पटना हाई कोर्ट का अहम फैसला: सबूतों की कमी के चलते गैंगरेप के आरोपियों को किया बरी

पत्ना हाई कोर्ट ने झूठे बलात्कार मामले में दो आरोपियों को किया बरी, मेडिकल सबूतों की कमी पड़ी भारी

निर्णय की सरल व्याख्या

पत्ना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसले में दो व्यक्तियों को बरी कर दिया जिन्हें निचली अदालत ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराया था। उच्च न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध करने में पूरी तरह असफल रहा और मेडिकल व फॉरेंसिक साक्ष्य भी बलात्कार की पुष्टि नहीं करते हैं।

मामला मई 2021 का है, जब वैशाली जिले की एक नाबालिग लड़की द्वारा आठ लोगों के खिलाफ सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। पीड़िता का दावा था कि जब वह अपनी मां से कुछ समय के लिए पीछे रह गई, तो आरोपी उसे एक सुनसान पोल्ट्री फार्म में खींच ले गए और उसके साथ दुष्कर्म किया गया।

लेकिन मेडिकल रिपोर्ट में न तो उसके शरीर पर कोई चोट के निशान मिले, न ही बलात्कार के कोई प्रमाण। पीड़िता का हाइमन (hymen) सही पाया गया और कोई वीर्य के अंश भी नहीं मिले। डॉक्टर ने शुरुआत में कुछ बाहरी चोटें होने की बात कही, लेकिन बाद में कहा कि कोई ताजा यौन हिंसा के संकेत नहीं मिले।

मामले की जांच करने वाली पुलिस अधिकारी ने भी यह माना कि पीड़िता ने न्यायिक बयान (धारा 164 CrPC के तहत) में बलात्कार का कोई जिक्र नहीं किया। साथ ही यह भी सामने आया कि दोनों परिवारों के बीच ज़मीन को लेकर लंबे समय से विवाद चला आ रहा है और पहले से कई दीवानी और फौजदारी मुकदमे दर्ज हैं। यहां तक कि उसी दिन पीड़िता और उसके परिवार के खिलाफ भी एक अलग प्राथमिकी दर्ज हुई थी।

कोर्ट ने पाया कि यह पूरा मामला पुरानी दुश्मनी और ज़मीनी विवाद से प्रेरित होकर झूठा गढ़ा गया था। न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में महिला की गवाही महत्वपूर्ण होती है, लेकिन जब वह खुद विरोधाभासी हो और मेडिकल रिपोर्ट भी समर्थन न करे, तब कोर्ट को साक्ष्यों के आधार पर निष्पक्ष फैसला देना चाहिए।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला एक बड़ा संदेश देता है कि कानून का दुरुपयोग करके व्यक्तिगत दुश्मनी को निपटाने की कोशिश न की जाए। बलात्कार जैसे गंभीर आरोप तभी लगाए जाने चाहिए जब उनके पीछे ठोस और भरोसेमंद सबूत हों। पुलिस विभाग और आम नागरिकों दोनों के लिए यह एक चेतावनी है कि कानूनी प्रक्रिया का सम्मान करें और झूठे मामले न बनाएं।

साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि यौन अपराधों के मामलों में पीड़िता की गवाही को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, लेकिन उसे आंख मूंदकर स्वीकार नहीं किया जा सकता, खासकर जब अन्य साक्ष्य उसका समर्थन न करते हों।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या IPC और POCSO की धाराओं के तहत दोषसिद्धि उचित थी?
    ❌ नहीं, कोर्ट ने कहा कि सबूतों की कमी के चलते दोषसिद्धि टिक नहीं सकती।
  • क्या सामूहिक बलात्कार के आरोप सिद्ध हुए?
    ❌ नहीं, मेडिकल और न्यायिक बयानों में विरोधाभास के कारण आरोप झूठे साबित हुए।
  • क्या पीड़िता द्वारा सजा बढ़ाने की मांग सही थी?
    ❌ नहीं, कोर्ट ने पीड़िता की याचिका खारिज कर दी क्योंकि आरोप ही गलत थे।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • State of Maharashtra v. Chandraprakash Kewal Chand Jain, (1990) 1 SCC 550

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Rajesh Yadav and Anr. v. State of U.P., (2022) 12 SCC 200
  • Vedivelu Thevar v. State of Madras, AIR 1957 SC 614
  • Masalti and Ors. v. State of U.P., AIR 1965 SC 202

मामले का शीर्षक
Criminal Appeal (DB) No. 207 of 2024
with
Criminal Appeal (SJ) No. 3159 of 2023

केस नंबर
Criminal Appeal (DB) No. 207 of 2024

उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 103

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति अशुतोष कुमार
माननीय न्यायमूर्ति राजेश कुमार वर्मा

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री राजेन्द्र नारायण, वरिष्ठ अधिवक्ता – पीड़िता की ओर से
  • श्री एस. के. लाल, श्री रविश मिश्रा, श्रीमती कीर्तिका साक्षी – अपीलार्थियों की ओर से
  • श्री मुकेश्वर दयाल, APP – राज्य की ओर से
  • श्रीमती वंदना कुमारी – सूचनाकर्ता की ओर से

निर्णय का लिंक
NSMyMDcjMjAyNCMxI04=-OuteH6FWR5E=

“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News