निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए पुलिस को आदेश दिया कि वह घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न की शिकायत की जांच 6 सप्ताह के भीतर निष्पक्ष तरीके से पूरी करे।
इस मामले में पीड़ित महिला ने 2021 में अपने पति और ससुरालवालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी। शिकायत में भारतीय दंड संहिता की धाराएं 498A (दहेज उत्पीड़न), 323 (मारपीट), 504, 506 (धमकी), और 34 (साझा आपराधिक मंशा) के साथ-साथ दहेज निषेध अधिनियम की धाराएं लगाई गई थीं। यह एफआईआर पटना महिला थाने में दर्ज की गई थी।
महिला ने आरोप लगाया कि कई बार अनुरोध और अनुस्मारक देने के बावजूद पुलिस ने जांच को गंभीरता से नहीं लिया और न ही किसी अंतिम रिपोर्ट या चार्जशीट को दाखिल किया। आरोप यह भी था कि ससुराल पक्ष प्रभावशाली है और उनके दबाव में पुलिस जानबूझकर जांच को लटकाए हुए है।
सरकारी पक्ष ने कोर्ट में कहा कि जांच अभी चल रही है और किसी भी प्रकार की जानबूझकर देरी नहीं की गई है। काम का बोझ और प्रक्रियागत कारणों से विलंब हुआ है।
कोर्ट ने पाया कि:
- शिकायत को दर्ज हुए लंबा समय बीत गया है, लेकिन जांच का कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है।
- दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा जैसे मामलों में देरी से पीड़िता को न्याय नहीं मिल पाता।
- पुलिस का यह दायित्व है कि वह समयबद्ध और निष्पक्ष जांच करे।
इसलिए पटना हाई कोर्ट ने पटना के पुलिस अधीक्षक (SP) को आदेश दिया कि:
- जांच निष्पक्ष ढंग से 6 हफ्ते के भीतर पूरी होनी चाहिए।
- चार्जशीट या क्लोजर रिपोर्ट नियमानुसार अदालत में दाखिल की जाए।
- यदि जांच अधिकारी ने लापरवाही की हो, तो राज्य पुलिस मुख्यालय उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई करे।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला खासकर महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है जो दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के मामलों में पुलिस की निष्क्रियता के कारण न्याय से वंचित रह जाती हैं। यह निर्णय यह दर्शाता है कि न्यायपालिका ऐसे मामलों में मूकदर्शक नहीं बनी रहेगी और ज़रूरत पड़ने पर वह पुलिस को भी दिशा-निर्देश देने में संकोच नहीं करेगी।
यह फैसला पुलिस प्रशासन के लिए भी चेतावनी है कि संवेदनशील मामलों में निष्क्रियता या टालमटोल की नीति को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। साथ ही, यह नागरिकों को यह विश्वास भी दिलाता है कि संविधान के तहत उनके अधिकारों की रक्षा के लिए उच्च न्यायालय उपलब्ध है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या आपराधिक मामलों में निष्पक्ष जांच के लिए हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की जा सकती है?
✔️ हां। जब पुलिस अपने कानूनी कर्तव्य को निभाने में विफल रहती है, तब संविधान का अनुच्छेद 226 लागू होता है। - क्या इस मामले में जांच में अनुचित देरी हुई थी?
✔️ हां। एफआईआर दर्ज हुए काफी समय बीत गया था और कोई अंतिम रिपोर्ट दाखिल नहीं की गई थी। - क्या पुलिस का दायित्व है कि वह समय से जांच पूरी करे?
✔️ हां। दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के अनुसार, पुलिस को जल्द जांच पूरी करनी चाहिए, विशेषकर महिलाओं से जुड़े मामलों में। - कोर्ट ने क्या निर्देश दिए?
✔️ 6 सप्ताह में जांच पूरी करें और चार्जशीट या क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करें। लापरवाही करने वाले अधिकारी पर विभागीय कार्रवाई की जाए।
मामले का शीर्षक
Petitioner बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 647 of 2023
उद्धरण (Citation)
2020 (3) PLJR 128
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से:
- श्री संतोष कुमार, अधिवक्ता
प्रतिवादी राज्य की ओर से:
- श्री मनीष कुमार, SC-5
- श्री संजीत कुमार, सहायक अधिवक्ता SC-5
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiM3MzMyNSMyMDE5IzEjTg==-rGMZuwwloU0=
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