निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में उस दहेज प्रताड़ना मामले को आंशिक रूप से खारिज कर दिया, जिसमें महिला ने अपने पति के साथ-साथ पूरे ससुराल पक्ष—ससुर, ननद और देवरों पर मारपीट और दहेज मांगने के आरोप लगाए थे।
यह मामला महिला थाना, सहरसा में वर्ष 2014 में दर्ज किया गया था, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (दहेज उत्पीड़न), 323 (मारपीट), 379/34 (सामूहिक चोरी व साझा अपराध) और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
महिला ने आरोप लगाया था कि उसकी शादी 2008 में हुई थी। विवाह के समय उसके माता-पिता ने 2 लाख रुपये मूल्य के उपहार—जैसे गहने, कपड़े और टीवी दिए थे। लेकिन शादी के बाद उसके ससुराल वाले ₹50,000 की अतिरिक्त दहेज की मांग करने लगे। जब मांग पूरी नहीं हुई, तो उसके साथ मारपीट की गई, खाना देना बंद कर दिया गया और गहने छीन लिए गए। उसने अपने पिता को फोन कर बुलाया, और उनके साथ भी दुर्व्यवहार हुआ।
इस मामले में जिन पर आरोप लगाए गए, वे थे—पति, ससुर, सास, ननद और दो देवर। इनमें से देवर, ननद और ससुर ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की कि उनके खिलाफ कोई ठोस या व्यक्तिगत आरोप नहीं है, सिर्फ सामान्य और सामूहिक आरोप लगाए गए हैं। साथ ही यह भी कहा गया कि वे अलग रहते हैं और पति दिल्ली में रहता है।
कोर्ट ने केस डायरी मंगवाकर जांच की और पाया कि महिला ने अपनी मूल शिकायत दोहराई थी लेकिन आरोपों में कोई ठोस विवरण नहीं था। गवाहों में एक पड़ोसी ने भी कहा कि पति-पत्नी पहले दिल्ली में साथ रहते थे और विवादों के बाद महिला मायके चली गई।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ पूर्व फैसलों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया था कि सिर्फ रिश्तेदारी के आधार पर बिना ठोस आरोपों के पूरे परिवार को फंसाना कानून का दुरुपयोग है।
इन तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने पाया कि देवर, ननद और ससुर के खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं है। केवल सामान्य आरोपों के आधार पर उन्हें अदालत में घसीटना न्याय का अपमान होगा। इसलिए उनके खिलाफ दर्ज मामले को रद्द कर दिया गया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला उन मामलों में मिसाल बनता है जहाँ दहेज उत्पीड़न के नाम पर पूरे ससुराल पक्ष को घसीटा जाता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी पर आरोप लगाने हैं, तो वह स्पष्ट और ठोस होने चाहिए। सिर्फ सामान्य आरोपों के आधार पर परिवार के अन्य सदस्यों को मानसिक और कानूनी रूप से परेशान करना अनुचित है।
यह निर्णय पुलिस और निचली अदालतों के लिए भी एक सख्त संदेश है कि किसी मामले में अभियुक्त बनाए जाने से पहले आरोपों की ठोस जांच होनी चाहिए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या बिना ठोस आरोपों के ससुराल पक्ष पर मुकदमा चलाया जा सकता है?
- कोर्ट का निर्णय: नहीं, बिना विशेष आरोपों के मुकदमा न्याय की अवहेलना होगी।
- क्या देवर, ननद, ससुर जैसे रिश्तेदारों को केवल पारिवारिक संबंधों के आधार पर फँसाया जा सकता है?
- कोर्ट का निर्णय: नहीं, उनके खिलाफ स्पष्ट और निर्दिष्ट आरोप होने चाहिए।
- क्या धारा 482 Cr.P.C. के तहत कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है?
- कोर्ट का निर्णय: हाँ, यदि कोई अभियुक्त बिना कारण अदालत में घसीटा जा रहा है तो कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Preeti Gupta & Anr. v. State of Jharkhand, AIR 2010 SC 3363
- K. Subba Rao & Ors. v. State of Telangana, AIR 2018 SC 4009
- Neelu Chopra & Anr. v. Bharti, (2009) 10 SCC 184
मामले का शीर्षक
Munna Kumar @ Kumodh Kumar and Ors. v. State of Bihar and Anr.
केस नंबर
Criminal Miscellaneous No. 7266 of 2015
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 468
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति शिवाजी पांडेय
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री आलोक कुमार, अधिवक्ता – याचिकाकर्ताओं की ओर से
- श्री नीरज कुमार, अधिवक्ता – याचिकाकर्ताओं की ओर से
- श्री नवल किशोर प्रसाद, एपीपी – राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/vieworder/NiM3MjY2IzIwMTUjNCNO-wx49E–am1–V9UFE=
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।