निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में बाढ़ प्रभावित जिलों के लिए पॉलीथीन शीट्स की आपूर्ति से जुड़े टेंडर विवाद में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया है। याचिकाकर्ता एक पार्टनरशिप फर्म है जो बिहार भर में इस तरह की सामग्री की आपूर्ति करती है। उसका आरोप था कि वह सबसे कम दर (L-1) देने वाला बोलीदाता था, फिर भी जिला आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ ने अन्य फर्मों को कार्यादेश देकर अनुचित व्यवहार किया।
यह मामला अप्रैल 2022 में प्रकाशित एक शॉर्ट टर्म टेंडर से जुड़ा है। याचिकाकर्ता ने ₹218.88 प्रति किलो की दर दी थी और उसे L-1 घोषित किया गया था। बाद में, समिति ने बिना उसकी सहमति के दर को घटाकर ₹207 प्रति किलो कर दिया। याचिकाकर्ता ने यह मानते हुए अनुबंध पर हस्ताक्षर कर दिए कि उसे बड़ी मात्रा में ऑर्डर मिलेगा, लेकिन प्रशासन ने कार्यादेश पांच अन्य फर्मों में बाँट दिया।
याचिकाकर्ता का दावा था कि टेंडर की शर्तों, खासकर क्लॉज 6, के अनुसार पूरा अनुबंध L-1 को दिया जाना चाहिए था। साथ ही उसने दावा किया कि उसकी फर्म 50,000 से अधिक शीट्स की आपूर्ति की क्षमता रखती है।
प्रशासन ने अपना पक्ष रखते हुए बताया कि याचिकाकर्ता समय पर सामग्री की आपूर्ति नहीं कर सका, और तत्काल ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अन्य चयनित फर्मों से सामग्री मंगवाई गई। साथ ही, याचिकाकर्ता द्वारा भेजी गई शीट्स की गुणवत्ता CIPET, हाजीपुर द्वारा जांच में खराब पाई गई, जिसके कारण उसे कारण बताओ नोटिस भेजा गया और जवाब असंतोषजनक पाए जाने पर 5 जून 2023 को उसकी फर्म को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया।
कोर्ट ने पाया कि टेंडर की शर्तों में पहले से स्पष्ट था कि यदि कोई आपूर्तिकर्ता समय पर या निर्धारित गुणवत्ता में माल नहीं दे सका तो प्रशासन अन्य फर्मों से आपूर्ति करा सकता है और दोषी फर्म को ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है।
साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि यह अनुबंध वित्तीय वर्ष 2022–2024 तक ही प्रभावी था, जो 31 मार्च 2024 को समाप्त हो गया है। अतः अब यह मामला केवल अकादमिक बन चुका है और किसी प्रकार की राहत नहीं दी जा सकती।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय सरकारी खरीद प्रक्रियाओं में गुणवत्ता और समयबद्ध आपूर्ति को प्राथमिकता देता है। यह स्पष्ट करता है कि सिर्फ सबसे कम बोली लगाने से ही कोई आपूर्तिकर्ता पूरा अनुबंध पाने का अधिकारी नहीं बनता। प्रशासनिक अधिकारियों के पास यह अधिकार है कि आपातकालीन स्थितियों में सेवा प्रदान करने के लिए अनुबंध अन्य योग्य आपूर्तिकर्ताओं को भी दिया जा सकता है।
सरकारी संस्थानों के लिए यह निर्णय एक मार्गदर्शक है कि उन्हें टेंडर की प्रक्रिया पारदर्शिता से पूरी करनी चाहिए, लेकिन साथ ही गुणवत्ता और समय का भी ध्यान रखना आवश्यक है। ठेकेदारों के लिए यह संकेत है कि अनुबंध पाना ही पर्याप्त नहीं, उसे निभाना भी अनिवार्य है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या L-1 बोलीदाता को पूरा ठेका देना अनिवार्य है?
➤ नहीं, आपूर्ति में विफलता की स्थिति में अनुबंध अन्य फर्मों को भी दिया जा सकता है। - क्या दर घटाने का निर्णय एकतरफा और अवैध था?
➤ नहीं, सभी चयनित फर्मों ने ₹207 प्रति किलो की दर पर आपूर्ति के लिए सहमति दी। - क्या ब्लैकलिस्टिंग उचित थी?
➤ हां, याचिकाकर्ता समय पर आपूर्ति नहीं कर सका और गुणवत्ता भी मानक के अनुरूप नहीं थी। - क्या अनुबंध समाप्त हो जाने के बाद याचिका सुनवाई योग्य थी?
➤ नहीं, अब यह मामला अकादमिक बन चुका है। - क्या याचिकाकर्ता मुआवजे का हकदार है?
➤ नहीं, प्रशासन द्वारा कोई ऐसा उल्लंघन नहीं हुआ जो मुआवजे का आधार बन सके।
मामले का शीर्षक
M/s S.N. Sons बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
CWJC No. 7395 of 2023
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन
माननीय न्यायमूर्ति हरीश कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री अभिषेक सिंह, श्री नीरज कुमार
प्रत्युत्तर की ओर से: श्री एस. डी. यादव (AAG-9), श्री ब्रज भूषण मिश्रा
निजी प्रतिवादी संख्या 8 की ओर से: श्री शंभु शरण सिंह, श्री उत्कर्ष भूषण
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