निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने वर्ष 2024 में एक साथ कई जीएसटी मामलों पर सुनवाई की, जिनमें 2017-18, 2018-19 और 2019-20 के असेसमेंट ऑर्डर को चुनौती दी गई थी। अलग-अलग व्यवसायियों और करदाताओं (याचिकाकर्ताओं) ने यह कहा कि उनके ऊपर जारी टैक्स आदेश समय-सीमा से बाहर हैं, इसलिए इन्हें रद्द किया जाए। साथ ही यह भी दलील दी गई कि विभाग को पहले धारा 61 के तहत रिटर्न स्क्रूटिनी नोटिस (Form ASMT-10) देना चाहिए था और बिना व्यक्तिगत सुनवाई के सीधे आदेश पारित करना कानून के खिलाफ है।
न्यायालय ने इन तीन मुख्य मुद्दों पर विस्तार से विचार किया —
- क्या कोरोना काल के कारण समय सीमा बढ़ाई जा सकती है या नहीं।
- क्या हर बार असेसमेंट से पहले स्क्रूटिनी नोटिस जरूरी है।
- क्या बिना व्यक्तिगत सुनवाई के आदेश पास किया जा सकता है।
पहला मुद्दा — समय सीमा (Limitation):
जीएसटी कानून की धारा 73(10) कहती है कि किसी वित्तीय वर्ष का असेसमेंट तीन साल के अंदर पूरा होना चाहिए। सामान्यतः 2017-18 का असेसमेंट 31 दिसम्बर 2021 तक होना चाहिए था। लेकिन कोरोना महामारी के कारण सुप्रीम कोर्ट ने 15 मार्च 2020 से 28 फरवरी 2022 तक की अवधि को “काउंटिंग” से बाहर कर दिया। इसके अलावा केंद्र और राज्य सरकारों ने धारा 168A के तहत अलग-अलग नोटिफिकेशन जारी करके समय बढ़ा दिया।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह विस्तार गैरकानूनी है। लेकिन हाई कोर्ट ने साफ कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने खुद उस अवधि को बाहर कर दिया, तो असेसमेंट की अंतिम तारीख अपने आप बढ़ गई। उदाहरण के लिए, 2018-19 का असेसमेंट सामान्य रूप से 31 दिसम्बर 2023 तक होना था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की गिनती हटाने पर यह 28 फरवरी 2025 तक वैध हो गया। इसलिए सभी आदेश समय-सीमा के भीतर हैं।
दूसरा मुद्दा — स्क्रूटिनी नोटिस की आवश्यकता:
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि विभाग को पहले धारा 61 के तहत ASMT-10 नोटिस देकर रिटर्न की स्क्रूटिनी करनी चाहिए थी, तभी धारा 73 का नोटिस जारी हो सकता है। कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। कहा कि धारा 73 अपने आप में स्वतंत्र है और यदि टैक्स की गड़बड़ी दिखाई देती है तो अधिकारी सीधे धारा 73 के तहत नोटिस जारी कर सकता है। हर केस में ASMT-10 देना जरूरी नहीं है।
तीसरा मुद्दा — व्यक्तिगत सुनवाई:
यह सबसे महत्वपूर्ण बिंदु निकला। धारा 75(4) के अनुसार यदि किसी करदाता पर प्रतिकूल (adverse) आदेश देना हो, तो उसे सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है। भले ही करदाता ने लिखकर न माँगा हो, फिर भी अधिकारी को बुलाकर सुनना होगा। कोर्ट ने कहा कि यह प्रावधान स्पष्ट और बाध्यकारी है।
जहाँ-जहाँ बिना सुनवाई के आदेश पारित हुए, कोर्ट ने उन्हें रद्द कर दिया और कहा कि तीन महीने के अंदर या फिर बचे हुए समय-सीमा के भीतर (जो भी बाद में हो) नई सुनवाई कर दोबारा आदेश पास किया जाए।
हालाँकि, जिन चार याचिकाओं में रिकॉर्ड से साबित हुआ कि सुनवाई दी गई थी (CWJC No. 4505/2024, 9453/2024, 10182/2024, और 11511/2024), उन्हें कोर्ट ने खारिज कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- व्यापारियों और करदाताओं के लिए: अब यह स्पष्ट हो गया है कि 2017-18 से 2019-20 तक के असेसमेंट आदेश समय सीमा से बाहर नहीं हैं। लेकिन यदि बिना व्यक्तिगत सुनवाई आदेश दिया गया है, तो उसे चुनौती देकर दोबारा अवसर पाया जा सकता है।
- विभाग के लिए: समय सीमा बढ़ाने को कोर्ट ने वैध माना है। इसका मतलब है कि विभाग अभी भी इन सालों के असेसमेंट कर सकता है। लेकिन अब अधिकारियों को यह ध्यान रखना होगा कि हर प्रतिकूल आदेश से पहले सुनवाई अवश्य दी जाए।
- भविष्य की रणनीति के लिए: अब यह दलील देना कि हर केस में ASMT-10 जरूरी है, सफल नहीं होगी। बेहतर होगा कि करदाता शो-कॉज नोटिस के जवाब को मजबूत बनाएँ और सुनवाई के दौरान अपना पक्ष सही तरीके से रखें।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- समय सीमा (Limitation): सभी असेसमेंट आदेश वैध, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 15.03.2020 से 28.02.2022 की अवधि को बाहर रखने से नई अंतिम तारीखें 2025 तक बढ़ गईं।
- ASMT-10 नोटिस की अनिवार्यता: आवश्यक नहीं। धारा 73 स्वतंत्र प्रावधान है।
- व्यक्तिगत सुनवाई: धारा 75(4) के तहत अनिवार्य। सुनवाई न देने पर आदेश रद्द।
- जहाँ सुनवाई दी गई थी: उन चार याचिकाओं को खारिज कर दिया गया।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Re: Cognizance for Extension of Limitation, सुप्रीम कोर्ट (COVID-19 अवधि बाहर रखने का आदेश)
- M/s Graziano Trasmissioni v. GST Authorities, इलाहाबाद हाई कोर्ट, Writ Tax No. 1256 of 2023
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Re: Cognizance for Extension of Limitation (सुप्रीम कोर्ट)
- M/s Graziano Trasmissioni (इलाहाबाद हाई कोर्ट)
मामले का शीर्षक
CWJC No. 4180 of 2024 एवं अन्य जुड़े हुए मामले — याचिकाकर्ता बनाम राज्य कर/सीजीएसटी प्राधिकरण
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 4180 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन
माननीय श्री न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ताओं की ओर से: श्री डी.वी. पाठी, डॉ. अविनाश पोद्दार, श्री विजय कुमार गुप्ता, श्री सदाशिव तिवारी एवं अन्य।
- प्रतिवादियों (राज्य और केंद्र) की ओर से: माननीय महाधिवक्ता श्री पी.के. शाही (राज्य), डॉ. के.एन. सिंह, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (केंद्र), श्री अंशुमन सिंह, वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता, सीजीएसटी एवं सीएक्स, तथा अन्य अधिवक्ता।
निर्णय का लिंक
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