GST पंजीकरण रद्द होने के बाद देरी से की गई अपील पर पटना हाई कोर्ट का सख्त रुख

GST पंजीकरण रद्द होने के बाद देरी से की गई अपील पर पटना हाई कोर्ट का सख्त रुख

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक हालिया फैसले में एक व्यापारी की याचिका खारिज कर दी, जिसने अपने GST पंजीकरण रद्द होने के खिलाफ बहुत देरी से अपील की थी। यह मामला उन व्यापारियों के लिए महत्वपूर्ण है जो कर व्यवस्था के तहत अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से नहीं लेते।

इस केस में याचिकाकर्ता का GST पंजीकरण 10 जुलाई 2023 को रद्द कर दिया गया था। रद्दीकरण से पहले 2 मार्च 2023 को एक शो-कॉज़ नोटिस जारी किया गया था। याचिकाकर्ता ने इस आदेश के खिलाफ अपील 23 सितंबर 2024 को दायर की — यानी लगभग एक साल बाद।

BGST अधिनियम की धारा 107(4) के अनुसार, किसी भी रद्दीकरण आदेश के खिलाफ अपील अधिकतम तीन महीने के अंदर की जानी चाहिए। यदि किसी कारणवश इसमें देरी होती है, तो एक अतिरिक्त महीना दिया जाता है — बशर्ते अपीलकर्ता देरी के लिए ठोस कारण बताए।

इस हिसाब से याचिकाकर्ता को 10 अक्टूबर 2023 तक अपील करनी थी, और अधिकतम 10 नवंबर 2023 तक देरी क्षमा की जा सकती थी। लेकिन अपील 23 सितंबर 2024 को की गई — जो कि वैधानिक सीमा से 10 महीने से भी ज्यादा देर से थी।

न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि कानून समय पर कार्रवाई करने वालों का पक्ष लेता है, न कि उन लोगों का जो अपने अधिकारों को लेकर लापरवाह रहते हैं। अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता का पंजीकरण रद्द हो चुका था, इसलिए विभाग उसकी गतिविधियों की निगरानी नहीं कर सका। ऐसे में यह भी नहीं कहा जा सकता कि उसने उस अवधि में कोई अवैध लेन-देन नहीं किया।

एक और अहम बिंदु यह था कि याचिकाकर्ता ने यह स्वीकार किया कि वह समय पर रिटर्न फाइल नहीं कर पाया था — जो कि रद्दीकरण का मूल कारण था। न तो उसने शो-कॉज़ नोटिस में लगाए गए आरोपों को चुनौती दी, और न ही याचिका में कोई सफाई दी।

कोर्ट ने इस आधार पर याचिका खारिज कर दी कि इतनी लंबी देरी को माफ नहीं किया जा सकता, और कोई विशेष परिस्थितियाँ भी नहीं बताई गईं।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला खास तौर पर बिहार के उन छोटे और मझोले व्यापारियों के लिए चेतावनी है जो GST कानूनों का पालन नहीं करते या फिर अपनी कानूनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से नहीं लेते।

यह निर्णय बताता है कि GST पंजीकरण के रद्द होने के बाद यदि अपील करनी है तो वह तय समय सीमा के अंदर होनी चाहिए। देर से अपील करने पर कोर्ट कोई राहत नहीं देगा, भले ही व्यापार पर असर क्यों न पड़ा हो।

सरकार और कर विभाग के नजरिए से, यह फैसला उनके अधिकार को मजबूत करता है कि वे उन व्यापारियों पर सख्ती कर सकते हैं जो नियमों का उल्लंघन करते हैं या रिटर्न दाखिल नहीं करते।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या GST पंजीकरण रद्द होने के खिलाफ तय समय के बाद अपील स्वीकार की जा सकती है?
    • निर्णय: नहीं। वैधानिक सीमा के बाहर की गई अपील को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
  • क्या याचिकाकर्ता ने देरी का कोई ठोस कारण बताया या रद्दीकरण के कारणों को चुनौती दी?
    • निर्णय: नहीं। उसने न तो देरी का कारण बताया, न ही आरोपों का खंडन किया।
  • क्या कोर्ट अपने विवेकाधिकार से देरी को माफ कर सकता है?
    • निर्णय: नहीं। कोर्ट ने कहा कि कानून आलसी लोगों का पक्ष नहीं लेता।

मामले का शीर्षक
M/s Vijay Pandey बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 19531 of 2024

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन
माननीय न्यायमूर्ति श्री पार्थ सारथी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री नितेश कुमार, अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री सुभाष कुमार, अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री विवेक प्रसाद, सरकारी अधिवक्ता-7 — राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक
2128a18d-2bfb-44fd-bc2b-6409d81353f3.pdf

“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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