निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक व्यवसायिक संस्था द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उन्होंने गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) के तहत जारी टैक्स डिमांड, ब्याज और जुर्माने के आदेशों को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि संबंधित अधिकारियों द्वारा जारी आदेश GST पोर्टल पर अपलोड नहीं किए गए, जिससे वह वैधानिक अपील नहीं कर सका।
मामला वित्तीय वर्ष 2017-18 से 2021-22 तक के कर आकलन से संबंधित था। विभाग ने याचिकाकर्ता पर निम्नलिखित देनदारियाँ लगाई थीं:
- ₹19,20,423 की कुल GST देनदारी
- CGST और SGST, प्रत्येक ₹5,93,695
- ₹7,45,730 का ब्याज (धारा 50)
- ₹20,000 की लेट फीस (धारा 47)
- ₹19 लाख से अधिक का जुर्माना (धारा 74, 122 और 125 के तहत)
याचिकाकर्ता ने सीधे उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर इन आदेशों को रद्द करने की मांग की। लेकिन न्यायालय ने कहा कि चूंकि GST कानून में एक वैधानिक अपील की व्यवस्था है, इसलिए याचिकाकर्ता को पहले वह रास्ता अपनाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले State of Tamil Nadu Cements Corporation Ltd. v. Micro and Small Enterprises Facilitation Council (2025) 4 SCC 1 का हवाला देते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हो, तब रिट याचिका नहीं सुनी जा सकती।
हालांकि, कोर्ट ने यह भी माना कि यदि विभाग ने आदेश अपलोड नहीं किया है, तो अपील की समय सीमा शुरू नहीं हो सकती। इसलिए विभाग को एक सप्ताह के भीतर आदेश अपलोड करने और याचिकाकर्ता को सूचित करने का निर्देश दिया गया।
इसके साथ ही, कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि यदि याचिकाकर्ता अपील करता है, तो अपीलीय प्राधिकारी उसे समय सीमा के बाहर भी स्वीकार करें और यथासंभव शीघ्र निर्णय करें, विशेषकर यदि अंतरिम राहत मांगी गई हो।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि जब वैधानिक उपाय मौजूद हो, तब सीधे रिट याचिका नहीं दाखिल करनी चाहिए। हालांकि, अगर तकनीकी या प्रक्रियात्मक खामी हो — जैसे कि आदेश समय पर अपलोड न करना — तो कोर्ट न्यायिक संरक्षण देने के लिए तैयार है।
यह फैसला व्यवसायों के लिए एक चेतावनी भी है कि उन्हें विभागीय पोर्टल पर लगातार निगरानी रखनी चाहिए और सभी दस्तावेजों का रिकॉर्ड बनाए रखना चाहिए। यदि आदेश प्राप्त नहीं हो पा रहा है, तो उस स्थिति में अपील की प्रक्रिया पर असर पड़ सकता है, लेकिन राहत तब भी मिल सकती है यदि वे न्यायालय में उचित तरीके से अपनी बात रखें।
वहीं, कर विभागों को यह सीख मिलती है कि वे समय से आदेश अपलोड करें ताकि करदाताओं को अपने वैधानिक अधिकारों का प्रयोग करने में कोई बाधा न हो।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या याचिकाकर्ता सीधे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर सकता है?
❌ नहीं। पहले वैधानिक अपील करनी होगी। - क्या अपील समय सीमा के बाहर स्वीकार की जा सकती है यदि आदेश अपलोड न हुआ हो?
✅ हां। कोर्ट ने अपीलीय प्राधिकारी को ऐसा करने का निर्देश दिया। - क्या हाईकोर्ट यह जांच सकता है कि आदेश अपलोड हुआ था या नहीं?
❌ नहीं। यह तथ्यात्मक मुद्दा है और रिट में नहीं सुना जा सकता। - विभाग को क्या निर्देश दिए गए?
✅ एक सप्ताह में आदेश अपलोड करें और याचिकाकर्ता को सूचित करें।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- State of Tamil Nadu Cements Corporation Ltd. v. Micro and Small Enterprises Facilitation Council, (2025) 4 SCC 1
मामले का शीर्षक
M/s Bihar Steel बनाम भारत संघ एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 2284 of 2025
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. बी. पी. सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री स्वर्ण रॉय — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल — प्रतिवादी की ओर से
निर्णय का लिंक
3f4e7540-9907-4d77-b1df-270f62939011.pdf
“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”