निर्णय की सरल व्याख्या
इस केस में पटना हाईकोर्ट को यह तय करना था कि क्या डेब्ट्स रिकवरी ट्रिब्यूनल (DRT) को Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Securities Interest Act, 2002 (SARFAESI Act) की धारा 17(1) के तहत दायर की गई अपील में देरी को माफ करने का अधिकार है या नहीं।
मामला एक ऐसे व्यक्ति (याचिकाकर्ता) से जुड़ा था जिसने बैंक की नीलामी में एक संपत्ति खरीदी थी। लेकिन कई वर्षों बाद एक तीसरे व्यक्ति (प्रतिवादी संख्या 3) ने यह दावा किया कि उसे संपत्ति की बिक्री के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई और उसने DRT में आवेदन दायर कर नीलामी को चुनौती दी। यह चुनौती निर्धारित 45 दिन की समय-सीमा के लगभग 2080 दिन बाद दी गई थी।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि DRT के पास इतनी देरी को माफ करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले International Asset Reconstruction Company v. Official Liquidator of Aldrich Pharmaceuticals Ltd. का हवाला दिया जिसमें कहा गया कि Limitation Act सिर्फ RDB Act की धारा 19 के तहत दायर मूल आवेदनों पर ही लागू होता है, DRT के अन्य कार्यों पर नहीं।
वहीं, प्रतिवादी संख्या 3 का कहना था कि उन्हें कोई नोटिस नहीं मिला था और उन्हें नीलामी की जानकारी बहुत बाद में एक अन्य प्रक्रिया के दौरान मिली। उन्होंने पहले पटना हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने यह कहते हुए निपटा दिया कि वे चार सप्ताह के भीतर DRT में अपील दायर कर सकते हैं।
DRT ने इस आदेश के आधार पर देरी को माफ करते हुए अपील स्वीकार की। इस पर याचिकाकर्ता ने फिर से हाईकोर्ट का रुख किया।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुना और यह माना कि SARFAESI Act की धारा 17(7) में यह स्पष्ट है कि इस तरह के आवेदन को RDB Act के तहत तय नियमों के अनुसार निपटाया जाना चाहिए। चूंकि RDB Act में लिमिटेशन एक्ट लागू होता है, इसलिए SARFAESI के तहत धारा 17(1) के आवेदन में भी लिमिटेशन एक्ट लागू हो सकता है।
इस आधार पर पटना हाईकोर्ट ने DRT के फैसले को सही ठहराया और यह स्पष्ट किया कि कुछ विशेष परिस्थितियों में देरी को माफ किया जा सकता है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
इस फैसले का खास महत्व उन लोगों के लिए है जिनकी संपत्तियाँ बैंक द्वारा SARFAESI कानून के तहत जब्त की जाती हैं। यदि किसी को समय पर नोटिस नहीं मिला हो या वैध कारणों से देरी हुई हो, तो वे DRT में अपील कर सकते हैं, और ट्रिब्यूनल उस देरी को माफ कर सकता है।
वहीं बैंक और वित्तीय संस्थाओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे सभी कानूनी नोटिस समय पर भेजें और प्रक्रिया में कोई चूक न करें। यह फैसला यह भी स्पष्ट करता है कि न्याय की उपलब्धता तकनीकी सीमाओं के कारण बाधित नहीं होनी चाहिए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या DRT SARFAESI Act की धारा 17(1) के तहत दायर आवेदन में देरी को माफ कर सकता है?
- ✔️ हाँ, यदि कानून की संरचना (statutory scheme) इसकी अनुमति देती है।
- क्या Limitation Act, 1963, इस प्रक्रिया में लागू होता है?
- ✔️ हाँ, SARFAESI Act की धारा 17(7) और RDB Act की धारा 24 के संयोजन से लागू होता है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- International Asset Reconstruction Co. v. Official Liquidator of Aldrich Pharmaceuticals Ltd., AIR 2017 SC 5013
- Sakuru v. Tanaji, AIR 1985 SC 1279
- Ganesan v. Commissioner, TN HRCE Board, AIR 2019 SC 2343
- N. Balakrishnan v. M. Krishnamurthy, (1998) 7 SCC 123
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- M.P. Steel Corporation v. CCE, (2015) 7 SCC 58
- Transcore v. Union of India, AIR 2007 SC 712
- Bharat Petroleum v. N.R. Vairamani, (2004) 8 SCC 579
मामले का शीर्षक
CWJC No.17999 of 2017
केस नंबर
CWJC No.17999 of 2017
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 764
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री टी.एन. मैटिन, वरिष्ठ अधिवक्ता व श्री मोहम्मद कामिल अख्तर — याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री अजय कुमार सिन्हा — बैंक की ओर से
- श्री संजीव कुमार — प्रतिवादी संख्या 3 की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTc5OTkjMjAxNyMxI04=-FvS9ICuAoSo=
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।