निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि यदि किसी बिल्डर ने जमीन मालिक से विकास अनुबंध (Development Agreement) के तहत फ्लैट्स बनाए और उन्हें सौंपा, तो ऐसे निर्माण कार्य पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू होगा—even अगर विकास अनुबंध GST लागू होने से पहले का हो।
इस केस में याचिकाकर्ता एक निजी निर्माण कंपनी थी, जो बिहार के मुजफ्फरपुर में भवन निर्माण के व्यवसाय में लगी है। कंपनी ने 2014 में एक विकास अनुबंध किया था, जिसके तहत वह एक भवन बनाकर उसमें से 43% हिस्सा ज़मीन मालिक को सौंपने वाली थी। यह परियोजना 2018 में पूरी हुई थी। कंपनी ने यह दावा किया कि चूंकि यह अनुबंध GST के पहले हुआ था और फ्लैट्स निर्माण पूरा होने के बाद दिए गए, इसलिए GST नहीं लगना चाहिए।
लेकिन राज्य कर विभाग ने इस पर ₹4.61 करोड़ का कर, ब्याज और जुर्माना लगाया। विभाग ने कहा कि याचिकाकर्ता ने निर्माण सेवा प्रदान की है और यह सेवा GST के अंतर्गत आती है।
याचिकाकर्ता ने यह भी दलील दी कि 2019 में जारी एक अधिसूचना के बाद ही ऐसे लेन-देन पर GST लागू किया गया है, इसलिए 2018-19 के लिए कर निर्धारण गलत है। कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि यह कर निर्माण सेवाओं पर लगाया गया है, न कि विकास अधिकार (Development Rights) के स्थानांतरण पर।
कोर्ट ने यह भी कहा कि विकास अनुबंध सिर्फ एक अनुज्ञा (license) देता है—मालिकाना हक नहीं। जब तक परियोजना पूरी नहीं होती और पूरा भवन याचिकाकर्ता को नहीं मिलता, तब तक उसे जमीन पर कोई स्वामित्व अधिकार नहीं मिलता। जैसे ही वह निर्माण कार्य पूरा करता है और फ्लैट्स ज़मीन मालिक को सौंपता है, वह GST के दायरे में आ जाता है।
याचिकाकर्ता ने Balbir Singh Maini नामक एक सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया, लेकिन पटना हाई कोर्ट ने कहा कि वह मामला आयकर कानून से संबंधित था, और वर्तमान केस में वह निर्णय लागू नहीं होता।
कोर्ट ने यह भी देखा कि याचिकाकर्ता ने वैकल्पिक अपील का रास्ता अपनाए बिना सीधे हाई कोर्ट में याचिका दायर की है, जो स्वीकार नहीं किया जा सकता।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
इस फैसले से यह साफ संदेश गया है कि यदि कोई बिल्डर ज़मीन के बदले फ्लैट्स बनाकर मालिक को सौंपता है, तो उसे GST देना होगा—भले ही विकास अनुबंध GST लागू होने से पहले हुआ हो। इससे सरकारी कर विभागों को कानूनी मजबूती मिलेगी और ऐसे सभी निर्माण करार अब टैक्स दायरे में आएंगे।
आम जनता और रियल एस्टेट डेवलपर्स के लिए भी यह स्पष्टता लाता है कि टैक्स देयता निर्माण पूरा होने के समय के हिसाब से तय होगी, न कि केवल अनुबंध की तारीख से।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या कर निर्धारण आदेश समय सीमा के बाहर था?
- नहीं। आदेश 30.11.2023 को दिया गया था, जो कि वार्षिक रिटर्न की विस्तारित अंतिम तिथि 31.12.2020 से तीन साल के भीतर आता है।
- क्या GST लागू होने से पहले के विकास अनुबंध को टैक्स से छूट मिलनी चाहिए?
- नहीं। विकास अनुबंध से मालिकाना हक स्थानांतरित नहीं हुआ था; निर्माण सेवाएं GST के अंतर्गत आती हैं।
- क्या फ्लैट्स सौंपने की प्रक्रिया टैक्स योग्य है?
- हां। जैसे ही फ्लैट्स सौंपे गए, निर्माण सेवा दी गई, जो GST के अंतर्गत आती है।
- क्या 2019 की अधिसूचना का पूर्व-लागू प्रभाव है?
- नहीं। टैक्स निर्माण सेवा पर लगाया गया है, न कि विकास अधिकारों पर।
- क्या वैकल्पिक अपील के रास्ते के बिना रिट याचिका मान्य है?
- नहीं। याचिकाकर्ता को पहले अपील प्रक्रिया अपनानी चाहिए थी।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Commissioner of Income Tax v. Balbir Singh Maini, (2018) 12 SCC 354
- Govind Saran Ganga Saran v. Commissioner of Sales Tax, 1985 Supp SCC 205
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Prahitha Construction Pvt. Ltd. v. Union of India, 2024 SCC OnLine TS 3994 (तेलंगाना हाई कोर्ट)
- Super Poly Fabriks Ltd. v. CCE Punjab, (2008) 11 SCC 398
- CWJC No.18149/2023 (M/s Adarsh Construction v. State of Bihar)
- CWJC No.18168/2023 (M/s Radhika Packing and Printers v. State of Bihar)
मामले का शीर्षक
M/s Shashi Ranjan Constructions Pvt. Ltd. v. Union of India & Others
केस नंबर
CWJC No. 6700 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
माननीय न्यायमूर्ति अशोक कुमार पांडेय
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री डी. वी. पाठी, वरिष्ठ अधिवक्ता – याचिकाकर्ता की ओर से
- डॉ. कृष्णनंदन सिंह, एएसजीआई; श्री अंशुमान सिंह, वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता (CGST); श्री शिवादित्य धारी सिन्हा; श्री आलोक कुमार – केंद्र सरकार की ओर से
- श्री विकास कुमार, स्थायी अधिवक्ता-11 – बिहार राज्य सरकार की ओर से
निर्णय का लिंक
15c7dac9-be22-4b6f-8886-d1d19d007b6c.pdf
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