पोर्टल पर नोटिस अपलोड कर देना ही पर्याप्त नहीं: पटना उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला

पोर्टल पर नोटिस अपलोड कर देना ही पर्याप्त नहीं: पटना उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने एक व्यापारिक संस्था के विरुद्ध जारी जीएसटी कर निर्धारण आदेश को निरस्त कर दिया क्योंकि उस संस्था को सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया था। यह निर्णय ‘प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत’ के उल्लंघन पर आधारित है।

मामला एक लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप (LLP) फर्म से जुड़ा था। इस फर्म पर सीजीएसटी और बिहार जीएसटी अधिनियम, 2017 के अंतर्गत 24 अप्रैल 2024 को टैक्स, ब्याज और जुर्माने का आदेश पारित किया गया था। यह आदेश दिसंबर 2018 के जीएसटीआर-3बी फॉर्म में एक टाइपो यानी गलती से “9” अंक अधिक टाइप होने के कारण जारी किया गया था, जिससे कर योग्य राशि गलत दिखने लगी।

फर्म ने स्पष्ट किया कि सालाना रिटर्न (GSTR-9) और मिलान विवरणी (GSTR-9C) में इस गलती को सही कर दिया गया था और ये दस्तावेज़ जीएसटी पोर्टल पर पहले से उपलब्ध थे। इसके बावजूद विभाग ने बिना कोई प्रत्यक्ष सूचना दिए नोटिस अपलोड कर दिए और जवाब माँगे बिना ही टैक्स आदेश पारित कर दिया।

फर्म ने न्यायालय में यह दलील दी कि उन्हें इस बारे में कोई सीधी सूचना नहीं दी गई और केवल पोर्टल पर अपलोड कर देने से उन्हें जानकारी नहीं मिल सकती। हर दिन पोर्टल चेक करना व्यावहारिक नहीं है।

राज्य सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया कि विभाग द्वारा पोर्टल पर नोटिस डालना ही पर्याप्त है और करदाता की ज़िम्मेदारी है कि वह पोर्टल पर ध्यान रखे।

न्यायालय ने राज्य की इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि केवल पोर्टल अपलोड करना पर्याप्त नहीं है। जब कोई कर आदेश जारी किया जाता है, तो संबंधित व्यक्ति को उचित सूचना और जवाब देने का मौका मिलना चाहिए। यहाँ याचिकाकर्ता को अपनी बात रखने का अवसर ही नहीं मिला।

न्यायालय ने 24 अप्रैल 2024 का कर आदेश निरस्त कर दिया। लेकिन अब चूंकि याचिकाकर्ता को नोटिस की जानकारी मिल चुकी है, इसलिए न्यायालय ने निर्देश दिया कि वे तीन सप्ताह में अपना जवाब दाखिल करें और कर विभाग दो महीने के भीतर सुनवाई कर नया आदेश पारित करे।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय करदाताओं के अधिकारों को मजबूती देता है और कर अधिकारियों को यह स्पष्ट संदेश देता है कि तकनीकी सुविधा जैसे कि पोर्टल, न्यायिक सिद्धांतों का विकल्प नहीं हो सकती। सूचना का उचित संप्रेषण और सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है।

इस फैसले से यह भी स्पष्ट हुआ कि जब तक करदाताओं को उचित जानकारी नहीं दी जाती, तब तक विभाग कोई कठोर कार्रवाई नहीं कर सकता। यह निर्णय डिजिटल युग में भी मूल न्याय सिद्धांतों की रक्षा करता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या केवल पोर्टल पर नोटिस अपलोड करना पर्याप्त सूचना माना जा सकता है?
    न्यायालय का निर्णय: नहीं। पोर्टल पर अपलोड करना पर्याप्त नहीं, जब तक कि प्रत्यक्ष सूचना न दी जाए।
  • क्या याचिकाकर्ता को सुनवाई का मौका दिया गया था?
    न्यायालय का निर्णय: नहीं। नोटिस की जानकारी दिए बिना आदेश जारी करना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।
  • क्या वैकल्पिक उपाय (अपील) का उपयोग किए बिना याचिका दायर करना उचित था?
    न्यायालय का निर्णय: हाँ। क्योंकि मामला प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन से जुड़ा था।
  • अब क्या प्रक्रिया अपनाई जाएगी?
    निर्देश: याचिकाकर्ता तीन सप्ताह में जवाब दे और विभाग दो महीने के भीतर सुनवाई कर नया आदेश पारित करे।

मामले का शीर्षक

Shree Ram Sales LLP बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

CWJC No. 2768 of 2025

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति सुनील दत्ता मिश्रा

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से:
    श्री गौतम कुमार केजरीवाल, अधिवक्ता
    श्री आलोक कुमार झा, अधिवक्ता
    श्री मुकुंद कुमार, अधिवक्ता
    श्री आकाश कुमार, अधिवक्ता
    श्री आदित्य रमन, अधिवक्ता
  • प्रतिवादी की ओर से:
    श्री विवेक कुमार, सरकारी अधिवक्ता (7)

निर्णय का लिंक

98ebe20d-13c0-405a-a158-66d93c987b21.pdf

“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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