निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि दीवानी मामलों में कोर्ट द्वारा पारित डिक्री (आदेश) का पालन करवाने के लिए केवल दीवानी प्रक्रिया संहिता (CPC) में निर्धारित विधि का पालन किया जाना चाहिए। रिट याचिका दाखिल कर प्रशासनिक अधिकारियों से डिक्री लागू कराने की कोशिश कानून के सिद्धांतों के खिलाफ है।
यह मामला एक व्यक्ति (याचिकाकर्ता) द्वारा दायर उस रिट याचिका से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने दो पुराने दीवानी मामलों—टाइटल सूट संख्या 41/1977 और 116/1978—में मिली डिक्री के क्रियान्वयन के लिए जिला प्रशासन की मदद मांगी थी। learned सिंगल जज ने पटना हाई कोर्ट में C.W.J.C. No.19103/2010 के तहत आदेश दिया कि जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक, नालंदा डिक्री को लागू करने में सहयोग करें।
राज्य सरकार ने इस आदेश के खिलाफ लेटर्स पेटेंट अपील (LPA No.1467/2016) दायर की और कहा कि डिक्री लागू करने के लिए पहले से ही CPC में पूरी प्रक्रिया मौजूद है। इस मामले में हाई कोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार की दलील को सही माना और सिंगल जज के आदेश को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के घनश्याम दास गुप्ता बनाम अनंत कुमार सिन्हा (AIR 1991 SC 2251) फैसले का हवाला देते हुए कहा कि CPC के तहत डिक्री को लागू करने की पूरी व्यवस्था मौजूद है। यदि किसी पक्ष को इससे राहत नहीं मिलती, तो वह नियमित दीवानी मुकदमा दायर कर सकता है। रिट कोर्ट की भूमिका केवल निगरानी की होती है, न कि दीवानी आदेशों को लागू करवाने की।
कोर्ट ने यह भी कहा कि writ jurisdiction का उपयोग तब नहीं होना चाहिए जब वैकल्पिक कानूनी उपाय मौजूद हो। डिक्री के पालन में प्रशासनिक सहयोग देने का आदेश writ court को देने का अधिकार नहीं है।
अंततः कोर्ट ने सिंगल जज का आदेश रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को विधि अनुसार अन्य उपाय अपनाने की स्वतंत्रता दी।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय एक कानूनी सिद्धांत को दोहराता है—यदि कानून में कोई विशेष प्रक्रिया मौजूद है, तो उस प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है। writ jurisdiction केवल उन मामलों में प्रयोग किया जाना चाहिए जहां कोई वैकल्पिक उपाय उपलब्ध नहीं हो।
यह आम नागरिकों को यह स्पष्ट करता है कि दीवानी मामलों में डिक्री लागू कराने के लिए सीधे उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल करना उचित नहीं है। उन्हें पहले दीवानी न्यायालय के समक्ष CPC की निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।
राज्य सरकार और जिला प्रशासन के लिए यह राहतकारी है, क्योंकि उन्हें अब उन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना पड़ेगा, जहां कानूनी रूप से न्यायालय के आदेश का पालन केवल न्यायिक प्रक्रिया से होना चाहिए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या writ अदालत प्रशासन को दीवानी डिक्री लागू करने का निर्देश दे सकती है?
- ❌ नहीं, CPC में पहले से डिक्री लागू करने की प्रक्रिया मौजूद है।
- क्या सिंगल जज का आदेश विधिसम्मत था?
- ❌ नहीं, उन्होंने writ jurisdiction का अनुचित प्रयोग किया।
- अगर CPC से राहत नहीं मिलती तो उपाय क्या है?
- ✔️ नियमित दीवानी वाद दायर किया जा सकता है।
- अंतिम निर्णय:
- सिंगल जज का आदेश रद्द किया गया, याचिकाकर्ता को दीवानी उपाय अपनाने की अनुमति दी गई।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- घनश्याम दास गुप्ता बनाम अनंत कुमार सिन्हा, AIR 1991 SC 2251
मामले का शीर्षक
बिहार राज्य एवं अन्य बनाम वीरेन्द्र कुमार वर्मा
केस नंबर
Letters Patent Appeal No.1467 of 2016
(Civil Writ Jurisdiction Case No.19103 of 2010)
उद्धरण (Citation)
2021(1)PLJR 77
न्यायमूर्ति गण का नाम
- माननीय श्री न्यायमूर्ति ज्योति सरण
- माननीय श्री न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- अपीलकर्ता (राज्य) की ओर से: श्री अंजनी कुमार, AAG 4
- प्रतिवादी: अंतिम सुनवाई में अनुपस्थित
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyMxNDY3IzIwMTYjMSNO-G0eZi2xPoas=
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