पटना उच्च न्यायालय द्वारा स्कूल क्लर्कों के लिए ग्रेड पे समानता पर आदेश (2024)

पटना उच्च न्यायालय द्वारा स्कूल क्लर्कों के लिए ग्रेड पे समानता पर आदेश (2024)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने बिहार के विभिन्न मान्यता प्राप्त स्कूलों में कार्यरत लिपिक (क्लर्क) कर्मचारियों की कई रिट याचिकाओं का एक साथ निपटारा किया। इन याचिकाकर्ताओं की मांग थी कि उन्हें ₹3050–₹4590 के पुराने वेतनमान के बजाय ₹4000–₹6000 के संशोधित वेतनमान (ग्रेड पे सहित) में वेतन दिया जाए, जो उनकी नियुक्ति की तिथि से प्रभावी हो। साथ ही, उन्होंने विभागीय पत्र को रद्द करने की मांग की, जिसमें उनके इस दावे को अस्वीकार किया गया था।

न्यायालय ने कहा कि यह मामला पहले से ही एक डिवीजन बेंच के फैसले (LPA No. 167/2016) से जुड़ा हुआ है, जिसमें ऐसे ही कर्मचारियों को उच्च वेतनमान का लाभ दिया गया था। हालाँकि, राज्य सरकार ने उस फैसले के खिलाफ सिविल रिव्यू दायर कर रखा है, जो अभी लार्जर बेंच के विचाराधीन है। इसलिए, न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को भी वही लाभ मिलेगा, लेकिन यह लाभ सिविल रिव्यू के अंतिम परिणाम पर निर्भर करेगा।

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि बाद में राज्य सरकार रिव्यू केस में सफल रहती है, तो याचिकाकर्ताओं को लिखित प्रतिज्ञा (undertaking) देनी होगी कि वे अतिरिक्त प्राप्त राशि को वापस करेंगे।

याचिकाकर्ताओं की ओर से यह तर्क दिया गया कि—

  1. पटना उच्च न्यायालय की कई पीठों ने पहले ही समान परिस्थितियों में कार्यरत कर्मचारियों को यही लाभ दिया है।
  2. राज्य सरकार खुद भी इस फैसले का पालन कर रही है — हालांकि यह पालन शर्तों सहित है, क्योंकि मामला अब भी लार्जर बेंच के समक्ष लंबित है।
  3. इस दावे के समर्थन में उन्होंने दो सरकारी पत्रों का भी उल्लेख किया: सामान्य प्रशासन विभाग का पत्र संख्या 1620 (दिनांक 23.01.2023) और वित्त विभाग का पत्र संख्या 3628 (दिनांक 21.04.2023)।

राज्य की ओर से यह तर्क दिया गया कि इस विषय पर दो डिवीजन बेंच के निर्णय एक-दूसरे से भिन्न हैं —

  • LPA No. 167/2016 (कर्मचारियों के पक्ष में)
  • LPA No. 100/2012 (राज्य सरकार के पक्ष में)

इसी कारण, एकल पीठ ने यह मुद्दा लार्जर बेंच को भेज दिया है, जहाँ अब सिविल रिव्यू (No. 236/2019) और दोनों LPA पर विचार चल रहा है।

फिर भी, अदालत ने यह पाया कि:

  • कई बार इसी तरह के मामलों में राहत दी जा चुकी है,
  • राज्य सरकार खुद भी सशर्त रूप से फैसले का पालन कर रही है,
  • यहाँ तक कि कुछ जिलों में जिलाधिकारी ने भी समान परिस्थितियों में कार्यरत कर्मचारियों को लाभ देने का आदेश जारी किया है (उदाहरण: कैमूर-भभुआ, आदेश दिनांक 08.11.2023)।

अदालत ने बिहार राज्य वाद नीति, 2011 (Bihar State Litigation Policy, 2011) के खंड 4(C)(1) का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि यदि किसी मुद्दे पर अदालत ने पहले ही निर्णय दे दिया है, तो सरकार को “समान मामलों” में वही राहत स्वयं देनी चाहिए और अनावश्यक मुकदमेबाज़ी से बचना चाहिए।

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने याचिकाओं का निपटारा इस प्रकार किया —

  • याचिकाकर्ताओं को वही लाभ दिया जाए जो LPA No. 167/2016 में दिया गया था।
  • यह लाभ सिविल रिव्यू No. 236/2019 के निर्णय पर निर्भर रहेगा।
  • याचिकाकर्ताओं को यह लिखित रूप से देना होगा कि यदि राज्य सरकार अंततः सफल होती है, तो वे अतिरिक्त भुगतान वापस करेंगे।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह आदेश न्यायालय की एक संतुलित और व्यावहारिक पहल है, जो यह सुनिश्चित करता है कि जब तक लार्जर बेंच का अंतिम फैसला नहीं आता, तब तक कर्मचारियों को अस्थायी राहत दी जा सके और सरकार के हित भी सुरक्षित रहें।

कर्मचारियों के लिए:

  • यह फैसला इस बात का संकेत है कि यदि किसी विषय पर पहले से उच्च न्यायालय का निर्णय मौजूद है और राज्य विभाग उसका पालन कर रहा है, तो समान परिस्थितियों वाले मामलों में अदालत अस्थायी राहत दे सकती है।
  • इससे कर्मचारियों को लंबे इंतजार और आर्थिक कठिनाइयों से राहत मिलती है।

सरकार के लिए:

  • न्यायालय ने वाद नीति के प्रावधानों का हवाला देते हुए संकेत दिया कि सरकार को समान मामलों में स्वयं निर्णय लेकर अनावश्यक मुकदमों से बचना चाहिए।
  • इससे प्रशासनिक कार्यकुशलता बढ़ती है और अदालतों पर मुकदमों का बोझ घटता है।
  • साथ ही, यह आदेश वित्तीय अनुशासन भी बनाए रखता है, क्योंकि अगर भविष्य में राज्य सरकार रिव्यू केस में सफल होती है, तो राशि वापस ली जा सकेगी।

आम जनता के लिए:

  • यह फैसला यह दिखाता है कि न्यायालय समानता और एकरूपता के सिद्धांत पर काम कर रहा है।
  • इससे राज्यभर के समान कर्मचारियों को यह स्पष्ट संदेश मिलता है कि समान परिस्थितियों में समान राहत मिलेगी।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • मुद्दा 1: क्या मान्यता प्राप्त स्कूलों के लिपिक कर्मचारियों को ₹3050–₹4590 के बजाय ₹4000–₹6000 का संशोधित वेतनमान मिलना चाहिए?
    निर्णय: हाँ, LPA No. 167/2016 के अनुसार उन्हें यह लाभ मिलेगा, लेकिन यह सिविल रिव्यू No. 236/2019 के निर्णय पर निर्भर रहेगा।
  • मुद्दा 2: जब दो डिवीजन बेंच के निर्णय एक-दूसरे के विपरीत हों, तब एकल पीठ क्या करे?
    निर्णय: अदालत ने व्यावहारिक रुख अपनाते हुए कहा कि जब तक लार्जर बेंच का अंतिम फैसला नहीं आता, तब तक वह वही आदेश मानेगी जिसे राज्य पहले से सशर्त रूप से लागू कर रहा है।
  • मुद्दा 3: क्या अदालत को इन याचिकाओं को लार्जर बेंच के फैसले तक लंबित रखना चाहिए?
    निर्णय: नहीं। अदालत ने राहत देकर मामले निपटा दिए, ताकि समान परिस्थितियों वाले कर्मचारियों को अस्थायी न्याय मिल सके।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • LPA No. 167/2016 — याचिकाकर्ताओं द्वारा उद्धृत, जिसमें समान कर्मचारियों को लाभ मिला था।
  • LPA No. 100/2012 — राज्य सरकार द्वारा उद्धृत, जो विपरीत दृष्टिकोण रखता है।
  • C.W.J.C. No. 17151/2018 (दिनांक 03.10.2018) — समान मामले में दिया गया आदेश।
  • C.W.J.C. No. 188/2021 (दिनांक 09.07.2021) — समान परिस्थितियों वाले कर्मचारियों को राहत दी गई थी।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • LPA No. 167/2016 — यही वह आदेश है, जिसके अनुसार न्यायालय ने वर्तमान मामलों का निपटारा किया।
  • Bihar State Litigation Policy, 2011 की धारा 4(C)(1) — समान मामलों में स्वचालित प्रशासनिक समाधान की सिफारिश।

मामले का शीर्षक

कौशल किशोर सिंह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (पटना उच्च न्यायालय)

केस नंबर

C.W.J.C. No. 3819 of 2024

उद्धरण (Citation)

2025 (1) PLJR 588

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति अंजनी कुमार शरण (मौखिक निर्णय दिनांक 15.05.2024)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ताओं की ओर से: श्री अमरेश कुमार सिंह
  • राज्य की ओर से: श्री मनोज कुमार अम्बष्ठा, एससी-26; सहायक अधिवक्ता श्री दिवित विनोद

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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