निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 2024 में एक अहम फैसले में यह स्पष्ट किया कि जीएसटी विभाग द्वारा जारी किया गया डिमांड-कम-शो कॉज़ नोटिस (Show Cause Notice) तब अवैध नहीं माना जा सकता, जब पहले करदाता को उसकी रिटर्न में पाई गई गड़बड़ियों की जानकारी दी गई हो और उसे जवाब देने का मौका मिला हो।
इस मामले में एक व्यापारी (याचिकाकर्ता) ने अदालत में याचिका दायर की थी कि विभाग ने सीधे धारा 74(1) के तहत नोटिस जारी कर दिया, जबकि पहले धारा 61 के तहत स्क्रूटिनी (scrutiny) होनी चाहिए थी। परंतु अदालत ने रिकॉर्ड देखने के बाद पाया कि विभाग ने मार्च 2022 में ही करदाता को रिटर्न में असंगति (discrepancy) की सूचना दी थी और करदाता ने उसका जवाब भी दिया था। इसलिए अदालत ने कहा कि विभाग की प्रक्रिया वैध थी और याचिका में कोई ठोस आधार नहीं है।
अदालत ने यह भी कहा कि केवल इसलिए कि नोटिस का फॉर्मेट Form ASMT-10 जैसा नहीं था, इससे प्रक्रिया अवैध नहीं हो जाती, अगर नोटिस का आशय और सामग्री वही है जो कानून में दी गई है। न्यायालय ने Substance-over-Form का सिद्धांत अपनाया — यानी रूप से ज्यादा सार पर ध्यान दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
- कर विभाग ने करदाता की रिटर्न की जांच धारा 61 के तहत की, जिसमें इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) में अंतर पाया गया।
- विभाग ने करदाता को 30.03.2022 को एक पत्र भेजा, जिसमें वार्षिक रिटर्न (GSTR-9C) और वित्तीय विवरण के आंकड़ों में फर्क बताया गया।
- करदाता ने जवाब दिया कि GSTR-9C में दिया गया कॉलम ‘14T’ (ITC reconciliation) वैकल्पिक (optional) था और सिस्टम द्वारा स्वतः भरा गया था।
- विभाग ने जवाब से संतुष्ट न होकर धारा 74(1) के तहत शो-कॉज नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया कि करदाता ने गलत ITC दिखाकर टैक्स कम भरा है।
- करदाता ने इसे पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी, यह कहते हुए कि विभाग ने पहले विधिवत ASMT-10 नोटिस नहीं भेजा।
अदालत ने तथ्यों को देखकर पाया कि विभाग ने वास्तव में असंगति की सूचना भेजी थी और करदाता ने उत्तर भी दिया था। इस प्रकार विभाग ने Rule 99 के तहत आवश्यक प्रक्रिया का पालन किया।
न्यायालय की प्रमुख टिप्पणियाँ
- अगर करदाता को पहले ही असंगति की जानकारी दी जा चुकी है और उसने जवाब दे दिया है, तो आगे के शो-कॉज नोटिस को अदालत नहीं रद्द कर सकती।
- हाई कोर्ट की भूमिका सीमित है। जब वैधानिक (statutory) प्रक्रिया उपलब्ध है, तो करदाता को पहले उसी के तहत अपना पक्ष रखना चाहिए।
- केवल तकनीकी आधार (जैसे कि गलत फॉर्म नंबर या फॉर्मेट) पर नोटिस को रद्द नहीं किया जा सकता, जब तक कि सामग्री सही है।
- यदि जीएसटी पोर्टल में किसी टेबल में ‘unreconciled ITC’ दिख रहा है, तो करदाता का दायित्व है कि वह उसका उचित स्पष्टीकरण दे।
- अदालत ने यह भी कहा कि इस स्तर पर (शो-कॉज नोटिस के चरण पर) तथ्यों की जांच और बहस (जैसे कि ITC की गणना) करने का अधिकार अदालत के पास नहीं है। वह काम जीएसटी अधिकारी का है।
अंततः, अदालत ने याचिका खारिज कर दी, पर करदाता को यह स्वतंत्रता दी कि वह विभाग के समक्ष जाकर अपनी आपत्ति विस्तार से रखे।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव
- यह फैसला जीएसटी करदाताओं के लिए महत्वपूर्ण मार्गदर्शन देता है।
- यह बताता है कि हाई कोर्ट में सीधे चुनौती देना उचित नहीं, जब आपके पास विभाग के भीतर ही जवाब देने और अपील करने का विकल्प है।
- व्यवसायों को यह समझना चाहिए कि जीएसटी विभाग से मिली किसी भी सूचना या ईमेल को “सिर्फ औपचारिक” न समझें — उसका जवाब विस्तार से दें।
- यदि कोई कॉलम “optional” बताया गया है, लेकिन उसमें कोई अंतर दिख रहा है, तो उसे स्पष्ट करना ज़रूरी है।
- यह फैसला विभाग को भी आश्वस्त करता है कि छोटी तकनीकी त्रुटियाँ, जैसे फॉर्म का गलत शीर्षक, प्रक्रिया को अवैध नहीं बनातीं।
- कर प्रशासन और करदाताओं के बीच पारदर्शिता और प्रक्रिया पालन का यह फैसला संतुलन स्थापित करता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या धारा 74(1) के तहत जारी शो-कॉज नोटिस के खिलाफ सीधी रिट याचिका सुनवाई योग्य है?
- उत्तर: नहीं। जब करदाता के पास वैधानिक उपाय (reply, hearing, appeal) उपलब्ध है, तब रिट याचिका स्वीकार नहीं की जाएगी।
- क्या ASMT-10 के सटीक प्रारूप में नोटिस न भेजे जाने से प्रक्रिया अवैध हो जाती है?
- उत्तर: नहीं। यदि नोटिस की सामग्री वैसी ही है और करदाता ने उसका उत्तर दिया है, तो प्रक्रिया वैध मानी जाएगी।
- क्या GSTR-9C का कॉलम वैकल्पिक होने का तर्क पर्याप्त है?
- उत्तर: नहीं। यदि सिस्टम में असंगति दिख रही है, तो करदाता को उसका स्पष्टीकरण देना होगा।
- क्या हाई कोर्ट ITC मिलान जैसे तथ्यात्मक विवादों की जांच कर सकती है?
- उत्तर: नहीं। यह काम विभागीय अधिकारी का है, अदालत का नहीं।
मामले का शीर्षक
मि० पेप्सीको इंडिया होल्डिंग्स प्रा० लि० बनाम भारत संघ
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 5240 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
- माननीय मुख्य न्यायाधीश
- माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से:
- श्री रोहन शाह, अधिवक्ता
- श्री रवि भरुका, अधिवक्ता
- श्री जॉयब्रत मिश्रा, अधिवक्ता
- श्री संजीव कुमार, अधिवक्ता
- श्री मनीष मिश्रा, अधिवक्ता
- श्री शरीन गुप्ता, अधिवक्ता
- श्री तनय व्यास, अधिवक्ता
- प्रतिवादी की ओर से (भारत संघ / सीजीएसटी एवं सीएक्स प्राधिकरण):
- डॉ. के. एन. सिंह, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल
- श्री अंशुमन सिंह, वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता
- श्री देवांश शंकर सिंह, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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