निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला उन विदेशी नागरिकों से जुड़ा है जो 2020 के कोरोना लॉकडाउन के दौरान बिहार के अररिया जिले में फंसे हुए थे। इन विदेशी नागरिकों में बांग्लादेश, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया के नागरिक शामिल थे, जो वैध टूरिस्ट वीजा पर भारत आए थे। उन्होंने दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज का दौरा किया था और फिर अररिया जिले के मस्जिदों (मरकज) में ठहरे थे।
लॉकडाउन के दौरान भारत सरकार ने ऐसे विदेशी नागरिकों की जांच के निर्देश दिए जो तबलीगी जमात से जुड़े थे। इसके तहत इन विदेशी नागरिकों के खिलाफ दो प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गईं — एक नरपतगंज थाना में और दूसरी अररिया थाना में। आरोप दो मुख्य बातों पर आधारित थे:
- उन्होंने स्थानीय पुलिस को अपने ठहरने की जानकारी नहीं दी।
- वे धार्मिक उपदेश देने जैसी गतिविधियों में शामिल थे, जो टूरिस्ट वीजा की शर्तों के खिलाफ है।
विदेशी नागरिकों की ओर से यह दलील दी गई:
- उन्होंने स्वास्थ्य विभाग द्वारा तय सभी प्रक्रिया जैसे स्क्रीनिंग और क्वारंटीन का पालन किया।
- वे सिर्फ मस्जिद में रुके थे, न कि किसी प्रकार की धार्मिक प्रचार गतिविधि में शामिल थे।
- वीजा की शर्तों में धार्मिक स्थलों पर जाना या धार्मिक चर्चाओं में शामिल होना मना नहीं था।
- कोई पर्चा, भाषण, ऑडियो या वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं मिली जिससे साबित हो सके कि वे उपदेश दे रहे थे।
- मस्जिद होटल की परिभाषा में नहीं आती, इसलिए वहां ठहरने की सूचना देने की कानूनी बाध्यता नहीं बनती।
भारत सरकार की ओर से कहा गया कि:
- टूरिस्ट वीजा पर आए लोगों को तबलीगी गतिविधियों की अनुमति नहीं होती।
- मस्जिद या मरकज में ठहरने वाले विदेशी नागरिकों की जानकारी प्रशासन को दी जानी चाहिए थी।
बिहार सरकार ने कहा कि उन्होंने गृह मंत्रालय के निर्देशों के तहत कार्रवाई की और FIR दर्ज की।
पटना हाई कोर्ट ने दोनों मामलों में यह पाया:
- किसी भी विदेशी नागरिक के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं था कि उन्होंने कोई धार्मिक प्रचार किया हो।
- उनके पास से कोई धार्मिक सामग्री, पर्चा, भाषण या इलेक्ट्रॉनिक सबूत नहीं मिला।
- वे लॉकडाउन की वजह से फंसे हुए थे और सरकार के निर्देशानुसार अंदर ही रुके हुए थे।
- उन्होंने स्वास्थ्य दिशा-निर्देशों का पालन किया था।
- FIR और आरोप अस्पष्ट थे और इनसे कोई कानूनी अपराध नहीं बनता।
इसलिए कोर्ट ने दोनों FIRs, चार्जशीट और संज्ञान आदेशों को रद्द कर दिया। साथ ही कहा कि ऐसे मामलों में मुकदमा चलाना न्याय की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि:
- यह दर्शाता है कि असाधारण हालात में मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए, खासकर महामारी जैसी आपात स्थिति में।
- कोई भी कानूनी कार्रवाई सबूतों पर आधारित होनी चाहिए, सिर्फ अनुमानों या सामान्य नीतियों पर नहीं।
- भारत में आए विदेशी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा भी न्यायालय करेगा, यदि वे गलत तरीके से निशाना बनाए गए हों।
- सरकार और पुलिस को भी निर्देश मिलता है कि कानूनी प्रावधानों का यथार्थ और उचित तरीके से पालन करें, न कि सिर्फ तकनीकी आधार पर मुकदमा करें।
यह फैसला धार्मिक स्वतंत्रता, विदेशी नागरिकों के अधिकारों, और महामारी के दौरान प्रशासनिक संवेदनशीलता का एक संतुलन स्थापित करता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या लॉकडाउन में मस्जिद में ठहरना वीजा की शर्तों का उल्लंघन है?
❌ नहीं। कोर्ट ने कहा कि वे केवल फंसे हुए थे और यह वीजा शर्त का उल्लंघन नहीं है। - क्या विदेशी नागरिकों ने धर्म प्रचार किया?
❌ नहीं। कोई सबूत नहीं मिला। - क्या स्थानीय पुलिस को जानकारी न देना अपराध है?
❌ नहीं। 180 दिन से कम ठहराव वाले पर्यटकों को पंजीकरण की जरूरत नहीं होती। मस्जिद ‘होटल’ की परिभाषा में नहीं आती। - क्या Foreigners Act की धारा 14 और 14-C लागू होती है?
❌ नहीं। कोई विशिष्ट कार्य नहीं था जो वीजा की शर्तों के उल्लंघन को दर्शाए। - क्या मुकदमा जारी रखना उचित होगा?
✅ नहीं। कोर्ट ने कहा यह न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- State of Haryana vs. Bhajan Lal, 1992 Supp (1) SCC 335
- Anand Kumar Mohatta vs. State (Govt. of NCT Delhi), AIR 2019 SC 210
- Konan Kodio Ganstone & Ors. vs. State of Maharashtra (Bom HC)
- Hla Shwe & Ors. vs. State of Maharashtra (Nagpur Bench)
- Kalyez Chingiz vs. State of Karnataka
- Farhan Hussain vs. State of Karnataka
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- उपरोक्त सभी को कोर्ट ने स्वीकार किया और उनका विश्लेषण किया।
मामले का शीर्षक
Md. Enamul Hasan & Ors. बनाम भारत सरकार एवं अन्य
साथ में
Md. Rizwan Alam & Ors. बनाम भारत सरकार एवं अन्य
केस नंबर
Criminal Writ Jurisdiction Case No. 367 of 2020
साथ में
Criminal Writ Jurisdiction Case No. 369 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(1)PLJR 178
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री पी. के. शाही (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री आलोक रंजन एवं श्री माजिद महबूब खान — याचिकाकर्ताओं की ओर से
- डॉ. के. एन. सिंह, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल — भारत सरकार की ओर से
- डॉ. अंजनी कुमार (AAG 4), श्री आलोक कुमार राहि — बिहार सरकार की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTYjMzY3IzIwMjAjMSNO-enwFHBCpRwQ=
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।







