निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में उस फर्म को राहत दी है जो बिना एकीकृत कर (IGST) के भुगतान के माल का निर्यात कर रही थी। फर्म ने अपने इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) की रिफंड की मांग की थी, जिसे जीएसटी विभाग ने खारिज कर दिया था। इसके बाद कंपनी ने अपील की, लेकिन वहां भी राहत नहीं मिली। इस अस्वीकृति के खिलाफ कंपनी ने हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की।
यह मामला तीन रिट याचिकाओं से संबंधित था, जिनमें मुख्य विवाद यह था कि रिफंड अस्वीकृति आदेश में उन तथ्यों पर आधारित निर्णय लिया गया जो न तो शो-कॉज नोटिस में उल्लिखित थे और न ही कंपनी को उनका जवाब देने का अवसर दिया गया। अदालत ने माना कि यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता ने सभी आवश्यक दस्तावेज समय पर प्रस्तुत कर दिए थे, केवल खरीदारों के साथ समझौते की प्रति नहीं दी गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विदेशी खरीदारों के साथ लिखित समझौता रिफंड के लिए अनिवार्य नहीं है। इसके बावजूद, कर विभाग ने ऐसे तथ्यों को आधार बनाकर रिफंड अस्वीकृत कर दिया, जिनकी जानकारी याचिकाकर्ता को पहले नहीं दी गई थी।
अपील प्राधिकरण ने भी इन प्रक्रियागत त्रुटियों की अनदेखी करते हुए मूल अस्वीकृति आदेश को सही ठहराया, जिसे कोर्ट ने गलत माना।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने निर्णय Oryx Fisheries Pvt. Ltd. बनाम यूनियन ऑफ इंडिया [(2010) 13 SCC 427] का हवाला देते हुए कहा कि न्यायिक या अर्ध-न्यायिक आदेशों में पारदर्शिता और स्पष्ट कारण आवश्यक हैं।
अंत में, कोर्ट ने पुराने अस्वीकृति आदेश को एक नया शो-कॉज नोटिस मानते हुए, विभाग को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता को आठ सप्ताह का समय दे ताकि वह अपना जवाब और दस्तावेज प्रस्तुत कर सके। इसके बाद एक नया स्पष्ट और तर्कपूर्ण आदेश पारित किया जाए।
यह निर्णय सुनिश्चित करता है कि कोई भी रिफंड केवल उचित प्रक्रिया और कानून के अनुसार ही रोका जा सकता है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला उन सभी व्यापारियों और निर्यातकों के लिए राहत भरा है, जो जीएसटी के तहत रिफंड प्रक्रिया से गुजरते हैं। यह स्पष्ट करता है कि कर अधिकारियों को अपने आदेश पारित करने से पहले उचित नोटिस और सुनवाई का अवसर देना होगा।
सरकारी विभागों के लिए यह निर्णय एक चेतावनी के रूप में कार्य करता है कि उन्हें केवल उन्हीं तथ्यों के आधार पर निर्णय लेना चाहिए जो शो-कॉज नोटिस में शामिल हों, और जिन पर संबंधित पक्ष को उत्तर देने का अवसर मिला हो।
आम जनता और विशेष रूप से बिहार में कार्यरत निर्यातकों के लिए यह आदेश एक कानूनी सुरक्षा देता है कि रिफंड मनमाने ढंग से या छिपे हुए कारणों से अस्वीकृत नहीं किया जा सकता।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या रिफंड अस्वीकृति आदेश में वे तथ्य शामिल किए जा सकते हैं जो मूल शो-कॉज नोटिस में नहीं थे?
- कोर्ट का निर्णय: नहीं। केवल उन्हीं तथ्यों पर निर्णय हो सकता है जो शो-कॉज नोटिस में लिखे गए हों।
- क्या निर्यात के लिए खरीदारों के साथ लिखित समझौता आवश्यक है?
- कोर्ट का निर्णय: नहीं। ऐसा समझौता अनिवार्य नहीं है।
- क्या अपील प्राधिकरण ने प्रक्रिया संबंधी गलतियों को नजरअंदाज किया?
- कोर्ट का निर्णय: हां। इसलिए उसका आदेश भी रद्द किया गया।
- कोर्ट ने याचिकाकर्ता को क्या राहत दी?
- कोर्ट का निर्णय: पुराने अस्वीकृति आदेश को नया शो-कॉज नोटिस माना गया है। याचिकाकर्ता को 8 हफ्ते में जवाब देना होगा, फिर विभाग को एक नया कारणयुक्त आदेश पारित करना होगा।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Oryx Fisheries Pvt. Ltd. बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, (2010) 13 SCC 427
मामले का शीर्षक
Vaishnodevi Advisory Private Limited बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
CWJC No. 19159 of 2024 (साथ में CWJC No. 18690 और 18761 of 2024)
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजनथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति आलोक कुमार सिन्हा
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से:
- श्री विनय श्रॉफ, वरिष्ठ अधिवक्ता
- श्री पुनीत सिद्धार्थ
- श्री अमित कुमार सिंह
- श्री आर्यन सिन्हा
- श्री अमित कुमार सिंह
- मो. ज़ीशान खान
प्रत्युत्तरकर्ता की ओर से:
- श्री स्टैंडिंग काउंसल (11)
निर्णय का लिंक
c06598fa-d96a-499c-a41a-632ed66b918c.pdf
“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”







