पटना हाई कोर्ट का निर्णय: बिना उचित सूचना दिए टैक्स निर्धारण अवैध घोषित

पटना हाई कोर्ट का निर्णय: बिना उचित सूचना दिए टैक्स निर्धारण अवैध घोषित

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि केवल GST पोर्टल पर नोटिस अपलोड करना पर्याप्त नहीं है — करदाता को उचित रूप से सूचना देना ज़रूरी है।

इस मामले में, एक व्यवसायी (याचिकाकर्ता) के खिलाफ बिहार GST कानून के तहत टैक्स निर्धारण आदेश 08.02.2021 को जारी किया गया था। लेकिन याचिकाकर्ता को इसका कोई सीधा नोटिस नहीं मिला — न कोई ईमेल, न डाक, न मैसेज। बस GST पोर्टल पर यह अपलोड कर दिया गया।

जब याचिकाकर्ता को बाद में पता चला और उसने अपील की, तो अपीलीय प्राधिकारी ने यह कह कर अपील खारिज कर दी कि समय सीमा निकल चुकी है। लेकिन कोर्ट ने पाया कि जब पहली बार ही उचित सूचना नहीं दी गई थी, तो समय सीमा का सवाल ही नहीं उठता।

न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकार करदाताओं से यह उम्मीद नहीं कर सकती कि वे रोज़-रोज़ पोर्टल चेक करते रहें कि कोई नोटिस आया है या नहीं। कानून में “प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत” का पालन करना अनिवार्य है — मतलब यह कि किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई करने से पहले उसे सुनवाई का पूरा मौका मिलना चाहिए।

कोर्ट ने इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले Madhyamam Broadcasting Ltd. बनाम भारत सरकार (2023) को भी उद्धृत किया जिसमें प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता पर ज़ोर दिया गया है।

इस आधार पर, पटना हाई कोर्ट ने कर निर्धारण आदेश और अपीलीय आदेश — दोनों को रद्द कर दिया। अब करदाता को नया मौका दिया गया है कि वह नोटिस का उत्तर छह हफ्ते के भीतर दे, और उसके बाद विभाग दो महीने में नया आदेश पारित करे।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला बिहार सहित पूरे देश के करदाताओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह स्पष्ट करता है कि सरकार केवल तकनीकी तरीके (जैसे पोर्टल पर अपलोड करना) से नोटिस नहीं दे सकती — वास्तविक, उचित और स्पष्ट सूचना देना ज़रूरी है।

खासकर छोटे व्यवसायी या ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले लोग जो रोज़ाना GST पोर्टल नहीं देख पाते, उनके लिए यह राहत देने वाला निर्णय है। यह फैसला यह भी दर्शाता है कि डिजिटल इंडिया के नाम पर पारदर्शिता और न्याय को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

सरकार को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि नोटिस भेजने के लिए SMS, ईमेल या डाक जैसी विधियों का प्रयोग किया जाए — केवल पोर्टल पर अपलोड करने से काम नहीं चलेगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या केवल पोर्टल पर नोटिस अपलोड करना पर्याप्त सूचना है?
    ❌ नहीं। कोर्ट ने कहा कि यह प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।
  • क्या अपीलीय प्राधिकारी ने सही किया जब उसने अपील देरी से होने के कारण खारिज की?
    ❌ नहीं। जब मूल आदेश ही गलत प्रक्रिया से पारित हुआ था, तो अपील की देरी को आधार नहीं बनाया जा सकता।
  • क्या टैक्स निर्धारण आदेश और अपीलीय आदेश को रद्द किया जाना चाहिए?
    ✅ हां। दोनों आदेश रद्द किए गए और मामले को नए सिरे से शुरू करने का निर्देश दिया गया।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Madhyamam Broadcasting Ltd. बनाम भारत सरकार, (2023) 13 SCC 401

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Madhyamam Broadcasting Ltd. बनाम भारत सरकार, (2023) 13 SCC 401

मामले का शीर्षक

M/s Maa Gaytri Distributor through Proprietor बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 9658 of 2024

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति सुनील दत्ता मिश्रा

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से:
    श्रीमती अर्चना सिन्हा (वरिष्ठ अधिवक्ता)
    श्री आलोक कुमार @ आलोक कुमार शाही
    श्री शुभम शंकर
  • प्रतिवादी की ओर से:
    श्री विवेक प्रसाद, सरकारी अधिवक्ता (G.P.-7)

निर्णय का लिंक

26095b6c-a21e-4038-870a-c6f497273ef5.pdf

“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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