पटना उच्च न्यायालय ने बिना व्यक्तिगत सुनवाई के जारी GST मूल्यांकन आदेशों को किया रद्द

पटना उच्च न्यायालय ने बिना व्यक्तिगत सुनवाई के जारी GST मूल्यांकन आदेशों को किया रद्द

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया जिसमें एक निजी कंपनी द्वारा दाखिल दो रिट याचिकाओं पर सुनवाई की गई। याचिकाकर्ता का आरोप था कि उनके खिलाफ GST के तहत जो टैक्स निर्धारण (assessment) आदेश जारी किए गए हैं, वे बिना किसी व्यक्तिगत सुनवाई के दिए गए हैं, जो कि कानून के तहत आवश्यक है।

GST कानून की धारा 75(4) के तहत यह स्पष्ट प्रावधान है कि अगर किसी करदाता के खिलाफ प्रतिकूल (adverse) निर्णय लिया जाना है, तो उसे पहले व्यक्तिगत सुनवाई (personal hearing) का अवसर दिया जाना चाहिए। इस मामले में ऐसा कोई अवसर नहीं दिया गया।

याचिकाकर्ता कंपनी के खिलाफ दो मूल्यांकन आदेश — दिनांक 30.10.2023 और 21.04.2024 को GST DRC-07 फॉर्म के तहत जारी किए गए थे। कंपनी का कहना था कि उन्हें न तो कोई नोटिस मिला और न ही कोई मौखिक सुनवाई का मौका दिया गया।

19.12.2024 को दिए गए अपने फैसले में, माननीय मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने यह माना कि याचिकाकर्ता के अन्य तर्क पहले ही एक अन्य मामले (M/s Barhonia Engicon Pvt. Ltd v. Union of India) में खारिज किए जा चुके हैं, लेकिन व्यक्तिगत सुनवाई का अधिकार एक वैध कानूनी मुद्दा है और इसका उल्लंघन किया गया है।

इसलिए न्यायालय ने दोनों मूल्यांकन आदेशों को रद्द कर दिया और मामले को संबंधित GST अधिकारी को पुनः विचार के लिए वापस भेज दिया। कोर्ट ने यह निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता 15.01.2025 को या उसके बाद अगली तिथि पर उपस्थित हों और अधिकारी उन्हें व्यक्तिगत रूप से सुनकर तीन महीने के भीतर नया आदेश जारी करें।

यह फैसला कर निर्धारण प्रक्रिया में न्यायिक पारदर्शिता और निष्पक्षता को मजबूत करता है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय न्याय के मूल सिद्धांत — प्राकृतिक न्याय — की पुष्टि करता है। यदि सरकार किसी करदाता के खिलाफ कोई टैक्स आदेश पारित करती है, तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि व्यक्ति को अपनी बात रखने का उचित अवसर दिया गया है।

सरकारी अधिकारियों के लिए यह एक चेतावनी है कि वे GST कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करें। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो पूरा निर्धारण आदेश अमान्य हो सकता है, जिससे समय की बर्बादी और सरकारी राजस्व की हानि हो सकती है।

बिहार के व्यापारियों और उद्योगों के लिए यह एक सकारात्मक संकेत है कि न्यायालय ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करता है जहां अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो। यह उन्हें यह जानने में मदद करता है कि वे ऐसी कार्यवाही को चुनौती दे सकते हैं जो बिना उचित प्रक्रिया के पूरी की गई हो।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या व्यक्तिगत सुनवाई के बिना GST निर्धारण आदेश वैध है?
    • निर्णय: नहीं, यह धारा 75(4) का उल्लंघन है।
    • कारण: कानून में स्पष्ट प्रावधान है कि प्रतिकूल आदेश से पहले सुनवाई अनिवार्य है। इसका उल्लंघन आदेश को अवैध बना देता है।
  • क्या याचिकाकर्ता की सीमा (limitation) संबंधी दलीलें पहले दिए गए फैसले को प्रभावित कर सकती हैं?
    • निर्णय: नहीं, पहले के फैसले में यह मुद्दा पहले ही तय किया जा चुका है।
    • कारण: न्यायालय ने इस पर पुनः विचार नहीं किया और पुराने फैसले को ही लागू किया।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • M/s Barhonia Engicon Pvt. Ltd v. Union of India, निर्णय दिनांक 27.11.2024, CWJC No. 4180/2024

मामले का शीर्षक

  • Amitamshu Tradcon Pvt. Ltd v. Union of India & Ors.

केस नंबर

  • CWJC No. 13405 of 2024 और CWJC No. 13825 of 2024

न्यायमूर्ति गण का नाम

  • माननीय मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन
  • माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री डी.वी. पाठी, अधिवक्ता
  • प्रतिवादियों की ओर से: डॉ. के.एन. सिंह, एएसजी; श्री विवेक प्रसाद, जीपी-7; सुश्री रूना, एसी टू जीपी-7; श्री संजय कुमार, एसी टू जीपी-7

निर्णय का लिंक

eb72ff1e-0b8d-4135-a099-0ef296f05bcb.pdf

“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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