निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में दहेज प्रताड़ना से जुड़ा आपराधिक मामला रद्द कर दिया क्योंकि पति-पत्नी ने आपसी समझौते से अपने मतभेद सुलझा लिए और अब साथ में शांतिपूर्वक जीवन बिता रहे हैं। न्यायालय ने यह आदेश दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए दिया, हालांकि यह मामला गैर-समझौता योग्य अपराध से जुड़ा था।
मूल रूप से यह मामला एक महिला द्वारा अपने पति और ससुराल पक्ष के विरुद्ध दायर शिकायत से जुड़ा था। उन्होंने आरोप लगाया था कि विवाह के बाद उनके ससुराल वालों ने एक चारपहिया वाहन की मांग की और मांग पूरी नहीं होने पर उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। शिकायत में यह भी उल्लेख था कि बेटी के जन्म के बाद उन्हें ससुराल में प्रवेश करने के लिए ₹20 लाख अपने बच्चे के नाम पर जमा करने को कहा गया।
इस शिकायत पर समस्तीपुर की न्यायिक दंडाधिकारी ने cognizance लेते हुए मुकदमा आरंभ कर दिया था। लेकिन मुकदमे की प्रक्रिया के दौरान, पति-पत्नी दोनों ने न्यायालय को बताया कि अब वे अपने मतभेद सुलझा चुके हैं और साथ रह रहे हैं। उन्होंने आपसी समझौते का संयुक्त हलफनामा दाखिल किया।
शिकायतकर्ता महिला की ओर से उपस्थित वकील ने इस समझौते का विरोध नहीं किया और बताया कि अब कोई आपत्ति नहीं है। राज्य की ओर से उपस्थित सहायक लोक अभियोजक (APP) ने भी आपत्ति नहीं जताई।
न्यायालय ने माना कि हालांकि धारा 498A आईपीसी के तहत मामला समझौता योग्य नहीं है, लेकिन उच्चतम न्यायालय के कई निर्णयों के आधार पर यदि पति-पत्नी के बीच समझौता हो गया हो और मामला निजी प्रकृति का हो, तो धारा 482 CrPC के तहत कार्यवाही रद्द की जा सकती है।
अंततः कोर्ट ने कहा कि जब दोनों पक्ष समझौता कर चुके हैं और साथ रहना चाहते हैं, तो आपराधिक मुकदमा जारी रखने से दोनों को ही मानसिक पीड़ा होगी और यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि न्यायपालिका वैवाहिक विवादों में आपसी समाधान को प्राथमिकता देती है। यहां तक कि गैर-समझौता योग्य मामलों में भी यदि पति-पत्नी ने आपसी सहमति से मतभेद सुलझा लिए हैं, तो उच्च न्यायालय कार्यवाही को रद्द कर सकता है।
आम जनता के लिए यह संदेश है कि कानून केवल सजा देने का माध्यम नहीं है, बल्कि सुलह और शांतिपूर्ण समाधान को भी महत्व देता है। सरकार और न्यायालयों के लिए यह निर्णय समय और संसाधनों की बचत का भी उदाहरण है, जिससे गंभीर मामलों पर अधिक ध्यान दिया जा सके।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या धारा 498A IPC के तहत आपराधिक कार्यवाही आपसी समझौते के बाद रद्द की जा सकती है?
- कोर्ट का निर्णय: हां, धारा 482 CrPC के तहत कोर्ट कार्यवाही रद्द कर सकती है।
- क्या ट्रायल कोर्ट ऐसे मामलों में स्वतः कार्यवाही बंद कर सकता है?
- कोर्ट का निर्णय: नहीं, ट्रायल कोर्ट को इसकी शक्ति नहीं है; केवल उच्च न्यायालय ही ऐसा कर सकता है।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- B.S. Joshi & Ors. v. State of Haryana, (2003) 4 SCC 675
- Jitendra Raghuvanshi v. Babita Raghuvanshi, (2013) 4 SCC 58
- Gian Singh v. State of Punjab, (2012) 10 SCC 303
- M.A. Arshad & Ors. v. State of Bihar & Anr., 2017 SCC Online Pat 2779
मामले का शीर्षक
Somesh Sharma & Ors. v. State of Bihar & Anr.
केस नंबर
Criminal Miscellaneous No. 17588 of 2020
उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 153
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति आलोक कुमार पांडेय
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री विजय आनंद – याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री अरुण कुमार सिंह – प्रतिवादी की ओर से
- APP – राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
NiMxNzU4OCMyMDIwIzEjTg==-KZgJtbq–am1—-am1–1w=
“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”