734 of 2025
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति सुनील दत्ता मिश्रा
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री पी.एन. शाही, वरिष्ठ अधिवक्ता, श्री रवि कुमार, अधिवक्ता
राज्य की ओर से: श्री एस. रज़ा अहमद, एएजी-5, श्री आलोक रंजन, एसी टू एएजी-5
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