पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: इंजीनियरिंग स्टाफ की कमी के कारण टेंडर रद्द करने के FCI के फैसले को सही ठहराया गया (2021)

पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: इंजीनियरिंग स्टाफ की कमी के कारण टेंडर रद्द करने के FCI के फैसले को सही ठहराया गया (2021)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने 21 मई 2021 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट किया कि किसी सरकारी ठेके में सबसे कम बोली लगाने वाला व्यक्ति (lowest bidder) स्वचालित रूप से उस कार्य का हकदार नहीं होता। यदि विभाग के पास प्रशासनिक या तकनीकी कारणों से काम करवाने की क्षमता नहीं है, तो उसे टेंडर रद्द करने का पूरा अधिकार है।

यह मामला भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India – FCI) द्वारा बिहार में कुछ स्थानों पर क्षतिग्रस्त बिटुमिनस सड़कों को कंक्रीट सड़कों (C.C. Road) से बदलने के लिए जारी किए गए टेंडर से जुड़ा था।

मामले की सुनवाई माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह ने की।

मामले की पृष्ठभूमि

FCI के बिहार क्षेत्रीय कार्यालय ने मुजफ्फरपुर, चनपटिया और दरभंगा डिपो में सड़क निर्माण कार्य के लिए टेंडर जारी किया था।

याचिकाकर्ता, जो एक निर्माण कंपनी का साझेदार था, ने इस टेंडर में भाग लिया। उसकी कंपनी M/s Rama Shri Sai Construction Pvt. Ltd. बोली प्रक्रिया में सबसे कम बोलीदाता (L-1) के रूप में सामने आई।

लेकिन काम का आदेश (work order) जारी करने से पहले, FCI ने 24 जनवरी 2020 को एक पत्र जारी कर पूरा टेंडर रद्द कर दिया। कारण बताया गया — “इंजीनियरिंग स्टाफ की कमी” जिसके चलते निर्माण कार्य की निगरानी करना संभव नहीं था।

इसके बाद याचिकाकर्ता ने सिविल रिट याचिका संख्या 7587/2020 दायर की, जिसमें FCI के इस निर्णय को चुनौती दी गई और अदालत से अनुरोध किया गया कि उसे यह ठेका सौंपने का निर्देश दिया जाए।

याचिकाकर्ता के तर्क

याचिकाकर्ता की ओर से मुख्य तर्क ये दिए गए:

  1. वह सबसे कम बोलीदाता (L-1) था, इसलिए उसे अनुबंध मिलना चाहिए था।
  2. FCI द्वारा दिया गया कारण — इंजीनियरिंग स्टाफ की कमीकाल्पनिक और मनगढ़ंत है।
  3. जब उसकी बोली स्वीकार की जा चुकी थी, तो काम का आदेश न देना मनमाना और अनुचित है।
  4. यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है।
  5. अदालत से अनुरोध किया गया कि FCI के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक इस फैसले की जांच कराएँ और उसे ठेका दिया जाए।

FCI का पक्ष

FCI की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री प्रभाकर टेकारीवाल ने दलील दी कि:

  • याचिकाकर्ता को अभी कोई औपचारिक स्वीकृति पत्र (Letter of Acceptance) जारी नहीं हुआ था।
  • बोली की वैधता अवधि (bid validity) 30 नवंबर 2019 को समाप्त हो गई थी।
  • 17 दिसंबर 2019 को ही बिहार के क्षेत्रीय प्रबंधक ने रिपोर्ट भेज दी थी कि विभाग के पास योग्य इंजीनियरिंग स्टाफ की भारी कमी है, इसलिए टेंडर रद्द किया जाए।
  • 11 जनवरी 2020 को जो पत्र बोली विस्तार (extension) के लिए जारी हुआ, वह अनजाने में एक निचले अधिकारी द्वारा जारी हुआ, जिसे रद्द प्रक्रिया की जानकारी नहीं थी।
  • टेंडर की धारा 17 के अनुसार, FCI को किसी भी टेंडर — चाहे सबसे कम हो या नहीं — को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया गया है।

अदालत के महत्वपूर्ण अवलोकन

न्यायालय ने सभी दस्तावेजों और तथ्यों की गहराई से समीक्षा की और निम्न निष्कर्ष निकाले:

  1. सबसे कम बोलीदाता होने से कोई कानूनी अधिकार नहीं बनता
    अदालत ने कहा कि जब तक स्वीकृति पत्र (Letter of Acceptance) जारी नहीं होता, तब तक किसी भी ठेकेदार का काम पाने का कानूनी अधिकार (legal right) नहीं बनता।
  2. FCI का कारण वास्तविक और उचित था
    इंजीनियरिंग स्टाफ की कमी जैसी प्रशासनिक कठिनाई एक वैध और यथार्थ कारण है। यदि संस्था के पास निगरानी की क्षमता नहीं है, तो वह टेंडर रद्द करने का अधिकार रखती है।
  3. न्यायिक हस्तक्षेप सीमित है
    अदालत ने कहा कि सरकारी टेंडरों में अदालत केवल यह देख सकती है कि निर्णय निष्पक्ष (fair) और भेदभाव रहित (non-arbitrary) था या नहीं। अदालतें यह नहीं तय कर सकतीं कि किसे अनुबंध दिया जाए या क्यों नहीं दिया जाए।
  4. किसी प्रकार की पक्षपात या दुर्भावना नहीं थी
    याचिकाकर्ता ने यह आरोप नहीं लगाया कि निर्णय दुर्भावना (mala fide) या भ्रष्टाचार से प्रेरित था। इसलिए अदालत ने इसे वैध माना।

अंतिम निर्णय

अदालत ने कहा कि:

  • FCI ने कानूनी और प्रशासनिक रूप से सही निर्णय लिया है।
  • याचिकाकर्ता का यह दावा कि उसे काम दिया जाए, कानूनी रूप से अस्वीकार्य है।
  • कोई दुर्भावना या भेदभाव नहीं दिखता, इसलिए हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं

इस प्रकार, अदालत ने याचिका खारिज कर दी (Dismissed) और किसी पर लागत नहीं लगाई।

निर्णय का महत्व और प्रभाव

यह फैसला सरकारी निविदाओं (Government Tenders) से जुड़े ठेकेदारों और विभागों दोनों के लिए मार्गदर्शक है।

  • यह स्पष्ट करता है कि “Lowest Bidder” को अनुबंध पाने का कोई अधिकार नहीं होता।
  • प्रशासनिक कारण, जैसे कर्मचारियों की कमी या संसाधनों का अभाव, टेंडर रद्द करने के लिए पर्याप्त आधार हो सकते हैं।
  • अदालतें ऐसे मामलों में केवल निष्पक्षता और पारदर्शिता की जांच करती हैं, निर्णय को नहीं बदलतीं।
  • यह निर्णय सरकारी निकायों को यह स्वतंत्रता देता है कि वे अपनी संस्थागत क्षमता (Institutional Capacity) के अनुसार निर्णय लें।
  • ठेकेदारों के लिए यह चेतावनी है कि केवल सबसे कम दर देना पर्याप्त नहीं — जब तक विभाग औपचारिक स्वीकृति नहीं देता, कोई अधिकार नहीं बनता।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या सबसे कम बोलीदाता को अनुबंध देने का अधिकार होता है?
    ❌ नहीं। जब तक औपचारिक स्वीकृति न मिले, कोई अधिकार नहीं बनता।
  • क्या विभाग प्रशासनिक कारणों से टेंडर रद्द कर सकता है?
    ✔ हाँ। यदि कारण वास्तविक और उचित हैं, तो यह वैध है।
  • क्या अदालत टेंडर रद्द करने के निर्णय में हस्तक्षेप कर सकती है?
    ❌ केवल तभी, जब निर्णय मनमाना या भेदभावपूर्ण हो — जो इस मामले में नहीं था।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Tata Cellular v. Union of India, (1994) 6 SCC 651
  • Sterling Computers Ltd. v. M&N Publications, (1993) 1 SCC 445

मामले का शीर्षक

Angesh Kumar v. Food Corporation of India & Ors.

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 7587 of 2020

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 865

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

श्री मनीष कुमार (No. 2) एवं श्री गजेन्द्र कुमार सिंह — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री प्रभाकर टेकारीवाल (वरिष्ठ अधिवक्ता) — प्रतिवादी (FCI) की ओर से

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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