पटना हाईकोर्ट का फैसला: अपील में हुई सज़ा रद्द, अभियुक्त को राहत — 2024

पटना हाईकोर्ट का फैसला: अपील में हुई सज़ा रद्द, अभियुक्त को राहत — 2024

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आपराधिक पुनरीक्षण (Criminal Revision) में अपील अदालत द्वारा दिए गए दोषसिद्धि (Conviction) आदेश को रद्द कर दिया। यह मामला उस समय शुरू हुआ जब शिकायतकर्ता ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई कि सुबह स्कूल से लौटते समय रास्ते में झगड़ा हुआ और मारपीट की गई। रिपोर्ट में आरोप था कि गाली-गलौज हुई, हाथ पकड़कर चोट पहुँचाई गई और पुरानी रंजिश के कारण घटना घटी।

पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की और जाँच के बाद आरोपपत्र (Chargesheet) अदालत में दाखिल किया। मुकदमे के दौरान आठ गवाह पेश किए गए, लेकिन केवल शिकायतकर्ता ने घटना का समर्थन किया। बाकी गवाहों ने या तो घटना से इंकार किया या शिकायतकर्ता की बातों का साथ नहीं दिया।

निचली अदालत (ट्रायल कोर्ट) ने सबूतों की कमी और गवाहों के विरोधाभास के कारण सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया। लेकिन शिकायतकर्ता ने इस फैसले के खिलाफ आपराधिक अपील दायर की। अपील अदालत ने ट्रायल कोर्ट का आदेश पलटते हुए सिर्फ एक अभियुक्त को दोषी ठहराया और बाकी अभियुक्तों को बरी रहने दिया। दोषसिद्धि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 323 (साधारण मारपीट), 325 (गंभीर चोट) और 504 (जानबूझकर अपमान) के तहत हुई।

सज़ा में अदालत ने अभियुक्त को दो साल की प्रोबेशन अवधि दी, यानी जेल भेजने के बजाय शर्तों पर निगरानी में रहने का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ अभियुक्त ने पटना हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की।

हाईकोर्ट ने पूरे मामले की गहराई से जाँच की और पाया कि अपील अदालत ने गलत तरीके से दोषसिद्धि की थी।

कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ:

  1. स्वतंत्र गवाहों का समर्थन नहीं: शिकायतकर्ता ने कहा था कि घटना को एक पंचायत प्रतिनिधि ने देखा, लेकिन जब वही गवाह अदालत में आया तो उसने कुछ भी नहीं देखा होने की बात कही। यानी जिस पर सबसे ज्यादा भरोसा किया गया, उसने ही शिकायतकर्ता की बातों को गलत साबित कर दिया।
  2. चिकित्सा रिपोर्ट में कमी: डॉक्टर ने कहा कि चोट “गंभीर” है, लेकिन उसने कोई एक्स-रे रिपोर्ट नहीं देखी। बिना रेडियोलॉजिस्ट की राय और बिना एक्स-रे के केवल अनुमान पर चोट को “गंभीर” मानना अदालत ने गलत ठहराया।
  3. शिकायतकर्ता का विरोधाभास: जिरह के दौरान शिकायतकर्ता ने खुद कहा कि घटना के समय उसे पीछे से पकड़ लिया गया था और वह हमलावरों को देख नहीं पाया। ऐसे में अदालत ने सवाल उठाया कि जब वह देख ही नहीं पाया तो कैसे उसने अभियुक्त का नाम लिया?
  4. असंगत निर्णय: अपील अदालत ने उसी गवाही को बाकी अभियुक्तों के लिए अविश्वसनीय मानकर उन्हें बरी कर दिया, लेकिन उसी गवाही के आधार पर एक अभियुक्त को दोषी ठहराया। हाईकोर्ट ने कहा कि यह दोहरा मापदंड है और न्यायसंगत नहीं।

इन सभी कारणों से हाईकोर्ट ने अपील अदालत का फैसला रद्द कर दिया और निचली अदालत का बरी करने का आदेश बहाल कर दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

  • यह फैसला बताता है कि आपराधिक मामलों में केवल एक गवाह की गवाही, अगर उसमें विरोधाभास हो और दूसरे गवाह समर्थन न करें, तो सज़ा का आधार नहीं बन सकती।
  • अदालत ने साफ किया कि “गंभीर चोट” साबित करने के लिए एक्स-रे और विशेषज्ञ राय जैसे ठोस सबूत जरूरी हैं। केवल डॉक्टर की मौखिक राय पर्याप्त नहीं।
  • यह फैसला अपील अदालतों को सावधान करता है कि वे सबूतों की जांच संतुलित तरीके से करें और एक ही गवाही को अलग-अलग अभियुक्तों के लिए अलग-अलग तरह से न आँकें।
  • आम जनता के लिए यह संदेश है कि अदालतें बिना ठोस सबूत के किसी को दोषी नहीं ठहरातीं। शक का लाभ (Benefit of Doubt) हमेशा अभियुक्त को दिया जाता है।
  • पुलिस और अभियोजन एजेंसियों के लिए यह एक सीख है कि जाँच के दौरान स्वतंत्र गवाह और पूरी मेडिकल रिपोर्ट सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या अपील अदालत का फैसला सही था, जिसमें उसने एक अभियुक्त को दोषी ठहराया लेकिन बाकी को बरी कर दिया, जबकि सबूत एक जैसे थे?
    • निर्णय: नहीं। हाईकोर्ट ने कहा कि यह फैसला असंगत और “परवर्स” था।
  • क्या बिना एक्स-रे और रेडियोलॉजिस्ट की रिपोर्ट के चोट को “गंभीर” माना जा सकता है?
    • निर्णय: नहीं। ऐसी राय स्वीकार्य नहीं है।
  • क्या शिकायतकर्ता की गवाही, जब उसने खुद माना कि उसने अभियुक्त को देखा ही नहीं, दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त हो सकती है?
    • निर्णय: नहीं। संदेह की स्थिति में अभियुक्त को लाभ दिया जाएगा।

मामले का शीर्षक

Ranbir Yadav @ Ranvir Kumar बनाम बिहार राज्य

केस नंबर

Criminal Revision No. 143 of 2023 (Makhdumpur P.S. Case No. 139 of 2013; G.R. No. 1061 of 2013; Trial No. 767 of 2017)

उद्धरण (Citation)

2025 (1) PLJR 302

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति अरविंद सिंह चंदेल

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री विजय कुमार, अधिवक्ता; श्री कुवेर पाठक, अधिवक्ता; श्री देवेंद्र कुमार, अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से: श्री सैयद मोजिबुर रहमान, अपर लोक अभियोजक

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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