निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में उस सरकारी भर्ती विज्ञापन की एक धारा को रद्द कर दिया है जिसमें बिहार के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों से पास हुए अभियंता छात्रों के लिए 50% क्षैतिज आरक्षण का प्रावधान था। यह भर्ती विशेष सर्वेक्षण सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी (Special Survey Assistant Settlement Officer) के पद के लिए की जा रही थी, जिसे भूमि अभिलेख और सर्वेक्षण निदेशालय ने विज्ञापन संख्या 3/2019 के तहत जारी किया था।
याचिकाकर्ता एक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं और पिछड़ा वर्ग (BC) से आते हैं। उन्होंने विज्ञापन की धारा 3(ii) को चुनौती दी, जिसमें कहा गया था कि बिहार के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों से पास छात्रों को 50% क्षैतिज आरक्षण मिलेगा। याचिकाकर्ता का तर्क था कि ऐसा कोई आरक्षण राज्य सरकार के नियमों में नहीं है और यह पूरी तरह असंवैधानिक है।
यह भर्ती “बिहार विशेष सर्वेक्षण मानदेय आधारित संविदा नियुक्ति नियमावली, 2019” के अंतर्गत की जा रही थी। इस नियमावली में केवल उन्हीं आरक्षणों को मान्यता दी गई है, जो सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा अधिसूचित हैं। लेकिन सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों के छात्रों के लिए कोई विशेष आरक्षण की अधिसूचना नहीं थी।
राज्य सरकार की ओर से अदालत में दलील दी गई कि यह प्रावधान “राज्य हित” में किया गया था। लेकिन जब कोर्ट ने पूछा कि इसका कोई सरकारी आदेश या नियम है क्या, तो राज्य सरकार ऐसा कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सकी। सामान्य प्रशासन विभाग का 04.09.2017 का एक पत्र प्रस्तुत किया गया, जिसमें केवल महिलाओं, दिव्यांगों और स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों के लिए आरक्षण का उल्लेख था—सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों के लिए कोई उल्लेख नहीं था।
न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि सरकारी नौकरियों की भर्ती केवल विधिवत नियमों के अनुसार ही की जा सकती है। विज्ञापन में ऐसा कोई प्रावधान नहीं जो नियमों में न हो या उसके विपरीत हो।
अतः कोर्ट ने विज्ञापन की धारा 3(ii) को अवैध मानते हुए रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि बिना इस आरक्षण को लागू किए हुए नई मेरिट सूची तैयार की जाए और भर्ती प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाए।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी नौकरियों की भर्ती पूरी तरह से कानूनी प्रावधानों के अनुसार होनी चाहिए। यह उन उम्मीदवारों के लिए न्याय है जो निजी संस्थानों से पढ़े हैं लेकिन प्रतिभावान हैं।
सरकार के लिए यह एक स्पष्ट संदेश है कि किसी भी प्रकार का आरक्षण तभी लागू किया जा सकता है जब वह विधिवत अधिसूचित हो। मनमाने तरीके से आरक्षण देने से पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं और न्यायिक हस्तक्षेप की संभावना बनती है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज से पास छात्रों को 50% क्षैतिज आरक्षण देना वैध था?
- निर्णय: नहीं। ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं था, इसलिए यह अवैध करार दिया गया।
- क्या कोई सरकारी आदेश इस आरक्षण को समर्थन देता है?
- निर्णय: नहीं। राज्य सरकार कोई वैध दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सकी।
- क्या प्रोविजनल मेरिट सूची में चयनित अभ्यर्थियों को अधिकार प्राप्त था?
- निर्णय: नहीं। प्रोविजनल चयन का कोई स्थायी अधिकार नहीं होता।
- क्या राहत दी गई?
- निर्णय: धारा 3(ii) को रद्द किया गया और नई मेरिट सूची बनाने का निर्देश दिया गया।
मामले का शीर्षक
Amit Kumar Azad vs. The State of Bihar & Others
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 14533 of 2019
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 68
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री प्रशांत सिन्हा, अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री रोहन वर्मा, अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री मोहम्मद आसिफ कलीम, सहायक अधिवक्ता (AAG-12) — राज्य सरकार की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTQ1MzMjMjAxOSMxI04=-wobrVHwU4es=
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