निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला परिवारिक संपत्ति के बंटवारे और उससे होने वाली किराये की आय को लेकर पटना उच्च न्यायालय में आया था।
याचिकाकर्ता (प्लaintिफ) ने दावा किया कि वह संयुक्त परिवार की संपत्ति का हिस्सेदार है। उसने 1/9वां हिस्सा अपनी दिवंगत माँ की संपत्ति (अनुसूची A और C) में और 1/6वां हिस्सा उस संपत्ति (अनुसूची B) में मांगा, जो उसके और भाइयों के नाम पर थी।
उसका आरोप था कि पिता (प्रतिवादी नं. 1) परिवार के कर्ता (Karta) होने के नाते किराया वसूल रहे थे, लेकिन उसका हिस्सा नहीं दे रहे थे। इसलिए उसने अदालत से अनुरोध किया कि एक रिसीवर नियुक्त किया जाए, जो किराये की राशि अदालत में जमा कराए।
ट्रायल कोर्ट का फैसला
पटना की निचली अदालत (Sub Judge VIII) ने 15 जून 2017 को रिसीवर नियुक्त करने की अर्जी खारिज कर दी। इसके खिलाफ अपील पटना उच्च न्यायालय में की गई।
प्रतिवादियों का पक्ष
- पिता (प्रतिवादी नं. 1) का कहना था कि सभी संपत्तियाँ उनकी स्वयं अर्जित संपत्ति (self-acquired property) हैं, इसलिए बेटे या अन्य भाइयों का उस पर कोई हक़ नहीं है।
- उन्होंने कहा कि संपत्तियाँ उनके नाम या पत्नी/बेटों के नाम बे-नामी में खरीदी गई थीं।
- कुछ भाइयों (प्रतिवादी नं. 5, 7 और 8) ने भी पिता का पक्ष लिया और दावा किया कि पिता ने 03.03.2010 की वसीयत (Will) के जरिए संपत्ति उन्हीं के नाम कर दी थी।
बड़ा मोड़ : मृतक के नाम से दायर हलफनामा
अपील की सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय को एक अहम तथ्य पता चला:
- पिता (प्रतिवादी नं. 1) की 30 मार्च 2013 को मृत्यु हो चुकी थी।
- लेकिन उनके नाम से एक लिखित बयान 1 अगस्त 2013 को दाखिल किया गया और ऐसा दिखाया गया जैसे वे जीवित हों।
- इसका मतलब यह हुआ कि ट्रायल कोर्ट ने जो आदेश दिया था, वह एक मृत व्यक्ति की ओर से दायर दस्तावेज़ के आधार पर दिया गया, जो कानूनन अवैध है।
उच्च न्यायालय का निर्णय
- न्यायमूर्ति एस. कुमार ने माना कि निचली अदालत का आदेश शून्य (void) और अवैध (non est) है।
- पिता की मृत्यु के बाद मुकदमे का स्वरूप बदल गया था:
- अब पुत्र (याचिकाकर्ता) संपत्ति पर उत्तराधिकार (inheritance) के आधार पर दावा कर रहा था।
- जबकि अन्य भाई (प्रतिवादी नं. 5, 7, 8) संपत्ति को पिता की वसीयत के आधार पर अपना बता रहे थे।
- इसलिए अदालत ने निर्देश दिया कि विभाजन का मुकदमा और वसीयत से जुड़ा मुकदमा (Title Suit No. 49 of 2018) दोनों को एक साथ सुना जाए।
अंतिम आदेश
- 15.06.2017 का आदेश रद्द किया गया।
- याचिकाकर्ता को नया आवेदन देकर रिसीवर नियुक्त करने का अधिकार दिया गया।
- जिला जज, पटना को निर्देश दिया गया कि विभाजन और वसीयत से जुड़े दोनों मामले एक ही अदालत में साथ-साथ सुनें।
- अपील निपटा दी गई।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
- परिवारिक मुकदमों में: यह फैसला बताता है कि अगर किसी मृत व्यक्ति के नाम से मुकदमा या हलफनामा चलता है तो वह अवैध माना जाएगा।
- उत्तराधिकार और वसीयत: पिता की मृत्यु के बाद संपत्ति पर दावे का स्वरूप बदल जाता है। बेटा उत्तराधिकार से दावा करता है, जबकि अन्य भाई वसीयत से। दोनों दावों को साथ में सुना जाना ज़रूरी है।
- न्यायिक प्रक्रिया: अदालतों को यह सुनिश्चित करना होता है कि सभी पक्षकार सही तरीके से दर्ज हों और मृत व्यक्ति के नाम पर कार्यवाही न हो।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या रिसीवर नियुक्त करने से इंकार का आदेश वैध था?
→ नहीं, क्योंकि यह मृत व्यक्ति के नाम से दायर दस्तावेज़ पर आधारित था। - पिता की मृत्यु के बाद मुकदमे की स्थिति क्या हुई?
→ उत्तराधिकार और वसीयत दोनों के दावे सामने आए, जिन्हें साथ में सुनना आवश्यक है। - अदालत ने क्या आदेश दिया?
→ निचली अदालत का आदेश निरस्त, नया आवेदन करने की अनुमति, और दोनों मामलों को एक साथ सुनने का निर्देश।
मामले का शीर्षक
Satya Narain Singh @ Satyendra Narain Singh बनाम Bangali Singh एवं अन्य
केस नंबर
Miscellaneous Appeal No. 990 of 2017
उद्धरण (Citation)
2021(1)PLJR 455
माननीय न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति एस. कुमार
वकीलों के नाम और पेशी
- श्री जे.एस. अरोड़ा (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री मनोज कुमार एवं श्री गौरव प्रताप — अपीलकर्ता की ओर से
- श्री राधा मोहन पांडे एवं श्री चंद्रशेखर वर्मा — प्रतिवादी (नं. 5, 7, 8) की ओर से
निर्णय का लिंक
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