पटना हाई कोर्ट ने गांजा बरामदगी मामले में दोष सिद्ध न होने पर आरोपी को किया बरी

पटना हाई कोर्ट ने गांजा बरामदगी मामले में दोष सिद्ध न होने पर आरोपी को किया बरी

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में एक व्यक्ति को गांजा रखने के आरोप से बरी कर दिया, क्योंकि पुलिस ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेस (NDPS) एक्ट के तहत आवश्यक कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया था। यह मामला बिहार के बेगूसराय ज़िले के भगवनपुर थाना क्षेत्र का है, जहां 35 किलो गांजा की बरामदगी को लेकर एक व्यक्ति पर मामला दर्ज किया गया था।

निचली अदालत (NDPS स्पेशल कोर्ट, बेगूसराय) ने आरोपी को NDPS एक्ट की धारा 20(b)(ii)(C) के तहत दोषी ठहराते हुए 10 साल की सश्रम कारावास तथा ₹1,00,000 का जुर्माना सुनाया था। जुर्माना अदा न करने की स्थिति में 2 साल का अतिरिक्त कारावास भी तय किया गया था।

यह मामला तब शुरू हुआ जब भगवनपुर थाना प्रभारी को एक गुप्त सूचना मिली कि आरोपी व्यक्ति गांजे के कारोबार में संलिप्त है। इसके आधार पर गांव मोख्तियारपुर में स्थित आरोपी के घर पर छापेमारी की गई। घर में कोई पुरुष सदस्य मौजूद नहीं था। पुलिस ने दावा किया कि घर के बाहर बने बरामदे में भूसे के ढेर से 35 किलो गांजा तीन प्लास्टिक बैगों में बरामद किया गया।

पुलिस ने मौके पर ही जब्ती सूची बनाई और गांजा को अपने साथ थाने ले गई। लेकिन कोर्ट ने कई अहम कमियों के कारण पुलिस की पूरी कार्यवाही पर सवाल खड़ा किया:

  1. आरोपी की पहचान नहीं हुई: ट्रायल के दौरान किसी भी गवाह ने आरोपी की कोर्ट में पहचान नहीं की, जो कि आपराधिक मामलों में एक महत्वपूर्ण सबूत होता है।
  2. घर की पहचान संदिग्ध रही: जिन गवाहों ने बरामदगी का विवरण दिया, वे यह स्पष्ट नहीं कर सके कि वह घर वास्तव में आरोपी का था। कुछ ने कहा कि उन्हें गांव वालों ने घर दिखाया, पर किसी का नाम या पहचान सामने नहीं लाई गई।
  3. NDPS एक्ट की प्रक्रियाओं का उल्लंघन: बरामद गांजा मौके पर सील नहीं किया गया, ना ही मौके पर कोई नमूना (सैंपल) तैयार किया गया। कोर्ट में पेश किए गए सबूतों से यह साफ नहीं हो पाया कि जो गांजा एफएसएल (फॉरेंसिक साइंस लैब) को भेजा गया वह वही है जो मौके से जब्त हुआ था।
  4. धारा 42(2) का उल्लंघन: छापेमारी बिना वारंट के हुई थी, फिर भी पुलिस ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी कोई सूचना नहीं दी, जो कि कानून के अनुसार आवश्यक था।

इन सभी कारणों से कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी की दोषसिद्धि के लिए आवश्यक सबूत पेश करने में विफल रहा। इसलिए दोषसिद्धि को रद्द करते हुए आरोपी को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया गया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए एक सख्त चेतावनी है कि NDPS जैसे कठोर कानून के तहत कार्रवाई करते समय सभी कानूनी प्रक्रियाओं का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए। यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि यदि पुलिस जांच और सबूतों की प्रक्रिया में लापरवाही बरतेगी, तो गंभीर आरोपों में भी अभियोजन विफल हो सकता है।

सामान्य जनता के लिए यह निर्णय यह विश्वास दिलाता है कि न्यायालय केवल उन्हीं मामलों में सजा देगा जहां सबूत कानून के अनुरूप तरीके से एकत्र किए गए हों। वहीं, सरकार और पुलिस प्रशासन को अपने अधिकारियों को कानून के अनुरूप प्रशिक्षण देने और उनकी जवाबदेही तय करने की आवश्यकता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या अभियोजन पक्ष आरोपी की पहचान कोर्ट में कर सका?
    • ❌ नहीं, किसी भी गवाह ने आरोपी की पहचान कोर्ट में नहीं की।
  • क्या बरामद घर वास्तव में आरोपी का था?
    • ❌ नहीं, गवाहों ने घर की सही पहचान को लेकर विरोधाभासी बयान दिए।
  • क्या NDPS एक्ट की प्रक्रियाएं जैसे सीलिंग और सैंपलिंग का पालन किया गया?
    • ❌ नहीं, मौके पर ना सीलिंग की गई, ना ही सैंपल लिया गया। बाद में भेजे गए सैंपल की कानूनी वैधता संदिग्ध रही।
  • क्या धारा 42(2) का पालन किया गया?
    • ❌ नहीं, पुलिस ने वरिष्ठ अधिकारियों को बिना वारंट वाली छापेमारी की सूचना नहीं दी।
  • अंतिम निर्णय:
    • सभी कानूनी खामियों को देखते हुए, दोषसिद्धि रद्द की गई और आरोपी को तुरंत रिहा करने का आदेश हुआ।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Union of India v. Mohanlal & Anr., (2016) 3 SCC 379

मामले का शीर्षक

राज कुमार @ राज कुमार सिंह @ काकरी झा @ काकरी सिंह बनाम बिहार राज्य

केस नंबर

Criminal Appeal (SJ) No.495 of 2018
Bhagwanpur P.S. Case No.155 of 2016

उद्धरण (Citation)

2021(1)PLJR 71

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति आदित्य कुमार त्रिवेदी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • अपीलकर्ता की ओर से: श्री अजय कुमार ठाकुर, श्री निलेश कुमार, सुश्री स्वाति सिन्हा (वकील)
  • प्रतिवादी राज्य की ओर से: श्री सुजीत कुमार सिंह, APP

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MjQjNDk1IzIwMTgjMSNO-0ET8jij9–ak1–0E=

यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।

Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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