निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक अहम फैसला दिया, जिसमें यह साफ किया गया कि अगर कोई सरकारी ठेका जीएसटी लागू होने के बाद दिया गया है और निविदा (टेंडर) में साफ लिखा है कि दरें “सभी करों और टैक्स सहित” होंगी, तो ठेकेदार को ही पूरा जीएसटी देना होगा। सरकार या विभाग बाद में अतिरिक्त टैक्स का बोझ नहीं उठाएंगे।
मामला एक सड़क निर्माण ठेकेदार से जुड़ा था, जिसने राज्य सरकार के अलग-अलग विभागों से काम लिया था। ठेकेदार का कहना था कि उसने काम की कीमत इस आधार पर तय की थी कि पुरानी वैट व्यवस्था (VAT) के हिसाब से टैक्स लगेगा, जो केवल 4% था। लेकिन विभाग ने 12% जीएसटी लगाने की बात कही। ठेकेदार ने दलील दी कि यह अतिरिक्त टैक्स विभाग को देना चाहिए, न कि ठेकेदार को।
न्यायालय ने यह तर्क मानने से इनकार कर दिया और सभी याचिकाएँ खारिज कर दीं। अदालत ने कहा कि—
- यह ठेके और टेंडर जीएसटी लागू होने (1 जुलाई 2017) के बाद जारी किए गए थे।
- समझौते (एग्रीमेंट) पर भी 2018 में हस्ताक्षर हुए।
- मानक निविदा दस्तावेज (Standard Bidding Document) में साफ उल्लेख था कि बोलीदाता द्वारा दी गई दरें “सभी करों और टैक्स सहित” होंगी।
इसलिए ठेकेदार ने जब बोली लगाई थी, तब उसे पता था कि जीएसटी लागू हो चुका है और उसी हिसाब से उसे बोली लगानी चाहिए थी। अब यह कहना कि सरकार को टैक्स देना चाहिए, कानूनन सही नहीं है।
ठेकेदार ने एक पुराने फैसले (जय भवानी कंस्ट्रक्शन केस) का हवाला दिया, जिसमें अदालत ने सरकार को टैक्स का फर्क भरने का निर्देश दिया था। लेकिन वह मामला जीएसटी लागू होने से पहले का था। वहाँ ठेकेदार ने बोली वैट व्यवस्था के समय लगाई थी और बाद में जीएसटी लग गया। इस कारण सरकार को अंतर देना पड़ा। परंतु इस मामले में बोली और एग्रीमेंट दोनों ही जीएसटी लागू होने के बाद हुए थे, इसलिए वह मिसाल लागू नहीं होती।
ठेकेदार ने बीजीएसटी एक्ट की धारा 76 का भी सहारा लिया, जिसमें कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति टैक्स के नाम पर पैसा वसूल करता है, तो उसे सरकार को जमा करना होगा। अदालत ने कहा कि यह प्रावधान ठेकेदार को राहत नहीं दे सकता। जीएसटी के तहत ठेकेदार ही रजिस्टर्ड सप्लायर है और उसी पर टैक्स जमा करने की जिम्मेदारी है। अगर ठेकेदार ने विभाग से टैक्स वसूला ही नहीं, तो भी सरकार से वह अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता।
न्यायालय ने पहले दिए गए अपने ही फैसले (JMC Construction Pvt. Ltd. केस) का हवाला दिया और कहा कि जहाँ टेंडर जीएसटी लागू होने के बाद निकाला गया है और दरें “टैक्स सहित” मानी जाती हैं, वहाँ ठेकेदार ही जीएसटी देगा।
अंत में न्यायालय ने सभी याचिकाएँ खारिज कर दीं और साफ कर दिया कि ठेकेदारों को बोली लगाते समय टैक्स का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- ठेकेदारों के लिए: अब ठेकेदारों को यह स्पष्ट संदेश है कि जीएसटी लागू होने के बाद दिए गए टेंडर में टैक्स का बोझ उन्हीं को उठाना होगा। बोली लगाते समय टैक्स को ध्यान में रखकर दर तय करनी होगी।
- सरकारी विभागों के लिए: इस फैसले से विभागों को राहत मिली है। अब उन्हें ठेकेदारों की तरफ से टैक्स के अंतर को भरना नहीं पड़ेगा। टेंडर में लिखी शर्तें ही लागू होंगी।
- आम जनता के लिए: टैक्स विवाद खत्म होने से सड़क और अन्य सार्वजनिक परियोजनाएँ समय पर पूरी होंगी और खर्चों में अनिश्चितता नहीं रहेगी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या ठेकेदार जीएसटी का बोझ सरकार पर डाल सकता है?
— नहीं। अदालत ने कहा कि जब टेंडर और एग्रीमेंट जीएसटी लागू होने के बाद हुए हैं और दरें “टैक्स सहित” मानी जाती हैं, तो ठेकेदार ही जिम्मेदार है। - क्या पुराने फैसले (जहाँ वैट के बाद जीएसटी लागू हुआ) इस मामले में लागू होंगे?
— नहीं। पुराने मामले अलग परिस्थितियों पर आधारित थे, जब बोली जीएसटी से पहले लगी थी। - क्या बीजीएसटी एक्ट की धारा 76 ठेकेदार को राहत देती है?
— नहीं। यह धारा केवल यह कहती है कि टैक्स के नाम पर वसूली गई राशि सरकार को जमा करनी होगी। इससे ठेकेदार की टैक्स देनदारी खत्म नहीं होती।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- जय भवानी कंस्ट्रक्शन बनाम भारत संघ, CWJC No. 1452 of 2019 (और संबंधित मामले)।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- JMC Construction Pvt. Ltd. बनाम भारत संघ, CWJC No. 10122 of 2023 (पटना उच्च न्यायालय)।
मामले का शीर्षक
एम/एस सत्येन्द्र प्रसाद बनाम बिहार राज्य
केस नंबर
CWJC No. 5549 of 2024; साथ ही CWJC Nos. 5550, 5552, 6605 और 6791 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन एवं माननीय श्री न्यायमूर्ति पार्थ सारथि। दिनांक 12-09-2024।
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री आकाश चतुर्वेदी, अधिवक्ता; श्री श्रीराम कृष्ण, अधिवक्ता।
- प्रतिवादी की ओर से: श्री विकास कुमार, स्थायी अधिवक्ता (SC-11)।
निर्णय का लिंक
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