निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे मामले में याचिका खारिज कर दी जिसमें याचिकाकर्ता ने चार साल सात महीने और बाईस दिन की देरी से अपील दायर की थी। यह अपील एक शिक्षक नियुक्ति विवाद से संबंधित थी, जिसे पहले एकलपीठ ने खारिज कर दिया था। उस आदेश के खिलाफ यह याचिका दायर की गई थी।
अपीलकर्ता ने देरी का कारण अपने पूर्व वकील की लापरवाही बताया। उसने दावा किया कि पहले वकील ने उसे केस की जानकारी नहीं दी और बाद में दूसरे वकील की मृत्यु हो गई, जिससे अपील समय पर दायर नहीं हो सकी। लेकिन कोर्ट ने इस तर्क को अस्वीकार कर दिया और कहा कि कानूनन केवल वकील को दोष देकर याचिकाकर्ता अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता।
न्यायालय ने कहा कि जब कोई व्यक्ति खुद अपने केस की निगरानी नहीं करता और सालों तक कोई कार्रवाई नहीं करता, तो वह “सावधान और सक्रिय पक्षकार” नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने यह भी बताया कि देरी को माफ करने के लिए जो कानूनी सिद्धांत होते हैं, वे तब ही लागू होते हैं जब याचिकाकर्ता ने ईमानदारी से समय पर प्रयास किए हों।
अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के Esha Bhattacharjee v. Managing Committee of Raghunathpur NAFAR Academy के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कोर्ट ने देरी को माफ करने के दिशा-निर्देश दिए थे। लेकिन पटना हाईकोर्ट ने कहा कि उस फैसले की परिस्थितियाँ इस केस से अलग थीं और इस केस में याचिकाकर्ता ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सीमाओं (Limitation) के कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मामले समय पर दायर हों। देरी से दायर की गई याचिकाओं से न्यायिक प्रक्रिया पर असर पड़ता है और यह अन्य पक्षकारों के लिए भी अनुचित होता है।
अंततः, अदालत ने पाया कि अपीलकर्ता ने जानबूझकर और लापरवाहीपूर्वक इतने सालों तक केस नहीं देखा। इसलिए, उसकी देरी माफ करने की अर्जी (I.A. No. 01 of 2022) को खारिज कर दिया गया और अपील भी खारिज हो गई।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि अदालतें अब समय पर कार्रवाई न करने वालों के प्रति नरमी नहीं दिखा रही हैं। यह विशेष रूप से उन सरकारी कर्मचारियों या नियुक्ति से संबंधित पक्षकारों के लिए चेतावनी है जो यह मानते हैं कि अदालतें हर हाल में उनकी बात सुनेंगी, चाहे वे कितनी भी देरी करें।
यह निर्णय सेवा विवादों (Service Disputes) में समयसीमा के पालन की अहमियत को दोहराता है। साथ ही यह सरकारी और निजी कर्मचारियों दोनों को सतर्क रहने की सीख देता है कि यदि वे न्याय पाना चाहते हैं तो उन्हें खुद अपने केस की निगरानी करनी होगी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- मुद्दा: क्या चार साल से अधिक की देरी माफ की जा सकती है?
- निर्णय: नहीं, कोर्ट ने कारण को अपर्याप्त मानते हुए खारिज किया।
- मुद्दा: क्या केवल वकील की गलती देरी माफ करने का आधार हो सकती है?
- निर्णय: नहीं, याचिकाकर्ता खुद भी जिम्मेदार होता है।
- मुद्दा: क्या सुप्रीम कोर्ट के पुराने निर्णय इस मामले पर लागू होते हैं?
- निर्णय: नहीं, परिस्थितियाँ भिन्न होने के कारण कोर्ट ने उसे लागू नहीं माना।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Esha Bhattacharjee v. Managing Committee of Raghunathpur NAFAR Academy & Ors., 2014 (1) PLJR 290
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Salil Dutta v. T.M. & M.C. Pvt. Ltd., (1993) 2 SCC 185
- Rajneesh Kumar & Another v. Ved Prakash, 2024 SCC Online SC 3380
- Bharat Barrel & Drum MFG Co. v. Employees State Insurance Corporation, (1971) 2 SCC 860
- State of Jammu and Kashmir v. R.K. Zalpuri & Ors., AIR 2016 SC 3006
- City and Industrial Development Corporation v. Dosu Aardeshir Bhiwandiwala, (2009) 1 SCC 168
मामले का शीर्षक
Raju Kumar v. The State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Letters Patent Appeal No. 632 of 2019
(CWJC No. 11415 of 2010 के अंतर्गत)
उद्धरण (Citation)– 2025(1) PLJR 16
न्यायमूर्ति गण का नाम
Hon’ble Mr. Justice P. B. Bajanthri
Hon’ble Mr. Justice S. B. Pd. Singh
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री अवधेश कुमार सिंह – अपीलकर्ता की ओर से
श्री शशि शेखर तिवारी, सहायक सरकारी अधिवक्ता – प्रतिवादी राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक–
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