निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसला सुनाया जिसमें यह स्पष्ट कर दिया गया कि जीएसटी कानून के तहत इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का लाभ केवल उसी स्थिति में लिया जा सकता है जब करदाता तय समय सीमा के भीतर अपनी रिटर्न दाखिल करे। अगर यह समय सीमा पार हो जाती है, तो आईटीसी का दावा नहीं किया जा सकता।
यह मामला कई व्यापारियों द्वारा दायर याचिकाओं से जुड़ा था, जिनका कहना था कि उन्होंने अपना टैक्स तो जमा कर दिया था, लेकिन कुछ देरी से जीएसटीआर-3B रिटर्न दाखिल किया, इसलिए सरकार को उनका आईटीसी रोकने का अधिकार नहीं है। कर अधिकारियों ने यह दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि धारा 16(4) के तहत तय सीमा के बाद आईटीसी नहीं लिया जा सकता।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह समय सीमा अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19(1)(g) (व्यवसाय करने की स्वतंत्रता) और 300-A (संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन करती है। उन्होंने यह भी कहा कि आईटीसी लेने का अधिकार “मौलिक अधिकार” जैसा है और केवल तकनीकी देरी के कारण इसे नहीं छीना जा सकता।
अदालत ने इन सभी तर्कों को अस्वीकार कर दिया।
न्यायालय ने कहा कि इनपुट टैक्स क्रेडिट कोई स्वाभाविक या मौलिक अधिकार नहीं है, बल्कि यह एक कानूनी रियायत (statutory concession) है। सरकार जब कोई रियायत देती है तो वह इसे सीमित करने या समय सीमा तय करने का अधिकार भी रखती है। इसलिए यदि करदाता उस सीमा के भीतर अपना दावा नहीं करता, तो वह अधिकार स्वतः समाप्त हो जाता है।
अदालत ने यह भी कहा कि धारा 16(4) कोई साधारण “प्रक्रियात्मक प्रावधान” नहीं है, बल्कि यह आईटीसी का लाभ लेने के लिए आवश्यक शर्त है। इस प्रावधान का उद्देश्य जीएसटी प्रणाली में अनुशासन और समयबद्धता सुनिश्चित करना है।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि जीएसटीआर-3B एक वैध “रिटर्न” है और नियम 61(5), जो इसे सेक्शन 39 की रिटर्न मानता है, वैधानिक रूप से सही है।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया — जैसे कि ALD Automotive Pvt. Ltd. v. CTO और Jayam & Company v. ACCT — जिनमें यह कहा गया था कि इनपुट टैक्स क्रेडिट एक विशेषाधिकार है, अधिकार नहीं। इसलिए इस पर समय सीमा जैसी शर्तें लगाई जा सकती हैं।
अंत में, पटना उच्च न्यायालय ने सभी याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि सरकार का निर्णय पूरी तरह वैधानिक और संवैधानिक है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- कर अनुपालन में अनुशासन: इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि जीएसटी की समय सीमा का पालन करना आवश्यक है। देरी से दाखिल रिटर्न पर आईटीसी का दावा नहीं किया जा सकेगा।
- सरकारी प्रशासन में समानता: अदालत ने कहा कि यह प्रावधान सभी करदाताओं पर समान रूप से लागू होता है, इसलिए इसे अनुच्छेद 14 के तहत मनमाना नहीं कहा जा सकता।
- व्यापारियों के लिए चेतावनी: अब व्यवसायों को हर वित्तीय वर्ष की 30 नवंबर तक अपने सभी इनवॉइस के आधार पर आईटीसी का दावा कर लेना होगा।
- विवादों में कमी: इस फैसले के बाद बिहार सहित अन्य राज्यों में लंबित ऐसे मामलों में भी समान निष्कर्ष अपनाया जाएगा।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या धारा 16(4) संवैधानिक है? — हां, यह वैध है। आईटीसी का अधिकार सीमित समय में उपयोग करना आवश्यक है।
- क्या आईटीसी का दावा एक “अधिकार” है? — नहीं, यह केवल एक वैधानिक सुविधा है।
- क्या अदालत इस धारा को “पढ़कर” (reading down) नरम बना सकती है? — नहीं, जब कानून स्पष्ट है तो न्यायालय उसमें बदलाव नहीं कर सकता।
- क्या जीएसटीआर-3B वैध रिटर्न नहीं है? — नहीं, अदालत ने माना कि यह वैध रिटर्न है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Modern Dental College and Research Centre v. State of M.P. (2016) 7 SCC 353
- K.T. Moopil Nair v. State of Kerala, AIR 1961 SC 552
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- ALD Automotive Pvt. Ltd. v. CTO, (2019) 13 SCC 225
- Jayam & Company v. Assistant Commissioner, (2016) 15 SCC 125
- Godrej & Boyce Mfg. Co. Pvt. Ltd. v. State of Maharashtra, (1992) 3 SCC 624
मामले का शीर्षक
शत्रुधन कुमार अमित कुमार बनाम भारत संघ, सचिव के माध्यम से
केस नंबर
CWJC No. 9108 of 2021 (साथ में कई अन्य CWJC)
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह एवं माननीय न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: एस.डी. संजय, डी.वी. पाठी, गौतम कुमार केजरीवाल आदि
राज्य की ओर से: अधिवक्ता जनरल पी.के. शाही एवं विवेक प्रसाद (G.P.-7)
भारत सरकार की ओर से: अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल
निर्णय का लिंक
MTUjMjg1NCMyMDIxIzEjTg==—am1–OyJ–am1–5LSOHQ=
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