पटना हाई कोर्ट ने एक कारोबारी इकाई के खिलाफ जीएसटी विभाग द्वारा जारी ₹61 लाख से अधिक के टैक्स, ब्याज और जुर्माने की मांग को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने यह फैसला “प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत” के उल्लंघन के आधार पर दिया, जिसमें संबंधित व्यापारी को अपनी बात रखने का अवसर नहीं दिया गया।
यह मामला नवादा जिले की एक ट्रैक्टर एजेंसी से जुड़ा है, जिसने 2018-2019 के वित्तीय वर्ष के लिए जारी टैक्स डिमांड को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि जीएसटी विभाग ने बिना पूर्व सूचना के और उसके कैश/क्रेडिट लेजर में मौजूद इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) को समायोजित किए बिना, सीधे ₹61,35,924.28 की मांग कर दी।
इससे भी बड़ी बात यह रही कि विभाग ने कोई शो-कॉज नोटिस जारी नहीं किया और ना ही किसी प्रकार की सुनवाई का अवसर दिया। जब व्यापारी ने इस आदेश के खिलाफ अपील की, तो अपीलीय अधिकारी (राज्य कर, गया डिवीजन) ने केवल इस आधार पर अपील खारिज कर दी कि वह 65 दिन की देरी से दाखिल हुई थी। अपील की मूल विषयवस्तु पर कोई विचार नहीं किया गया।
कोर्ट ने पाया कि यह आदेश न केवल एकतरफा था, बल्कि इसमें कोई ठोस कारण नहीं बताया गया था कि टैक्स राशि कैसे निर्धारित की गई। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई आदेश पहली नजर में ही गलत प्रतीत हो रहा हो, तो हाई कोर्ट उस पर हस्तक्षेप कर सकता है, भले ही वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हो।
इसलिए कोर्ट ने न केवल टैक्स डिमांड आदेश (दिनांक 22.01.2021) को, बल्कि अपीलीय आदेश (दिनांक 27.09.2022) को भी रद्द कर दिया और मामले को पुनः निर्धारण हेतु कर निर्धारण अधिकारी को वापस भेज दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय सभी करदाताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि सरकार को टैक्स संबंधित मामलों में निष्पक्ष सुनवाई और स्पष्ट आदेश देना अनिवार्य है। बिना पूर्व सूचना के टैक्स की मांग न केवल कानूनी रूप से दोषपूर्ण है, बल्कि इससे व्यापारियों के अधिकारों का उल्लंघन भी होता है।
सरकारी अधिकारियों के लिए यह निर्णय एक चेतावनी है कि प्रक्रियात्मक नियमों की अनदेखी नहीं की जा सकती, चाहे मामला कितना भी बड़ा क्यों न हो। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि न्यायालय “प्राकृतिक न्याय” की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या बिना शो-कॉज नोटिस के टैक्स डिमांड देना न्यायसंगत है?
❌ नहीं, यह प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है। - क्या अपील में केवल देरी के आधार पर मेरिट पर विचार किए बिना खारिज करना उचित है?
❌ नहीं, कोर्ट ने इसे गलत ठहराया। - क्या हाई कोर्ट इस तरह के मामले में हस्तक्षेप कर सकता है?
✅ हां, जब आदेश स्पष्ट रूप से गलत हो। - कोर्ट ने क्या राहत दी?
✅ दोनों आदेश रद्द किए, मामला दोबारा सुनवाई के लिए भेजा गया, बैंक खाता फ्रीज हटाने का आदेश, कोई वसूली नहीं, सुनवाई पूरी तरह से निष्पक्ष तरीके से करने का निर्देश।
मामले का शीर्षक
M/s Shiv Shakti Tractors बनाम भारत संघ एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 129 of 2023
उद्धरण (Citation)– 2023 (2) PLJR 114
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
माननीय श्री न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री आलोक कुमार — याचिकाकर्ता की ओर से
डॉ. के. एन. सिंह (ASG), श्री अंशुमान सिंह (वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता, CGST & CX), श्री विवेक प्रसाद (GP-7) — प्रतिवादियों की ओर से
निर्णय का लिंक
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