पटना उच्च न्यायालय 2021 का फैसला: गैर-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र न देने पर आरक्षण का लाभ नहीं

पटना उच्च न्यायालय 2021 का फैसला: गैर-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र न देने पर आरक्षण का लाभ नहीं

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की भर्ती से जुड़ा है। वर्ष 2016 में BPSC ने आर्ट्स और क्राफ्ट विषय के लेक्चरर की 26 पदों पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला। इनमें से 5 पद अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) के लिए आरक्षित थे।

विज्ञापन में साफ लिखा था कि EBC या पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को तीन कागजात देना अनिवार्य है:

  1. जाति प्रमाणपत्र
  2. मूल निवास प्रमाणपत्र
  3. गैर-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र

साथ ही यह भी शर्त थी कि मूल प्रमाणपत्र इंटरव्यू में दिखाना अनिवार्य है, अन्यथा आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।

याचिकाकर्ता ने जाति प्रमाणपत्र तो लगाया लेकिन गैर-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र नहीं दिया। उसने लिखित परीक्षा दी और 69.48 अंक हासिल किए। अंतिम परिणाम में सामान्य वर्ग का कटऑफ 71.766 था जबकि EBC वर्ग का कटऑफ 64.45 था। यानी अगर उसे EBC में गिना जाता तो वह चयनित हो जाता।

लेकिन BPSC ने उसे सामान्य वर्ग मानकर देखा और वह चयनित नहीं हो पाया।

याचिकाकर्ता का तर्क था कि –

  • वह लोहार जाति से है जिसे पहले EBC माना जाता था।
  • 2016 में सरकार ने एक आदेश निकालकर लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति (ST) की श्रेणी में रखने की बात कही, जिसके कारण गैर-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र जारी नहीं हुआ।
  • सिर्फ तकनीकी कारण (प्रमाणपत्र न लगने) से उसका हक नहीं छीना जाना चाहिए।

उसने कई अदालत के पुराने फैसलों का हवाला दिया, जैसे राम कुमार गिजरोया बनाम DSSSB (2016) और धीरेंद्र सिंह पालीवाल बनाम UPSC (2017)। इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि देर से प्रमाणपत्र जमा करने पर भी उम्मीदवार का हक नहीं छीना जा सकता।

BPSC और राज्य सरकार ने कहा कि –

  • विज्ञापन में साफ शर्त थी कि गैर-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र जरूरी है।
  • यह प्रमाणपत्र सिर्फ औपचारिकता नहीं बल्कि मूल शर्त है, क्योंकि यह तय करता है कि कोई उम्मीदवार क्रीमी लेयर (उच्च आय वर्ग) में आता है या नहीं।
  • याचिकाकर्ता ने यह प्रमाणपत्र न तो आवेदन के समय और न ही इंटरव्यू में दिया, बल्कि उसके पास आज तक यह प्रमाणपत्र नहीं है।

न्यायालय ने कहा कि –

  • जाति एक स्थायी पहचान है, लेकिन “क्रीमी लेयर” की स्थिति आय और सामाजिक परिस्थितियों पर आधारित है, जो समय-समय पर बदल सकती है।
  • इसलिए गैर-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र देना अनिवार्य है।
  • बिना प्रमाणपत्र के कोई भी उम्मीदवार आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता।
  • याचिकाकर्ता ने 2016 के आदेश को समय पर चुनौती भी नहीं दी, इसलिए अब यह दलील नहीं मानी जा सकती।

अंततः कोर्ट ने कहा कि BPSC का फैसला सही था और याचिकाकर्ता को EBC का लाभ नहीं मिल सकता।

निर्णय का महत्व और प्रभाव

  • उम्मीदवारों के लिए: यह फैसला एक चेतावनी है कि भर्ती विज्ञापन में लिखी हर शर्त का पालन करना जरूरी है। कोई भी आवश्यक दस्तावेज (जैसे गैर-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र) समय पर जमा न करने पर आरक्षण का लाभ खो सकते हैं।
  • भर्ती आयोगों के लिए: अदालत ने यह साफ किया कि विज्ञापन की शर्तों में किसी तरह की ढील नहीं दी जा सकती, जब तक कि विज्ञापन या नियमों में खुद ऐसा प्रावधान न हो।
  • सार्वजनिक हित में: यह फैसला बताता है कि आरक्षण का लाभ सिर्फ उन्हीं को मिलेगा जो वास्तविक रूप से आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित हैं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या बिना गैर-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र दिए EBC आरक्षण मिल सकता है?
    • नहीं। अदालत ने कहा कि यह प्रमाणपत्र जरूरी है, इसके बिना आरक्षण नहीं मिलेगा।
  • क्या लोहार जाति को लेकर 2016 का आदेश उम्मीदवार को छूट दिला सकता है?
    • नहीं। उम्मीदवार ने समय पर आदेश को चुनौती नहीं दी और न ही प्रमाणपत्र बनवाया।
  • क्या पुराने सुप्रीम कोर्ट के फैसले इस मामले में लागू होते हैं?
    • नहीं। क्योंकि उन मामलों में उम्मीदवारों के पास प्रमाणपत्र था, बस देर से दिया गया था। यहाँ तो उम्मीदवार ने कभी प्रमाणपत्र बनवाया ही नहीं।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Ram Kumar Gijroya v. DSSSB, (2016) 4 SCC 754
  • Dheerender Singh Paliwal v. UPSC, (2017) 11 SCC 276
  • Prabhat Kumar Sharma v. UPSC, (2006) 10 SCC 587
  • Shashi Bhushan Yadav v. State of Bihar, 2019 (3) PLJR 466

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Braj Kishore Prasad v. State of Bihar, (1998) 3 PLJR 34 (Full Bench)
  • Dr. Santosh Kumar v. State of Bihar, 2017 (1) PLJR 786
  • Tar Babu Yadav v. State of Bihar, 2011 (4) PLJR 185
  • Harish Chandra Patel v. State of Bihar, 2012 (1) PLJR 397
  • Vandana Govindam v. State of Bihar, 2011 (2) PLJR 585
  • Bedanga Talukdar v. Saifudaullah Khan, (2011) 12 SCC 85
  • Indra Sawhney v. Union of India, 1992 Supp (3) SCC 217

मामले का शीर्षक

Pankaj Kumar बनाम State of Bihar एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 7661 of 2020

उद्धरण (Citation)

2021(1)PLJR 491

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह (निर्णय दिनांक: 04.01.2021)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री कुमार कौशिक, अधिवक्ता; श्रीमती नम्रता दुबे, अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से: सुश्री शिल्पा सिंह, G.A.-12; सुश्री अभंजलि, AC to G.A.-12
  • BPSC की ओर से: श्री संजय पांडेय, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNzY2MSMyMDIwIzEjTg==-9M0nHSCrePU=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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