निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए एक चौकीदार की बर्खास्तगी को रद्द कर दिया और आदेश दिया कि उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई, आपराधिक मुकदमे के समाप्त होने तक रोक दी जाए। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि संबंधित कर्मचारी को 30 दिनों के अंदर सेवा में पुनः बहाल किया जाए।
मामला एक ग्रामीण चौकीदार से जुड़ा था, जिस पर बैंक चोरी के एक मामले में नाम आने के कारण विभागीय कार्रवाई शुरू की गई थी। मजौलिया थाना कांड संख्या 15/2016 के तहत आईपीसी की धारा 457/380 के अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज हुई थी। पुलिस ने 25 मार्च 2016 को चार अभियुक्तों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया, जिसमें यह चौकीदार भी शामिल था। इसके बाद पुलिस अधीक्षक ने जिला पदाधिकारी को उसकी सेवा समाप्त करने का सुझाव दिया।
जिला पदाधिकारी ने 2019 में विभागीय कार्रवाई शुरू की और 16 जुलाई 2020 को आदेश संख्या 804 जारी कर उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया। इस आदेश के खिलाफ कर्मचारी ने पटना उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की।
कर्मचारी की मुख्य दलील थी कि उसके खिलाफ कोई स्वतंत्र अनुशासनहीनता या कर्तव्य में लापरवाही का आरोप नहीं है; विभाग ने सिर्फ इस आधार पर उसे दोषी माना कि पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी है। उसने यह भी बताया कि जांच अधिकारी ने दो बार यह सलाह दी थी कि जब तक आपराधिक मामला समाप्त नहीं होता, विभागीय जांच को रोका जाए। लेकिन बाद में नए जांच अधिकारी को नियुक्त कर दिया गया, जिसने उसके खिलाफ प्रतिकूल रिपोर्ट दी।
अदालत ने यह पाया कि विभागीय प्राधिकारी ने केवल आरोप पत्र और सह-अभियुक्तों के बयान के आधार पर कर्मचारी को दोषी ठहरा दिया, जबकि कोई स्वतंत्र साक्ष्य नहीं था। न्यायालय ने यह कहा कि केवल चार्जशीट दाखिल होना किसी व्यक्ति के दोषी होने का प्रमाण नहीं है। अदालत ने यह भी याद दिलाया कि राष्ट्रीय पुलिस आयोग ने भी कहा था कि गिरफ्तारी या आरोप लगने मात्र से किसी कर्मचारी के खिलाफ कठोर दंड देना अनुचित है।
इस प्रकार, अदालत ने बर्खास्तगी आदेश को रद्द करते हुए कहा कि जब तक आपराधिक मुकदमे का निपटारा नहीं हो जाता, तब तक विभागीय कार्यवाही स्थगित रहेगी। साथ ही, अदालत ने निर्देश दिया कि कर्मचारी को 30 दिनों के भीतर सेवा में पुनः बहाल किया जाए। हालांकि, उसके वेतन या अन्य लाभों के बारे में अंतिम निर्णय विभाग बाद में करेगा, खासकर यदि वह आपराधिक मामले में बरी हो जाता है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बिहार के सभी सरकारी कर्मचारियों, विशेषकर चौकीदार, गृह रक्षक (होमगार्ड) और अन्य अनुशासित सेवाओं के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इस निर्णय से स्पष्ट संदेश गया है कि केवल चार्जशीट दाखिल होने के आधार पर किसी कर्मचारी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
न्यायालय ने यह भी कहा कि विभागीय कार्रवाई में “स्वतंत्र प्रमाण” आवश्यक है — यानी विभाग को खुद यह साबित करना होगा कि कर्मचारी ने कर्तव्य में लापरवाही या अनुशासनहीनता की है। आपराधिक मामले में आरोप लगना और दोष सिद्ध होना, दोनों अलग बातें हैं।
इस निर्णय से यह भी सुनिश्चित हुआ कि किसी कर्मचारी को बिना पर्याप्त प्रमाण के सामाजिक रूप से बदनाम न किया जाए। इससे सरकारी विभागों को भी यह मार्गदर्शन मिला कि वे जल्दबाजी में कार्रवाई करने के बजाय, न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने तक प्रतीक्षा करें।
इस प्रकार, यह फैसला न केवल सरकारी कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि प्रशासनिक निष्पक्षता की भावना को भी मजबूत करता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या केवल आपराधिक चार्जशीट के आधार पर किसी सरकारी कर्मचारी को बर्खास्त किया जा सकता है?
❌ नहीं। उच्च न्यायालय ने कहा कि यह विधिक रूप से अस्थिर है, क्योंकि आरोप पत्र दोष सिद्धि का प्रमाण नहीं है। - क्या विभागीय जांच, आपराधिक मुकदमे के दौरान जारी रह सकती है?
⚖️ नहीं। अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में विभागीय जांच को तब तक रोक देना चाहिए जब तक कि आपराधिक मामला समाप्त न हो जाए। - क्या कर्मचारी को पुनः बहाल किया जाएगा?
✅ हाँ। न्यायालय ने आदेश दिया कि बर्खास्तगी आदेश रद्द किया जाए और कर्मचारी को 30 दिनों के भीतर सेवा में पुनः जोड़ा जाए।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Brij Kumar Singh बनाम बिहार राज्य (पटना उच्च न्यायालय, आदेश दिनांक 09.11.2010) — इसमें कहा गया था कि अनुशासित सेवाओं में “संभावनाओं के संतुलन” (preponderance of probabilities) के आधार पर निष्कर्ष निकाला जा सकता है, लेकिन स्वतंत्र प्रमाण आवश्यक है।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Joginder Kumar बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, AIR 1994 SC 1349 — सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गिरफ्तारी या आरोप मात्र पर किसी व्यक्ति को दंडित करना उचित नहीं है, और बिना परीक्षण के निष्कर्ष अनुचित हैं।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (पटना उच्च न्यायालय, एकल पीठ)
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 10746 of 2019
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 557
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति श्री राजीव रंजन प्रसाद
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री संजय कुमार नं. 7, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री अनिल कुमार, एसी टू एससी-8
निर्णय का लिंक
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