निर्णय की सरल व्याख्या
इस मामले में एक कारोबारी (याचिकाकर्ता) के खिलाफ जीएसटी आकलन (GST Assessment) किया गया था। 2017–18 और 2018–19 के लिए उनके रिटर्न्स में अंतर पाया गया था। शुरुआती वर्षों में, GSTR-1 (बिक्री का विवरण) और GSTR-3B (मासिक टैक्स भुगतान रिटर्न) में कुछ गलतियाँ हुईं। व्यापारी ने बताया कि यह गलती डबल एंट्री (एक ही इनवॉइस दो बार दर्ज होने) के कारण हुई थी। उस समय टैक्स अधिकारी ने जवाब स्वीकार कर मामला बंद कर दिया था। बाद में भी जब नोटिस आया, तो ऑडिट अथॉरिटी ने व्यापारी का जवाब मान लिया। लेकिन अंततः एक नया नोटिस जारी कर आकलन आदेश पास किया गया।
इस आकलन आदेश की तारीख 23.06.2023 थी। कानून के मुताबिक, ऐसे आदेश के खिलाफ अपील 3 महीने के अंदर करनी होती है, और अतिरिक्त 1 महीने की देरी माफ की जा सकती है। यानी अधिकतम 4 महीने का समय मिलता है। व्यापारी ने इस अवधि में अपील नहीं की।
बाद में, केंद्र सरकार ने 02.11.2023 को एक विशेष नोटिफिकेशन (नोटिफिकेशन नंबर 53/2023- सेंट्रल टैक्स) जारी किया। इसमें कहा गया कि 31.01.2024 तक अपील दाखिल की जा सकती है, बशर्ते कि आदेश 31.03.2023 तक पारित हुआ हो और अपील करने वाला टैक्स के कुछ हिस्से (स्वीकार किया गया टैक्स + विवादित राशि का 12.5%) जमा कर दे। व्यापारी ने यह शर्त पूरी की और 20.01.2024 को अपील दाखिल कर दी।
लेकिन अपीलीय प्राधिकरण ने अपील यह कहकर खारिज कर दी कि आकलन आदेश 23.06.2023 का है, यानी 31.03.2023 के बाद का है, इसलिए नोटिफिकेशन का लाभ नहीं मिल सकता।
पटना उच्च न्यायालय में यह प्रश्न उठा कि क्या केवल तारीख के आधार पर अपील का लाभ रोका जा सकता है, जबकि नोटिफिकेशन खुद बाद में (02.11.2023) जारी हुआ था?
न्यायालय ने अपने पहले के फैसले (Annexure-P/23) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि नोटिफिकेशन का उद्देश्य अपील करने का एक और अवसर देना था। ऐसे में केवल 31.03.2023 की तारीख पर अटकना उचित नहीं है। कोर्ट ने कहा कि कम से कम नोटिफिकेशन जारी होने से 3 महीने पहले तक पारित आदेशों को भी इस सुविधा का लाभ मिलना चाहिए।
इसी आधार पर कोर्ट ने अपीलीय प्राधिकरण के आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि व्यापारी की अपील को बहाल कर मेरिट्स (मामले के असली मुद्दे) पर सुना जाए। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि व्यापारी ने जरूरी टैक्स और 12.5% विवादित राशि जमा कर दी है। इसलिए अपील सुनवाई से बाहर नहीं की जानी चाहिए थी।
कोर्ट ने आदेश दिया कि अपीलीय प्राधिकरण 06.01.2025 को व्यापारी की अपील सुने और मामले का फैसला मेरिट्स पर करे।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- आम करदाताओं के लिए: यह फैसला दिखाता है कि अगर सरकार अपील का विशेष मौका देती है, तो उसे कठोरता से सीमित नहीं करना चाहिए। अगर आदेश नोटिफिकेशन की तारीख के करीब है और शर्तें पूरी की गई हैं, तो अपील का अधिकार दिया जाना चाहिए।
- सरकार और टैक्स विभाग के लिए: अपीलीय प्राधिकरण को ऐसे नोटिफिकेशन का अर्थ व्यापक और उद्देश्यपूर्ण तरीके से निकालना चाहिए। अगर केवल तकनीकी कारणों से अपील खारिज की जाएगी तो अदालत में चुनौती देकर सरकार को बार-बार हार झेलनी पड़ेगी।
- वकीलों और विशेषज्ञों के लिए: इस फैसले से यह मार्गदर्शन मिलता है कि नोटिफिकेशन 53/2023 जैसे मामलों में, जहाँ अपील की मियाद निकल चुकी हो, अगर टैक्सदाता ने शर्तें पूरी की हैं तो अपील को मेरिट्स पर सुना जाना ही चाहिए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- मुद्दा: क्या 31.03.2023 के बाद पारित आकलन आदेश के खिलाफ भी नोटिफिकेशन 53/2023 का लाभ मिल सकता है?
– निर्णय: हाँ। कोर्ट ने कहा कि 02.11.2023 को जारी नोटिफिकेशन का उद्देश्य राहत देना था, इसलिए कठोर कट-ऑफ का पालन करना तर्कसंगत नहीं है। कम से कम नोटिफिकेशन से 3 महीने पहले तक पारित आदेशों को शामिल किया जाना चाहिए। - मुद्दा: क्या कोर्ट को टैक्स विवाद का फैसला करना चाहिए या मामला वापस भेजना चाहिए?
– निर्णय: मामला अपीलीय प्राधिकरण को वापस भेजा गया, ताकि वह मेरिट्स पर सुनवाई कर सके।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- पटना उच्च न्यायालय का पहले का डिवीजन बेंच फैसला (Annexure-P/23), जिसमें कहा गया था कि 31.03.2023 की कठोर सीमा उचित नहीं है।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम भारत संघ एवं अन्य
केस नंबर
CWJC No. 16407 of 2024 (CWJC No. 16427 of 2024 के साथ सुना गया)
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश
माननीय श्री न्यायमूर्ति पार्थ सारथी (मौखिक निर्णय, 09.12.2024)
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री विनय कुमार श्राफ, अधिवक्ता; श्री अमित कुमार सिंह, अधिवक्ता; श्री पुनीत सिद्धार्थ, अधिवक्ता।
- प्रतिवादी (केंद्र/राज्य टैक्स विभाग) की ओर से: डॉ. के.एन. सिंह, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल; श्री अंशुमन सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता (CGST & CX); श्री आलोक कुमार, अधिवक्ता; श्री विकास कुमार, SC-11; श्री शशांक शेखर, अधिवक्ता।
निर्णय का लिंक
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