निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 18 दिसम्बर 2024 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया जिसमें कहा गया कि यदि जीएसटी अधिकारी कर निर्धारण (Assessment Order) पास करते समय करदाता को व्यक्तिगत सुनवाई (Personal Hearing) का अवसर नहीं देते हैं, तो वह आदेश अवैध माना जाएगा।
इस मामले में एक करदाता ने अपने खिलाफ पास किए गए जीएसटी आदेश और उसके आधार पर जारी डिमांड (DRC-07) को चुनौती दी थी। करदाता का तर्क था कि अधिकारी ने बिना सुनवाई दिए आदेश पारित कर दिया।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि आदेश समय-सीमा (Limitation) के बाहर पारित हुआ है। लेकिन न्यायालय ने साफ किया कि इस मुद्दे पर पहले ही 27 नवम्बर 2024 को एक अन्य खंडपीठ (Division Bench) ने फैसला दे दिया है और करदाता की दलील मान्य नहीं है। इसलिए इस मामले में केवल सुनवाई का अधिकार ही मुख्य मुद्दा बचा।
अदालत ने पाया कि जीएसटी अधिनियम की धारा 75(4) में स्पष्ट लिखा है कि जब भी अधिकारी करदाता के खिलाफ प्रतिकूल आदेश देने वाले हों, तो उन्हें व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है। इस नियम का पालन न करने पर आदेश टिक नहीं सकता।
इसलिए, न्यायालय ने कर निर्धारण आदेश और उससे जुड़ा DRC-07 (दिनांक 29.11.2023) को रद्द कर दिया और मामला पुनः आकलन के लिए वापस भेज दिया। करदाता को 15 जनवरी 2025 को अधिकारी के सामने उपस्थित होने का निर्देश दिया गया। साथ ही, अधिकारी को आदेश दिया गया कि तीन महीने के भीतर या वैधानिक सीमा के भीतर (जो भी बाद में हो) नया आदेश पारित करें।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला करदाताओं और कर विभाग दोनों के लिए अहम संदेश देता है:
- करदाताओं के लिए: अब वे जान सकते हैं कि यदि विभाग बिना सुनवाई दिए आदेश पारित करता है, तो वह अदालत में चुनौती देकर रद्द कराया जा सकता है। लेकिन साथ ही करदाता को भी समय पर विभाग के सामने उपस्थित होकर पूरा सहयोग देना होगा।
- विभाग के लिए: अधिकारियों को यह ध्यान रखना होगा कि हर मामले में सुनवाई का उचित अवसर दें और इसकी लिखित रिकॉर्डिंग रखें। अन्यथा आदेश अदालत में टिक नहीं पाएगा।
- सार्वजनिक दृष्टि से: यह फैसला प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) के सिद्धांत को मजबूत करता है, यानी बिना सुने किसी के खिलाफ निर्णय नहीं हो सकता।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या बिना व्यक्तिगत सुनवाई दिए जीएसटी आकलन आदेश और DRC-07 मान्य रह सकते हैं?
- न्यायालय का निर्णय: नहीं। आदेश धारा 75(4) का उल्लंघन करता है, इसलिए इसे रद्द किया गया।
- क्या करदाता की दलील कि आदेश समय-सीमा से बाहर है, स्वीकार की जा सकती है?
- न्यायालय का निर्णय: नहीं। इस विषय पर पहले ही 27.11.2024 को खंडपीठ फैसला दे चुकी है, इसलिए राहत केवल सुनवाई के आधार पर दी गई।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- सी.डब्ल्यू.जेे.सी. संख्या 4180/2024, M/s Barhonia Engicon Private Limited बनाम भारत संघ एवं अन्य, निर्णय दिनांक 27.11.2024।
मामले का शीर्षक
- याचिकाकर्ता बनाम भारत संघ एवं अन्य (Patna High Court; गुमनाम रूप में प्रकाशित)
केस नंबर
- Civil Writ Jurisdiction Case No. 12003 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
- माननीय मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन
- माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री डी. वी. पाठी, अधिवक्ता
- प्रतिवादियों की ओर से: डॉ. के. एन. सिंह, एएसजी; श्री अंशुमान सिंह, वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता, सीजीएसटी एवं सीएक्स
निर्णय का लिंक
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